दर्द जब खुद बयान हो जाये,
सारी मुश्किल असान हो जाये।
अपनी अपनी सलीब ले आओ,
आओ इक इम्तहान हो जाये।
एक जब तू न पास हो मेरे,
सारी बस्ती वीरान हो जाये।
शुक्र है हम भी हैं ज़माने में,
वर्ना मस्जिद दुकान हो जाये।
ऐन मुमकिन है तेरी दुनिया में,
धूल उट्ठे, मकान हो जाये।
‘राज’ के ग़म का हल निकल जाये,
तू अगर निगहे बान हो जाये।
- सुमित राज वशिष्ट
शिक्षा :-
सनातक : महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक – हरयाणा से
स्नातक डिप्लोमा : पर्यटन : दिल्ली विश्वविद्यालय से 1993 में
आजकल : शिमला में रहता हुँ. लेखक, कवि, शायर. कहानियां, लेख अंग्रेज़ी में और कवितायेँ , ग़ज़लें हिंदी व उर्दू मे.
किताबें जो छप चुकी हैं :
Shimla – A British Himalayan Town : ये पहली किताब है अंग्रेज़ी में जो शिमला के बारे में सब कुछ बताती है. इसमें, नयी व पुरानी तस्वीरें हैं और लेख हैं.
Shimla Bazaar : में स्वयं को कुदरत का लेखक मानता हु. इस किताब में मेरे जीवन से जुड़ी हुयी कई घटनाओं को कहानियों के रूप में लिखा गया है।
Simla – Lanes & Trails : ये मेरी तीसरी किताब है जो शिमला की गाइड है. इसमें मेरे व्यवसाय से जुड़ी हुयी बातें हैं ।
Shimla Days : मेरी ये भी कहानियों की किताब हैं अंग्रेज़ी में।