किसने धूमिल किया नगीना
किसने मुझको मुझसे छीना
मेरे भीतर मेरे जैसा
कौन विरोधी आन बसा
जब भी अमृत कलश उठाया
जाने किसने ज़हर भरा चाहा
जब भी निर्भय होना
भीतर भीतर कौन डरा
जब भी खुद के बंधन खोले
किसने आकर और कसा
मेरे भीतर मेरे जैसा
कौन विरोधी आन बसा
जब भी थामा हाथ नींद का
नस नस में ये कौन जगा
खुद पर जब भी रोक लगाई
भीतर सरपट कौन भगा
बीच नदी मेरे कांटे में
मेरा ही प्रतिबिम्ब फँसा
मेरे भीतर मेरे जैसा
कौन विरोधी आन बसा
उसकी सारी ठोस दलीलें
मेरे निर्णय पिघल गए
दाँव नेवले और सांप से
टुकड़ा टुकड़ा निगल गए
मेरी हार निराशाओं पर
मुझमे ही ये कौन हँसा
मेरे भीतर मेरे जैसा
कौन विरोधी आन बसा
- संध्या सिंह
जन्म: २० जुलाई
स्थान: देवबंद जिला सहारनपुर , उत्तर प्रदेश
प्रारंभिक शिक्षा: गाँव की पाठशाला में
शिक्षा: स्नातक ( विज्ञान ) , मेरठ विश्वविद्यालय
सम्प्रति: कुछ पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन , एक काव्य संग्रह और एक गीत संग्रह प्रकाशाधीन
इसके अतिरिक्त स्वतन्त्र लेखन , हिन्दी के प्रचार – प्रसार से जुडी साहित्यिक गति विधियों में सहभागिता
पता: इंदिरा नगर , लखनऊ , भारत