है तू नन्हा सा ,
मेरे दिल का टुकड़ा सा।
कहते हैं सब तू हैं पापा की परछाई
पर मेरी तो है जान तुझमे समाई।
तेरे हर एक स्पर्श से , मन खुश हो हो जाता है
तेरी मुस्कुराहट देख कर सब दर्द भूल जाता है।
जब तू जिद मचाता है , मुझको गुस्सा आता है
एक पल में तेरी सूरत देख , मन पिघल सा जाता है।
करती हूँ इंतज़ार उस दिन का , जब तू माँ बुलायेगा
ठुमक ठुमक कर चल कर , मेरा घर आँगन महकायेगा।
है तू नन्हा सा ,
मेरे दिल का टुकड़ा सा।
- स्वाति सिंह देव
वाणिज्य प्रबंधन में स्नातकोतर पूरा करने के बाद वाराणसी में कुछ दिनों बैंक में कार्यरत रहीं।
विवाह के तत्पश्चात कुवैत आयीं। हिंदी लेखन, नृत्य और चित्रकारी में रूचि रखती हैं।