- संतोष सुपेकर
शपथग्रहण समारोह चल रहा था; – मैं ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूँ कि सदैव सत्यनिष्ठा से कार्य करूँगा …..
“हा हा हा “, और उपस्थित भीड़ में एक आदमी जोर-जोर से अटटहास कर रहा था।
“कौन हो भाई तुम ” मैंने हैरत से पुछा, “और हंस क्यों रहे हो?”
“मैं हर उस जगह पर मौजूद रहने की कोशिश करता हूँ जहाँ सत्य के नाम पर कोई शपथ ली जाती है चाहे वह नेताओं का शपथग्रहण समारोह हो, चाहे कोर्ट में गीता/कुरान जैसे पवित्र ग्रंथों पर हाथ रखकर खाई जाने वाली कसमें हों, चाहे चिकित्सा क्षेत्र की हिप्पोक्रेटिक ओथ हो ……”
“वो तो ठीक है,पर तुम हो कौन ?”
“अब भी नहीं पहचाना मुझे ?” फिर अटटहास करता हुआ वह बोला,” मैं झूठ हूँ, असत्य ! और यह देखकर अति प्रसन्न होता हूँ कि मेरे कट्टर शत्रु ‘सत्य’ का सबसे ज्यादा अपमान ऐसे ही अवसरों पर होता है। ”
- संतोष सुपेकर
संक्षिप्त परिचय :
मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में जन्मे संतोष सुपेकर की मातृभाषा मराठी है लेकिन लेखन वे हिन्दी में करते हैं। उनके पिताश्री मोरेश्वरजी सुपेकर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के जिमनास्टिक-कोच हैं। एम कॉम तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त संतोष सुपेकर पश्चिम रेलवे में ‘लोको पायलट’ के पद पर कार्यरत हैं।
उनकी साहित्य सेवा को देखते हुए अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने उनको सम्मानित एवं पुरस्कृत किया है।
कविता, लघुकथा एवं व्यंग्य उनकी प्रिय विधाएँ हैं।
‘साथ चलते हुए’(2004) तथा ‘हाशिए का आदमी’(2007) के बाद ‘बंद आँखों का समाज’ उनका तीसरा लघुकथा-संकलन है