हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये
सुनाए जो लोरी वो माँ चाहिये
कहा किसने सारा जहाँ चाहिये
हमें सिर्फ़ हिन्दोस्ताँ चाहिये
जहाँ हिंदी भाषा के महकें सुमन
वो सुंदर हमें गुलसिताँ चाहिये
जहाँ भिन्नता में भी हो एकता
मुझे एक ऐसा जहाँ चाहिये
मुहब्बत के बहते हों धारे जहाँ
वतन ऐसा जन्नत-निशाँ चाहिये
तिरंगा हमारा हो ऊँचा जहाँ
निगाहों में वो आसमाँ चाहिये
खिले फूल भाषा के ‘देवी’ जहाँ
उसी बाग़ में आशियाँ चाहिये.
- देवी नागरानी
जन्मः ११ मई
जन्म स्थान: कराची ( तब भारत )
शिक्षाः स्नातक, मोंटेस्सोरी बी॰ एड , NJ में NJCU से हासिल गणित की डिग्री
मातृभाषाः सिंधी, सम्प्रतिः शिक्षिका, न्यू जर्सी.यू.एस.ए.(Now retired) .
जन्मः ११ मई, १९४१, कराची, पति का नाम: भोजराज नागरानी, माँ का नाम; हरी लालवानी । पिता का नाम: किशिन चंद लालवानी, शिक्षाः स्नातक, मातृभाषाः सिंधी, सम्प्रतिः शिक्षिका, न्यू जर्सी.यू.एस.ए(अब रिटायर्ड), भाषाज्ञान: हिन्दी, सिन्धी, उर्दू, मराठी, अँग्रेजी, तेलुगू प्रकाशित कृतियां : “ग़म में भीगी ख़ुशी“(२००४) , “चराग़े -दिल“ (२००७) , “आस की शम्अ” (२००७), “उडुर-पखिअरा“ सिंधी-भजन(२००८), सिंधी गज़ल-संग्रह,(२००८) “ दिल से दिल तक“, (२००८), “लौ दर्दे-दिल की” हिंदी ग़ज़ल-संग्रह( २००८) , “सिंध जी आँऊ ञाई आह्याँ” सिंधी-काव्य, कराची में (२००९), “द जर्नी “ अंग्रेजी काव्य-संग्रह( २००९) , “भजन-महिमा” (हिन्दी-भजन २०१२ ), “ग़ज़ल” सिन्धी ग़ज़ल-संग्रह (२०१२), “और मैं बड़ी हो है” अनुदित: कहानी- संग्रह (२०१२), बारिश की दुआ ( अनुदित कहानी संग्रह –प्रेस में) प्रसारणः कवि-सम्मेलन, मुशायरों में भाग लेने के सिवा नेट पर भी अभिरुचि. कई कहानियाँ, गज़लें, गीत आदि राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित। समय समय पर आकाशवाणी मुंबई से हिंदी, सिंधी काव्य, ग़ज़ल का पाठ. राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ( NJ, NY, Oslo) द्वारा निमंत्रित एवं सम्मानित
- सन्मानः न्यू यार्क में अंतराष्ट्रीय हिंदी समिति, विध्या धाम संस्था, शिक्षायतन संस्था की ओर से ’Eminent Poet’ , “काव्य रतन”, व ” काव्य मणि” पुरुस्कार, न्यू जर्सी में मेयर के हाथों “Proclamation Awarad” रायपुर में अंतराष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन में सृजन-श्री सम्मान, मुम्बई में काव्योत्सव, श्रुति संवाद साहित्य कला अकादमी , महाराष्ट्र हिंदी अकादमी, राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद की ओर से वर्ष २००९ पुरुसकृत एवं सन्मानित. , जयपुर में ख़ुशदिलान-ए-जोधपुर के रजत जयंती समारोह में((२२ अगस्त, २०१०), ’भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम” ओस्लो में सन्मानित. (मई १७, २०११), “जीवन ज्योति पुरस्कार”, जीवन ज्योति संस्था की ओर से , भारत के 63 गंततंत्र दिवस पर मुंबई में (26 जनवरी 2012), “अखिल भारतीय सिंधी समाज” का गोवा में 22 वां राष्ट्रीय सम्मेलन श्री लछमनदास केसवानी के अंतर्गत, मुख्य अतिथि की हाज़िरी में सम्पूर्ण हुआ। इस अवसर पर विशिष्ट सन्मान (सिन्धी-24,25,26, फरवरी 2012), अखिल भारत सिंधी भाषा एवं साहित्य प्रचार सभा की ओर से लखनऊ में टेकचंद मस्त व बिनीता नागपाल द्वारा आयोजित 90 नेशनल सेमिनार “स्त्री शक्ती” पर , जिसमें शिरकत के लिए सखी साईं मोहनलाल साईं के हाथों सनमानित(सिन्धी-15,16,17 मार्च 2012), भारतीय भाषा संस्कृति संस्थान –गुजरात विध्यापीठ अहमदाबाद, के निर्देशक श्री के॰ के॰ भास्करन, प्रोफेसर निसार अंसारी, एवं डॉ॰ अंजना संधीर के कर कमलों से सुत माला, सुमन, शाल से सन्मानित(18 जून, 2012), साहित्य अकादेमी तथा रवीन्द्र भवन के संगठित तत्वधान के अंतर्गत शुक्रवार 2012, रवीद्र भवन मडगांव, गोवा में सर्वभाषी ‘अस्मिता’ कार्यक्रम में सिन्धी काव्य पाठ में भागीदारी (9 नवम्बर 2012)। तमिलनाडू हिन्दी अकादमी एवं धर्ममूर्ति राव बहादुर कलवल कणन चेट्टि हिन्दू कॉलेज, चेन्नई के संयुक्त तत्वधान में आयोजित विश्व हिन्दी दिवस एवं अकादमी के वर्षोत्सव में भागीदारी, अकादमी के अध्यक्ष डॉ॰ बलशौरी रेड्डी के हाथों सन्मान (10 जनवरी २०१३), दिल्ली साहित्य अकादेमी द्वारा गणतन्त्र दिवस और सिन्धी के वरिष्ठ शायर हरी दिलगीर की याद में संयोजित संस्कृत व साहित्यिक काव्यगोष्टी में भागीदारी (२० जनवरी, २०१३)।
कलम तो मात्र इक जरिया है, अपने अँदर की भावनाओं को मन की गहराइयों से सतह पर लाने का. इसे मैं रब की देन मानती हूँ, शायद इसलिये जब हमारे पास कोई नहीं होता है तो यह सहारा लिखने का एक साथी बनकर रहनुमाँ बन जाता है. लिखने का प्रयास शुरुवाती दौर मेरी मात्रभाषा सिंधी में हुआ। दो ग़ज़ल संग्रह सिंधी में आए, कई आलेख, और समीक्षाएं लिखीं, फिर कदम खुद-ब खुद राष्ट्रभाषा की ओर मुड़ गए, शायद विदेश (न्यू जर्सी) में रहते हुए साहित्य की धारा हिन्दी में प्रवाहित हुई और देश की जड़ों से जुड़ी यादें काव्य-रूप में कलम के प्रयासों से कागज़ पर उतरने लगी। प्रवास में हिन्दी अकादेमी द्वारा कई संग्रह निकले जिनमें शामिल रही। प्रवासी परिवेश पर आधारित लेख, कहानियाँ, और समीक्षात्मक आलेख लिखना एक प्रवर्ती बन गयी। ग़ज़ल विधा मेरी प्रिय सहेली है, बस एक शेर में अपने मनोभाव को अभिव्यक्त करने का साधन और माध्यम। शिक्षिका होने का सही मतलब अब समझ पा रही हूँ, सिखाते हुए सीखने की संभावना का खुला आकाश सामने होता है, ज़िंदगी हर दिन एक नया बाब मेरे सामने खोलती है, चाहे-अनचाहे जिसे पढ़ना और जीना होता है, यही ज़िंदगी है, एक हक़ीक़त, एक ख्वाब!!
यह ज़िंदगी लगी है हक़ीक़त, कभी तो ख्वाब
वह सामने मेरे खुली, जैसे कोई किताब
देवी नागरानी