आकाश ने एक चुंबन सुधा के गालों पर अंकित कर दिया . वह छिटक कर दूर जा खड़ी हुई . हल्की गुलाबी रंगत ने सुधा के चेहरे को ढक लिया . उसकी दृष्टि कभी दूर तक फैली हरी- हरी वीरानी में खोने का अभिनय करती तो कभी नीले आसमान में बिखरे बादलों को पढ़ने की कोशिश करने लगती , सुधा की अकस्मात चुप्पी ने उसे डराया कम , असमंजस ज्यादा दिया . ” क्या हुआ सुधी ? ” ऐसे अवसरों पर हमेशा की तरह उसका प्रश्न था.
सुधा ने कोई उत्तर नहीं दिया .” अरे ! बोलो न .मैंने ऐसा तो कुछ नहीं किया कि तुम किसी सोच में डूब जाओ . नेचर की इतनी सुंदर और आकर्षक बहार में एक मिठास तो बनता है न .”
- ” चलो घर चलें .” और दिनों से हटकर आज सुधा की प्रतिक्रया अलग थी .
- ” घर चलें ! यह क्या कह रही हो ?. जानती हो न कि एक अरसे के बाद हम इस सुंदर पार्क में आ पाये हैं तो क्या इतनी जल्दी वापस घर जाने की लिए आएं हैं , अरे बाबा तुम्हीं ने तो कहा था कि अभी इस पार्क में कुछ देर एंज्वॉय करने की बाद , हमें साथ – साथ लंच करना है . फिर मूवी देखकर शाम तक घर का रुख करेंगें .”
- ” अब वापस चलने के लिए भी तो मैं ही कह रही हूँ . चलो घर चलें ” सुधा ने दो टूक निर्णय सुना दिया .
- ” पर हुआ क्या ? “
- ” अगर वे घर आ गए तो क्या सफाई दूँगी कि कहाँ और किसके साथ गयी थी .”
- “ ” तुमने बताया था कि अनिल जी देर रात में लौटेंगे . . “
- ” हाँ बताया था और सच बताया था .पर अब तुम तुरंत घर वापस चलो ” सुधा के स्वर में अचानक तल्खी आ गयी
- “” यह कैसे हो सकता है सुधी , यह तो अन्याय है हम दोनों के साथ . मैं तब तक वापस नहीं जाऊँगा जब तक हम आज का पूरा शेड्यूल एंज्वाय नहीं कर लेते .” आकाश के स्वर में बेबसी भरी निराशा थी .
- ” नहीं चल सकते तो मत चलो . यहीं बैठे रहो . मैं अकेले चली जाउंगी .” सुधा पैर पटकते हुए एक ओर चल दी .
- आकाश को पता था कि सुधा जो ठान लेती है , बिना आगा – पीछे सोचे वही करती भी है .फिर भी उसने सुधा की इस बेतुकी जिद को बदलने की एक और कोशिश की , ” सुधी ! प्लीज मूड न खराब करो . तुम्हारी यह बेमतलब की जिद हमारे कई दिन ले डूबेगी . “
- ” सब कुछ डूब जाने दो . मुझे इस नाव में तैरने का कोई शौक नही है .” सुधा के शब्दों के शब्दों की तल्खी बढ़ गयी .
- ” आखिर हुआ क्या , जो अचनक इस तरह की बहकी – बहकी बाते कर रही हो . “
” हाँ . मैं बहक गयीं हूँ आकाश . मेरा असमंजस मेरा भाग्य बन गया है . मुझे समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूँ .एक संस्कार ने मुझे अनिल के साथ इस तरह नत्थी कर दिया जैसे मैं कोई जीवंत व्यक्तित्व नहीं , कोई सत्यापित प्रतिलिपि हूँ . मेरी भूमिका केवल यह है कि मुझे मूल दस्तावेज को तमाम जिंदगी सत्यापित करते रहना है . दूसरी ओर तुम हो जिसके साथ का अर्थ ही यह है कि मैं एक मनोरंजक सी. डी. हूँ जिसे एंज्वाय न किया तो वह किस काम की. आकाश ने पाया कि सुधा की आँखें भीगने को आतुर हैं. आकाश इस स्थिति के लिए तैयार नहीं था . उसका रोआँ – रोआँ ग्लानि बोध से तड़प उठा ,” सॉरी सुधी! इस बार माफ़ कर दो .” वह बोला .
सुधा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी . वह पत्थर की मूर्ति बनी खड़ी थी .
आकाश से उसकी यह चुप्पी सहन नहीं हुई . मैं क्या करूँ सुधी .प्लीज! तुम किसी भी रूप में मेरी वजह से किसी उहापोह में मत पड़ो , मेरे लिए मेरी जिंदगी का वह दिन सबसे बुरा दिन होगा जब मुझे लगेगा कि तुम्हारी किसी भी परेशानी का कारण मैं हूँ . तुम किसी अपराध बोध के जाल में मत घिरो . चलो अभी घर चलते हैं . तुम्हे अपने निजत्व के लिए जिस स्पेस की जरूरत है , वह तुम्हे मिलेगा . ” यह कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ .
सुधा खड़ी तो हुई पर चलने के लिए उसके पाँव चप्पलों की ओर नहीं बढ़े . वह एकटक आकाश को देखती रही .
” क्या हुआ ! चप्पल तो पहन लो या यहां से नंगे पाँव चलोगी ? तब लोग क्या कहेंगे कि मैडम के पास साडी इतनी अच्छी और चप्पल खरीदने के लिए पैसे नहीं . ”
आकाश की यह ठिठोली सुधा के असमंजस पर आवरण बन छा गयी . मुस्कारहट ने दोनों के चेहरे को ढक लिया . वह आगे बढ़ी . आकाश ने बाहों को फैलाया तो सुधा किसी स्वचालित यंत्र की तरह अपने आप उसमें समा गयी . उहापोह उससे कोसों दूर थी .उसने अपने आपसे कहा ,” मैंने स्वयं तय किया है कि नियति ने उसके लिए यही दोनों भूमिकाएं तय की हैं . अनिल उसकी सुरक्षा है तो आकाश उसका प्रारब्ध है . उसे दोनों को साथ लेकर जीना है. ”
“ वापस चल पड़े तो क्या आज के हमारे शेड्यूल को पूरा कौन करेगा .” उसने कहा .
- सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
जन्म - स्थान : जगाधरी ( यमुना नगर – हरियाणा )
शिक्षा : स्नातकोत्तर ( प्राणी – विज्ञान ) कानपुर , बी . एड . ( हिसार – हरियाणा )
लेखन विधा : लघुकथा , कहानी , बाल – कथा , कविता , बाल – कविता , पत्र – लेखन , डायरी – लेखन , सामयिक विषय आदि .
प्रथम प्रकाशित रचना : कहानी : ” लाखों रूपये ” – क्राईस चर्च कालेज , पत्रिका – कानपुर ( वर्ष – 1971 )
अन्य प्रकाशन : 1 . देश की बहुत सी साहित्यिक पत्रिकाओं मे सभी विधाओं में निरन्तर प्रकाशन ( पत्रिका कोई भी हो – वह महत्व पूर्ण होती है , छोटी – बड़ी का कोई प्रश्न नहीं है। )
2 . आज़ादी ( लघुकथा – संगृह ) ,
3. विष – कन्या ( लघुकथा – संगृह ) ,
4. ” तीसरा पैग “ ( लघुकथा – संगृह ) ,
5 . बन्धन – मुक्त तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
6 . मेरे देश कि बात ( कविता – संगृह ) .
7 . ” बर्थ - डे , नन्हें चाचा का ( बाल - कथा – संगृह ) ,
सम्पादन : 1 . तैरते – पत्थर डूबते कागज़ “ एवम
2. ” दरकते किनारे ” ,( दोनों लघुकथा – संगृह )
3 . बिटीया तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
पुरस्कार : 1 . हिंदी – अकादमी ( दिल्ली ) , दैनिक हिंदुस्तान ( दिल्ली ) से पुरुस्कृत
2 . भगवती – प्रसाद न्यास , गाज़ियाबाद से कहानी बिटिया पुरुस्कृत
3 . ” अनुराग सेवा संस्थान ” लाल – सोट ( दौसा – राजस्थान ) द्वारा लघुकथा – संगृह ”विष – कन्या“ को वर्ष – 2009 में स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति - साहित्य सम्मान
आजीविका : शिक्षा निदेशालय , दिल्ली के अंतर्गत 3 2 वर्ष तक जीव – विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर कार्य करने के पश्चात नवम्बर 2013 में अवकाश – प्राप्ति : (अब या तब लेखन से सन्तोष )
सम्पर्क : साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश