ग़ज़ल – अमिताभ विक्रम द्विवेदी

मेरे महबूब दिल में तेरे क्या चल रहा है ।

क्यों मुस्कुराकर तू मुझे यों छल रहा है ॥

कहते हैं वफ़ा होती है दिखाई नहीं जाती ।

क्यों बेवफ़ा होकर वो फिर मचल रहा है ॥

कसमें खाता है जीने-मरने की हर रोज़ ।

मार कर मेरा कातिल यों संभल रहा है ॥

कहता है प्यार है तो जताते क्यों नहीं ।

प्यार तेरा बिन वफ़ा क्यों उबल रहा है ॥

सोते जागते करता है सिर्फ मेरी ही बातें ।

लगता प्यार में शतरंज कोई चल रहा है ॥

 – अमिताभ विक्रम द्विवेदी

अमिताभ विक्रम द्विवेदी का जन्म लखनऊ में हुआ था । जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान और केन्द्रीय अँग्रेजी और विदेशी भाषाएँ संस्थान से अँग्रेजी साहित्य की शिक्षा प्राप्त करके, 2008 में आप श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के लिए चुने गए । आपकी दो पुस्तकें, ए ग्रैमर ऑफ हाड़ौती (२०१२) और ए ग्रैमर ऑफ भदरवाही (२०१३), लिंकोम यूरोपा अकैडमिक पब्लिकेशन्स (म्यूनिक) से प्रकाशित हो चुकी हैं । आपकी सौ से अधिक कविताएँ विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, संकलनों, और जरनलों में प्रकाशित हो चुकी हैं। अभी हाल में आपकी कविता ‘मदर’ को पलग्रेव पब्लिकेशन्स से प्रकाशित ‘मदरहुड एण्ड वार: इंटरनेशनल पर्सपेकटिव्स’ में प्रस्तावना के रूप में शामिल किया गया । हाल ही मैं ‘चिनार का सूखा पत्ता” (२०१५) काव्य संग्रह का प्रकाशन हुआ ।

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