ग़ज़ल – डॉ प्रभा शर्मा ‘सागर’

किसमें कितना पानी है,
ये कहना बेमानी है।

दुनिया के हैं रंग हजार,
खाक बराबर छानी है,

आपस में कोई मेल नहीं,
हर सू खींचा तानी है,

घर में घर लुट जाए तो
इसमें क्या हैरानी है।

अकड़ दिखा मत धरती को
धरती माता रानी है

खौफें खुदा अब रहा नहीं।
घर घर में मनमानी है

“सागर” क्युं तुम पागल हो
ये दुनिया कुछ दीवानी है।

 

- ग़ज़ल – डॉ प्रभा शर्मा ‘सागर’

जन्म: सागर (मध्य प्रदेश )

मातृभाषा : हिंदी (बुंदेलखंडी )

शिक्षा : एम ए , बी एड , बी एस सी

मानद उपाधि : डॉ

प्रकाशन : गजल /कविता संग्रह “तिमिर की उम्र ढलती जा रही है “, नवभारत , दबंग दुनिया , लोकजंग , महानगर आदि विभिन्न पात्र पत्रिकाओं में लेख /कवितायेँ प्रकाशित।

प्रसारण : मुंबई आकाशवाणी से कथा।

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