ग़ज़ल – कादम्बरी मेहरा

दिल की न दिल में रह जाये , कुछ ऐसा कर इज़हार ज़रा।
तू अपने दिल की कह डाले मैं अपनी तुझे सुनाऊंगा।

 

होने को तो इस दुनिया में हैं रिश्ते नाते यार बहुत ,
मेरे सुर पे जो गायेगा, मैं हमदम उसे बनाऊँगा।

बहुत जी लिए दुनिया में मुंह जोह जोह कर लोगों का
मैं अपनी हस्ती रखता हूँ ,अब उनको यह समझाऊंगा।

ये सच है के रहता है खुदा हर ज़िंदा के दिल में पिन्हा
जब मुझको हो अहसास -ए – ख़ुदा ,मैं सर को तभी झुकाऊँगा।

पाये का मुझे ” घमंड ” नहीं खोया तो जानो दान हुआ ,
मैं खुद्दारी का क़ायल हूँ , हर हाल कमा कर खाऊंगा।

जो जलते हैं वो शोर करें , पत्थर फेंकें या नाम धरें ,
मैं हर मुक़ाम की चोटी पर अपना परचम फहराऊंगा।

तदबीर मेरी मेहनत ईमान , बिन इनके क्या बन पाओगे ,
तुम जहां खड़े थे वहीँ रहे ,मैं आगे बढ़ता जाऊंगा।

 

रिश्ते ऊपर से बनते हैं ,वो जनम के हों या शादी के ,
ग़र इनमे ख़यानत करते हो तो गुनहगार ठहराऊंगा।

 

- कादंबरी मेहरा


प्रकाशित कृतियाँ: कुछ जग की …. (कहानी संग्रह ) स्टार पब्लिकेशन दिल्ली

                          पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) सामयिक पब्लिकेशन दिल्ली

                          रंगों के उस पार (कहानी संग्रह ) मनसा प्रकाशन लखनऊ

सम्मान: भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान २००९ हिंदी संस्थान लखनऊ

             पद्मानंद साहित्य सम्मान २०१० कथा यूं के

             एक्सेल्नेट सम्मान कानपूर २००५

             अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच २०११ लखनऊ

             ” पथ के फूल ” म० सायाजी युनिवेर्सिटी वड़ोदरा गुजरात द्वारा एम् ० ए० हिंदी के पाठ्यक्रम में निर्धारित

संपर्क: यु के

Leave a Reply