Poems

रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ
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जिन्द‌गी मॆ है कित‌नॆ प‌ल‌
जीव‌न‌ र‌हॆ या न‌ र‌हॆ क‌ल
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

ब‌न्द क‌र दॆख‌ना भ‌विष्य‌फ‌ल
छॊड‌ चिन्ता क‌ल‌ की
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

ह‌र‌ प‌ल‌ है मूल्य‌वान
है तू भाग्य‌वान
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

दिल‌ कि ध‌क‌ ध‌क
दॆती है तुम्हॆ यॆ ह‌क
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

ह‌र‌ घ‌डी मॆ है म‌स्ती
दॆखॊ है यॆ कित‌नी स‌स्ती
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

क‌म क‌र अप‌नी व्य‌स्त‌ता
जीनॆ का निकालॊ स‌ही र‌स्ता
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

प‌ल‌ प‌ल‌ मॆ जीना सीखॊ
चॆह‌रॆ प‌र लाक‌र‌ मुस्कान
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

काम‌ न‌ही हॊगा क‌भी ख‌त्म
उस‌मॆ सॆ ही निकालॊ व‌क्त
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

दुश्म‌नी मॆ न‌ क‌रॊ स‌म‌य ब‌र‌बाद
दॊस्तॊ सॆ क‌र‌ लॊ अप‌नी दुनिया आबाद
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

क‌र‌ ग‌रीबॊ का भ‌ला
पाऒ मन‌ का स‌कून
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

ख्वाबॊ सॆ बाह‌र‌ निक‌ल
रंग बिरंगी दुनिया दॆखॊ
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

क‌म‌ क‌र‌ अप‌नी चाहत‌
ब‌न‌ क‌र दूस‌रॊ का स‌हारा
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

बांट कर दुख‌ द‌र्द स‌ब‌का
भुला क‌र‌ अप‌ना प‌राया
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

जीव‌न कॊ ना तौल पैसॊ सॆ
यॆ तॊ है अन‌मॊल
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

सुख‌ और दुख कॊ प‌ह‌चान‌
है यॆ जीव‌न‌ का र‌स
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

ईश्व‌र‌ नॆ ब‌नाया स‌ब‌कॊ ऎक‌ है
तू भी ब‌न‌क‌र‌ नॆक
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

अप‌नॆ साथ‌ दूस‌रॊ कॆ आँसू पॊछ
पीक‌र ग‌म प‌राया
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

खुश र‌ह‌क‌र बांटॊ खुशियां
मुस्कुरातॆ हुऎ बिखॆरॊ फूलॊं की क‌लियां
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ |

बांध लॆ तू यॆ गाँठ
स‌म‌झ लॆ मॆरी बात
प‌ढ क‌र‌ मॆरी क‌विता बार‌ बार‌
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ
रॊज‌ ह‌मॆशा खुश र‌हॊ ||

अमित कुमार‌ सिह,  ’निदरलैंड्स’

 

**********************************************नगमें *********************************************

१.

प्यार क्या है ? एक ख़ुशी है कभी तो है गम कभी.

है करीब तो लगे पल, हो दूर तो है सदी.

हमे यु छुआ उस पल ने की सदी का एहसास दिला गया.

है दवा जो साथ दे तो, जो हो दूर तो बन जाये दारू.

है दिन में किरण, हो रात तो चांदनी,

ना हो तो है काली बदरी, हो ना तो है अमावस्या.

हमे भी मिली थी वो दवा जो दारू में बदल गयी,

थी चांदनी हमारी रात भी, की बादल से छा गए,

एक काली घनी रात में हमे तनहा बना गए.
२.

तुम साथ होती हो तो यूँ लगता है की समय मन रूपी पक्षी पे सवार कहीं उड़ा चला जा रहा है.

मैंने समय से गुज़ारिश की, ठहर, ठहर जा मेरे दोस्त की हमदम है मेरी बाहों में.

पर उसे भी अपने मीत से मिलने की जल्दी थी, वो ना रुका, बस मुस्कुराया के आगे बढ़ गया.

अब मैं तनहा फिर समय की रहमों करम के इंतज़ार में बैठा हो.

इस उम्मीद में की वो फिर मेरे हमदम को ले आएगा.

 

अमित सिंह , कुवैत

 

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नदियों की धारा है अविरल और निश्चल|

कहती है ऐ राही, तू चला चल चला चल|

मैं चलती हूँ चलती जाती हूँ,

दुसरो के पाप को समेटते जाती हूँ,

ना थकती हूँ, ना कहरती हूँ,

पत्थर से भी टकराती हूँ,

और कहीं दूर जा के सागर से मिल जाती हूँ|

कहीं पर मैं गंगा तो कहीं पर अम्स्टेल,

तू भी बन ऐ राही मेरे जैसा, अविरल और निश्चल|

 

२.

बेटियां

बाबा की राजदुलारी हूँ,

अम्मा की बिटिया प्यारी हूँ,

ये छोटी सी दुनिया मेरी,

ये छोटा सा संसार|

पर ये अम्मा क्या बोले हरदम,

तुझे जाना किसी और के द्वार है,

घर, अंगना, गुडिया, खिलौने,

सब छोड़ मुझे ही क्यों जाना,

मैं तो हूँ तेरे आंगन का एक छोटा सा कोना|

बाबा बोले बिटिया प्यारी,

तू माली है उस क्यारी की,

उसे संभालना तेरी जिम्मेदारी,

मैं बोली बाबा,

ये आंगन भी मेरा,

वो आंगन भी मेरा,

सदा खुश रहे ये छोटा सा बसेरा ,

बाबा मेरी तरफ देख मुस्कुराए,

बोले बिटिया तुझे किसी की नज़र ना लग जाए|

 

स्वाति सिंह देव , कुवैत

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