१
सूखा आया तो कुछ तनकर बैठ गए
बाढ़ जो आई और अकड़कर बैठ गए
माँ की याद आने पर सारे लोग बड़े
छोटे-छोटे बच्चे बनकर बैठ गए
जिनके पैरों में थोड़ी हिम्मत कम है
वो तो थोड़ी देर ही चलकर बैठ गए
मंच पे रक्खी सबसे ऊंची कुर्सी पर
मंत्री जी जब गए तो अफसर बैठ गए
वो सच्चाई के हक में चिल्लाएंगे
वो हम जैसे नहीं कि डरकर बैठ गए
ज़िक्र वफ़ा का आया तो हम सब-के-सब
दीवारों के पीछे छुपकर बैठ गए
२
जो इस कोने में आओ तुम कभी क़व्वालियां लेकर
मिलूंगा चाय की खुशबू-भरी मैं प्यालियां लेकर
किसी के बोल देने से कोई छोटा नहीं होता
नहीं होता बड़ा कोई किसी को गालियां देकर
कोई देता है कम्प्यूटर, कोई देता मोबाइल है
खड़े सब भूख के मारे हैं खाली थालियां लेकर
जहाँ जम्हूरियत का ये तमाशा रोज़ होता है
वहाँ मैं रोज़ जाता हूं, बहुत-सी तालियां लेकर
जो इन बंज़र ज़मीनों पर चलता हल मिले तुमको
उसे गेहूँ की तुम आना वो पहली बालियां देकर
बुझे सपनो, बुझे चूल्हो, डरे लोगो, ज़रा सुन लो
मैं फिर से आ रहा हूँ आग और चिंगारियां लेकर
- डॉ. राकेश जोशी
शिक्षा: अंग्रेजी साहित्य में एम. ए., एम. फ़िल, डी. फ़िल.
प्रकाशित कृतियांः काव्य-पुस्तिका “कुछ बातें कविताओं में”, एक ग़ज़ल संग्रह “पत्थरों के शहर में”, तथा हिंदी से अंग्रेजी में अनूदित एक पुस्तक “द क्राउड बेअर्स विटनेस”.
प्रकाशनः हिंदी ग़ज़लें अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित.
सम्प्रति: असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (अंग्रेजी़) , राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
संपर्कः देहरादून, उत्तराखंड