मेरी सरहदों पर बिंदी ,बिछुए ,सिन्दूर ——-अधिक कहूं तो पायल का पहरा है .ये सब तो तुम्हारे पास भी हैं फिर कैसे तुम उस पार की औरत बन गईं ?तुम अचानक मिल गई थीं बाज़ार में एक दूकान पर कोई साबुन खरीदती स्कूल में तुम मुझसे एक साल तो आगे थीं किन्तु स्पोर्ट्स में रूचि होने के कारण अक्सर हम लोग अपना नाश्ता बॉक्स खोलकर गपियाते थे ,साथ साथ खाते जाते थे.तुमने आश्चर्य से कहा था ,“ त—-त —तू ?“
“तुम —-?“मैं जबरन तुम्हें घर ले आई थी अपना आलीशान ड्राइंग रूम तुम्हें दिखाना चाहती थी .अपनी खुशी मे मै ये देख नहीं पाई थी कि तुम्हारा चेहरा बेरौनक क्यों हो गया है ?
“ आज मैं तुमको बिना खाना खाए जाने नहीं दूंगी .`मैंअपनी मस्ती में अपने पति व् बच्चों की त्तारीफों के पुल बांधे जा रही थी .जब मेरी बात पूरी हुई तो मैंने पूछा कि हमारे जीजाजी कैसे हैं ?
“ठीक हैं —–“तुमने कमरे की सुसज्जित दीवारों को देखा और अचानक भरी दोपहर में जाने का निर्णय ले लिया ,“फिर कभी आउंगी .“
येतो मुझे बाद में तुम्हारी ज़िंदगी की खुलती हुई परतें मिलीं .तुम्हें इस शहर में आये तीसरा बरस था .तुम सिटी बस में या चिलचिलाती धूप में चलती इधर उधर किसी नर्सिंग होम या क्लीनिक में नौकरी के लिए ठोकरें खाया करतीं थीं .उस सिटी बस कंडक्टर को तुम्हारे चेहरे को देखकर पता लग गया था कि तुम्हारे भाल या मांग में सजे अस्त्र तेजहीन हैं .अक्सर तुमसे पैसे कम लेकर ,टिकिट न देकर एक मेहरबानी तुम पर लग्दाता रहता था .तब तक तुम्हारी छटपटाहट एक पथरीलेपन में तब्दील हो चुकी थी ,तुम उसकी मुस्कराहटों के अर्थ पहचान ही कहाँ पाई थीं?
होश तो तुम्हें जब आया जब एक दिन उसी सड़क पर रात में तुम गुज़र रहीं थीं अचानक एक डिपो जाती खाली बस तुम्हारे पास रुक गई और दरवाज़े पर खड़ा वह कंडक्टर कुटिलता से मुस्कराया था ,“चल रही हो भैनजी तफरीह करा लायें .“
उस दो टके के कंडक्टर की तुमसे ऐसा कहने की हिम्मत कैसे पद गई ?चप्प्पल उतारकर दिखाने का साहस भी तुम नहीं कर पाई होगी ,पास से गुज़रता रिक्शा लेकर एकदम से चल दी होगी .`
जब तुम्हें ये दुनियां खरोंचे दे रही थी तब मेरी व्यस्तताएं होतीं थीं `पिज्जा `,सूफ्ले या पुडिंग बनाने की अपने क्लब में रौब मारने की .जब हमारा क्लब आधी रात गुलज़ार होता तुम एक बड़े मकान की कोठरी में बेचैन बिस्तर पर करवटें बदल रही होतीं .मकान मालिक व उसके दोस्तों के नशे में धुत वीभत्स ठहाके तुम्हें सोने नहीं देते .सारा दिन तो नौकरी तलाशते निकल जाता ,रात को अपनी पसीजी हुई हथेलियों में बेटी का ख़त लिए तुम जर्जर दरवाज़े तो देख कर कांपती रहतीं .पनीली आँखों से पड़तीं ,“तुम कब लौटोगी ?क्या सच ही तुम हमें प्यार नहीं करतीं ?पापा के दौरे बड़ते जा रहे हैं .एक दिन उन्होंने मेरा बनाया खाना सडक पर फेंक दिया .सारे दिन हमको रस्सी से बांधे रक्खा ..“
तुम्हारे अपने घर को छोड़ देने के कठोर जीवट का मैं नमन करूं या भर्त्सना ?ये घटना भी तो तुम्ही ने सुनाई थी कि तुम्हारा इकलौता बेटा छत की मुंगेर पर बैठा पद रहा था और तुम्हारे पति को दौरा पड़ा गया उसने ये कहकर उसे नीचे धक्का दे दिया था ,“बेटा !हवा में तैर यहाँ क्यों बैठा है /“
यह तो अच्छा हुआ कि उसने नीचे का छज्जा पकड़ लिया था .किन्हीं भ्राता जी की प्रेरणा से तुमने वो घर छोड़ा था अपने तीन मासूम बच्चों को उनके वहशी दरिन्दे जैसे पिता के पास छोड़ने का जीवट तुम कैसे जुटा पाई थीं ?तुम मेरे शहर आ गई थी नर्सिंग की ट्रेनिंग लेने .
हादसे तुम्हारी शादी के बाद ही जीवन में शुरू हो गए थे .तुम्हें क्या पता था कि तुम्हारी ममेरी बहिन के पति जो इकलौती साली का मन्त्र हर समय तुम्हारे कानों में फूंकते रहते हैं वही अपनी जेब भर तुम्हारे अमीर माँ बाप को ऐसी पट्टी पदायेंगे कि तुम्हारे दसवीं पास करते ही तुम्हारी शादी आँख मूंदकर कर देंगे .तुम पर वज्रपात तो सुहागरात के दिन ही हो गया था जब तुम्हारे पति वहशीपन से सारी रात तुम्हें झिंझोड़ा था .तुम तभी समझ गईं थीं कि ये अर्धविक्षिप्त है .तुम इस सदमें से उबर नहीं पा रहीं थीं कि स्त्री विहीन इस घर में तुम्हारे ससुर ही तुम्हारे पीछे घूमने लगे पिंजरे के पाखी की तरह तुम उस घर के कमरों में छिपती फिर रहीं थीं ,
तुम्हारी एक विधवा बुआ सास तुमसे मिलने आई तो तुमने उन्हें गाँव लौटने नहीं दिया .हालाँकि सुबह छ; बजे नहाकर रसोई में जाना होता था ज़मीन पर आटे की लकीर खींचकर उसकी सीमा में खाना बनाना होता था .बार बार हाथ धोना मंज़ूर था लेकिन ससुर के हाथ लुटना नहीं . वे वहशी रातें तुम्हें तीन बच्चे दे गईं थीं .तीसरे बच्चे के होते ही तुम्हारी बुआ सास चल बसीं थीं . तुम्हारी पिता के घर का बिजनेस डांवाडोल हो रहा था .तुम सोच ही रहीं थीं कि माँ से आसरा लो लेकिन वह भी चल बसीं .
. जब तुम हमारे शहर के नर्सिंग हॉस्टल में थीं तो तुम्हारे ससुर तुम्हारा पता ढूनते हुए वहां पहुँच गए थे .तुम्हें डांट डपटकर घर ले जाना चाहते थे .जब तुम किसी तरह नहीं मानी थीं तो जोर से चिल्ला उठे थे ,“भ्राताजी क्या तेरा यार लगता है जिसके जोर पर घर नहीं लौटना चाहती .“
तुममें जब तक जवाब देने का साहस आ चुका था ,“यार लगता हो या न लगत हो जब तक अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाउंगी तब तक घर नहीं लौटूंगी .“
“तेरे बच्चों का क्या होगा ?“
“उन्हीं के लिए तो ये कर रहीं हूँ .वे आपके भी तो पोते हैं तब तक उन्हें संभालिये .“
जब भी उनके ससुर को गुस्सा आता हॉस्टल आकर इसी तरह गाली गलौज कर जाते .
अपनी ट्रेनिंग के लिए तुमने अपने गहने बेच दिए थे .मुझ तक किसी सहायता के लिए संपर्क नहीं किया .यदि तुम उस दिन बाज़ार में नहीं मिल जाती तो मुझे कुछ पता ही नहीं चलता .
जब तुम किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में अपनी पहली नौकरी की मिताई लेकर आयीं थीं तो तुमने अपनी सफाई भी दी थी “भ्राताजी से मेरे संबंधों को कभी गलत नहीं समझना .“तुमने डबडबाई आँखों से मुझसे कहा था ,“ये हमारे घर के पास ही रहतें हैं .बच्चों को पदाने आते थे .बुआजी के मरने के बाद एक रात को अपने ससुर से बचने के लिए मैंने इन्हीं के पास शरण ली थी .इन्हीं ने मुझे समझाया था कि बच्चों को कुछ बनाना है तो दुनियां के बीहड़ में कूदना पड़ेगा यदि तुम यहाँ रहीं तो हमेशा इस खूसट के इशारों पर नाचती रहोगी .उन्हीं ने यहाँ मेरे एडमिशन का इंतजाम किया था .“
मेरे मन में तुम्हारे ल्लिये एक राहत थी कि तुम्हारी परेशानियाँ अब समाप्त हो गईं हैं .कुछ दिनों बाद तुम मेरे द्वार पर खड़ी हुई थीं बदहवास .तुम्हारे बुझे सकते की हालत लिए चेहरे से मुझे दहशत हो रही थी .ठन्डे पानी का गिलास तुम्हारे हाथ में पकडाते हुए मैंने धीमे स्वर में पूछा था ,“`अब क्या हुआ ?“
“इस दुनियां में पुरुष एक अकेली औरत को क्यों नहीं जीने देते ?“तुमने कुछ बताने के बजाय एक प्रश्न किया और हिचकी भर भर कर रोने लगीं थीं
“क्या नर्सिंग होम के डॉक्टर ने ——– — -?“
“नहीं वो तो बहुत अच्छे हैं .मैं अपने बच्चों को अपने पास लाना चाह रही थी .मेरे ससुर तैयार नहीं थे मैं एक वकील से मिलने गई थी .कोर्ट में उनके पास बहुत भीड़ थी इसलिए उन्होंने अपने घर का पता दे दिया था .“
“फिर ?“
“शाम को मैंने एक रिक्शेवाले को उस पते पर चलने के लिए कहा .वह एकदम मुस्करा उठा .मैंने उसकी मुस्कराहट पर ध्यान नहीं दिया ,उस बड़े मकान का माहौल कुछ अजीब लग रहा था .उसके गलियारे में एक लाइन से कमरे बने रुए थे जिनके अन्दर से अजीब सी अव्वाजें आ रहीं थीं .मैं सहमी सी खड़ी थी कि वह वकील सामने से आता हुआ दिखाई दिया .मुझे उसने एक कमरे में बिठा दिया व बोला अभी आता हूँ ,मैंने कुछ सीनियर्स वकील बुला लिए हैं .उनकी राय भी ले लेंगे .“फिर उसने गिलास में बचा हुआ पानी ख़त्म किया .,“मुझे चैन नहीं पद रहा था इसलिए मैं चुपके से उसके पीछे चल दी ..तीसरे कमरे में जाकर वह बोला कि मैं शिकार फंसा लाया हूँ .कमरे से एक दूसरी आवाज़ आई कि इसी बात पर जाम हो जाये .मैं वहां से तुरंत बाहर के दरवाज़े की तरफ भागी ,वहां देखा कि एक बड़ा ताला लटक रहा है फिर मैं गिरती पड़ती एक कमरे की खिड़की पर चद्ती वहां के रोशनदान से कैसे बाहर आई बता नहीं पाउंगी.बाहर वही रिक्शेवाला खड़ा था .“
“उसने भी कुछ बदतमीजी की - – — ?“मेरे मुंह से कुछ शब्द बमुश्किल निकले .
“नहीं — –वह तो कहने लगा कि आप मुझे इसी जगह नई लग रहीं थीं इसलिए मैं यहाँ रुका रहा .दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आते ही मैं तुरंत उसके रिक्शे पर बैठ गई .वह अपने रिक्शे गलियों के जाल से दौडाता मुझे उस नरक से बचा लाया .`
उस दिन तुम अपने नए किराये के घर के कमरे में बहुत देर तक बुत बनी बैठी रही होगी ,सोचती हुई क्या हर कोई तुम्हें लावारिस जान आसानी से फंसने वाला शिकार समझता रहेगा ?
लेकिन परिस्थितियों को तुमसे हारना ही पडा ,तुम्हें सरकारी नौकरी मिल गई थी ,तुम्हारी पोस्टिंग पास के एक कसबे में हो गई थी .तब तुमने कोर्ट में लड़ी अपने हक़ की लड़ाई और जीतकर बच्चों को अपने पास ले आईं थीं .तुम्हारा प्यार भरा पत्र मिला है ,“ये शहर छोटा है ,मेरा सरकारी क्वार्टर भी छोटा है लेकिन तुम अपने परिवार के साथ यहाँ आ जाओ ,पिकनिक हो जायेगी .“
सच ही मेरा परिवार उस छोटे शहर ,उस छोटे क्वार्टर में रहने वाली आसमान जैसे बुलंद हौसले रखने वाली उस दोस्त से मिलने जा रहा है .
- नीलम कुलश्रेष्ठ
जन्म : आगरा
शिक्षा : रसायन विज्ञान में एम.एस सी.,एक्सपोर्ट मार्केटिंग में डिप्लोमा
लेखन परिचय : वड़ोदरा में स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता -एन.जी.ओ`ज व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्तियों के साक्षात्कार ,विविध विषयों पर शोधपरक लेखन
उपलब्धियां : 1. गुजरात के ` हू इज हू `में से एक
2,तीन कहानियों को अखिल भारतीय पुरस्कार ,
3.रचनाओं का अनेक भाषाओँ में अनुवाद ,
4.`अपने घर की ओर`कहानी पर टेली फिल्म ,
5,वृन्दाबन की बंगाली विधवा माइयों , मानव संसाधन मंत्रालय .नई दिल्ली की योजना `महिला समाख्या `, भारत के बाईस विश्व विद्यालय के नारी शोध केन्द्रों पर राष्ट्रीय स्तर पर भारत में सर्वप्रथम लेखन
6.गुजरात की लोक अदालत को भारत में लोकप्रिय बनाने के योगदान ,
पुस्तकें ; 1. सन २००१ में प्रकाशित `हरा भरा रहे पृथ्वी का पर्यावरण `[सामयिक प्रकाशन ,नई दिल्ली ]
सन २००४ व २००५ में गृह मंत्रालय की सर्व श्रेष्ठ पुस्तकों में से एक , तीन संस्करण , गुजरात साहित्य अकादमी से पुरस्कृत
2, सन२००२ में प्रकाशित `ज़िन्दगी की तनी डोर ;ये स्त्रियाँ“ [मेधा बुक्स ,नई दिल्ली ]
[द सन्डे इंडियन `की विश्व की सर्व श्रेष्ठ नारीवादी पुस्तकों की सूची में शामिल ]` तीन संस्करण .गुजरात साहित्य अकादमी से पुरस्कृत
3. नारीवादी कहानी संग्रह `हेवनली हेल `[शिल्पायन प्रकाशन . नई दिल्ली ]
को अखिल भारतीय अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार .
4प्राचीन स्त्री चरित्रों के व धर्म के स्त्री शोषण के विरुद्ध .एक आन्दोलन की शुरुआत सम्पादित पुस्तकों से
[1]“धर्म की बेड़ियाँ kiबेड़ियाँ खोल रही है औरत ` [शिल्पायन प्रकाशन ,नई दिल्ली ,सन २००८ में व सन 2010 में दूसरा संस्करण प्रकाशित ]
[2]. `धर्म के आर पार औरत ` [किताब घर ,नई दिल्ली ]
[3.] तीसरी पुस्तक`धर्म के आर पार औरत “खंड -२ प्रकाशाधीन
5 नारीवादी पुस्तक .;`परत दर परत स्त्री `.नमन प्रकाशन से सन २००१2 में प्रकाशित कुल आठ पुस्तकें कुल आठ पुस्तकें
6 ` गुजरात;;सहकारिता ,समाज सेवा और संसाधन `.`किताब घर ,नई दिल्ली —– सन २००१2 में प्रकाशित –
7.`गंगटोक का एक भीगा भीगा दिन`[कहानी संग्रह ] -ज्योति पर्व प्रकाशन ,नई दिल्ली
कुल आठ पुस्तकें
प्रकाशाधीन पुस्तकें ;
1..सम्पादित नारीवादी कहानी संग्रह -नॅशनल पब्लिशिंग हाउस ,जयपुर
2.` कुछ रोग ;कुछ वैज्ञानिक शोध `,नमन प्रकाशन. नई दिल्ली
3..`वडोदरा नी नार`[वड़ोदरा की अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रिय स्तर पर विशिष्ठ काम करने वाली महिलायों के इंटरव्यू
सम्प्रति ; वड़ोदरा [सन ११९० में ]व अहमदाबाद[सन २००९ में ] में महिला बहुभाषी साहित्यिक मंच `अस्मिता ` की स्थापना , जो निरंतर अपनी कलम से ,मंच से स्त्री के अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है
संपर्क - अहमदाबाद -३८००१५