ग़ज़ल – अनमोल

कहाँ गयी ताक़त मरदानी सोच रहा हूँ
सूखा कैसे आँख का पानी सोच रहा हूँ
याद भगत, आजाद न बिस्मिल आते हमको
जंग लगी है आज जवानी सोच रहा हूँ
भूल गये हम सत्य, अहिंसा की बातों को
बिसर गयी बापू की बानी सोच रहा हूँ
ग़लतफहमियाँ होतीं आयीं अपनों में फिर
बंदूकें क्यूँ हमने तानी सोच रहा हूँ
घर-आँगन-चौबारे सिमटे, खो बैठे हम
दादा-दादी, नाना-नानी सोच रहा हूँ
जब पोते ने पाँव छुए तो छलकी आँखें
नया ज़माना, रीत पुरानी सोच रहा हूँ
बड़ी सादगी से कह जाती दादी कैसे
बात बात में बात सयानी सोच रहा हूँ
सरहद के उस ओर से आके पंछी बोला
दो भाई है, एक कहानी सोच रहा हूँ
सपनों में अनमोल हमेशा आ जाते हो
जाने क्या है तुमने ठानी सोच रहा हूँ

 

- अनमोल

जन्मतिथि: 19 सितंबर

जन्म स्थान: सांचोर (राज.)

शिक्षा: स्नातकोत्तर (हिन्दी)

संप्रति: लोकप्रिय वेब पत्रिका ‘हस्ताक्षर’ में प्रधान संपादक

प्रकाशन: 1. ग़ज़ल संग्रह ‘इक उम्र मुकम्मल’ प्रकाशित (2013)
       2. कुछ साझा संकलन में रचनाएँ प्रकाशित
       3. देश भर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व अंतरजाल पर अनुभूति, साहित्यदर्शन, स्वर्गविभा, अनहदनाद, साहित्य रागिनी, हमरंग आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित

संपादन: 1. साहित्य प्रोत्साहन संस्थान, मनकापुर की पुस्तक शृंखला ‘मीठी-सी तल्खियाँ’ के भाग 2 व 3  का संपादन
       2. पुस्तक ‘ख्वाबों के रंग’ का संपादन
       3. वेब पत्रिका ‘साहित्य रागिनी’ का सितम्बर 2013 से जनवरी 2015 तक संपादन

पता:  अनमोल-प्रतीक्षा, रूड़की (हरिद्वार) उत्तराखंड

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