हिंदी से मेरी बात

आज मेरी हिंदी भाषा से बात हो गयी
मैंने पूछा क्यूँ कोने में बैठी हो ?…
और हो कुछ सकुचाई |
बोली, भाषा हिंदी और मुस्काई
मुझे बोलने वाले आज कही खो गए हैं
लगता है गहरी निद्रा में सो गए हैं
सोचती हूँ, मेरा तो अस्तित्व मर रहा है
कुछ महा पुरुषों से ही मेरा वंश चल रहा है
उन्होंने ही रखा है मेरा मन
इसीलिये करती हूँ उन्हें बार बार नमन
कितनी अकेली पड गयी हूँ
किसी गहरे गड्ढे में गिर गयी हूँ
साल में एक दिन आता है
जब मुझे मेरे जीवित होने का,
आभास मात्र कराया जाता है
यही मेरी अस्मिता है आज
नाराज़ होकर गर चली गयी तो
ढूंढता रह जाएगा मुझे यह हिंदी समाज |

 

- सविता अग्रवाल “सवि”

 

आप एक हिंदी भाषी और हिंदी प्रेमी हैं ।
आपको कवितायेँ, कहानियां और संस्मरण लिखने का शौक है ।

निवास : मिसिसागा, कनाडा

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