एक कमज़ोर औरत

वह एक कमज़ोर औरत थी

जिसने बेटी के

नए ,फड़फड़ाते पंखों को

दूर की परवाज़ दी

खुद की आज़ादी समझकर

समुंदरों की गहराई से नाप दिया।

और फिर मोबाईल नुमा

बेनाड़ की नाड़ का

परला सिरा बनकर रह गयी

ज़िन्दगी भर !
वह एक कमज़ोर औरत थी

जिसने बेटे को जीवनधन समझा ,

दुनिया की नज़रों से बचा

दिन रात निहोरा किया ,

कभी आँचल में लुकाया

कभी फूलों से तौला

बताशों से उतारा कभी

बलाओं का सदक़ा !

और जब उसकी जवानी बौराई

अपनी तल्ख़ तनहाई में

खुद को क़ैद कर

साँकल चढ़ा ली।

 

वह एक कमज़ोर औरत थी

जिसने दुनिया की शरम को

अपनी आबरू समझा

चुपचाप माला पकड़ ली

और अपनी बेसहारा ममता में

घुट -घुट कर दम तोड़ दिया !
उसके मरने के बाद

बेटी ने समेटे

चंद साझा खुशियों के एल्बम ,

बेटे ने ली निजात की सांस !

रिश्तों को जनम देनेवाली

छोड़ गयी ,

बिन चिपकन के

कुछ रूखे रिश्ते

वह एक कमज़ोर औरत।

 

 

- कादंबरी मेहरा


प्रकाशित कृतियाँ: कुछ जग की …. (कहानी संग्रह ) स्टार पब्लिकेशन दिल्ली

                          पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) सामयिक पब्लिकेशन दिल्ली

                          रंगों के उस पार (कहानी संग्रह ) मनसा प्रकाशन लखनऊ

सम्मान: भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान २००९ हिंदी संस्थान लखनऊ

             पद्मानंद साहित्य सम्मान २०१० कथा यूं के

             एक्सेल्नेट सम्मान कानपूर २००५

             अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच २०११ लखनऊ

             ” पथ के फूल ” म० सायाजी युनिवेर्सिटी वड़ोदरा गुजरात द्वारा एम् ० ए० हिंदी के पाठ्यक्रम में निर्धारित

संपर्क: लन्दन, यु के

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