ज़िन्दगी

 

कितनी अजीब दास्ताँ है ज़िन्दगी
ख़ुशी और गम का शमा है ज़िन्दगी

ज़िन्दगी जीने का नाम है हँसते हँसते
गमों को पीने का जाम है हँसते हँसते
ज़िन्दगी एक खुली किताब है
पढ़ो तो लाज़वाब है
ना पढ़ो तो बेहिसाब है
खुलते बंद होते इन पन्नो में
खामोशियाँ ठहरी हैं कुछ लम्हों में
कोई रुक जाये इन से दर के
कोई कुचल के आगे बढ़े
आगे बढ़ने का नाम है ज़िन्दगी
कितनी अजीब दास्ताँ है ज़िन्दगी

 

-स्वाति सिंह देव

वाणिज्य प्रबंधन में स्नातकोतर पूरा करने के बाद वाराणसी में कुछ दिनों बैंक में कार्यरत रहीं|

विवाह के तत्पश्चात कुवैत आयीं| हिंदी लेखन, नृत्य और चित्रकारी में रूचि रखती हैं|

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