हिंदी एक ऐतिहासिक भाषा ही नहीं एक पूरा इतिहास बताने में समर्थ भाषा है . इसके अनेकों शब्द अपने आप में एक पूरी कहानी समेटे हुए हैं . इस भाषा का प्रादुर्भाव संस्कृत भाषा से हुआ है और यह सर्वमान्य तथ्य है कि संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषा है . संस्कृत से ही शब्द निकला है —संस्कार . जिसमे उचित संस्कार हों वही व्यक्ति सुसंस्कृत कहलाता है . संस्कृत भाषा उत्तर भारत की सभी भाषाओं का मूल है परन्तु इसका प्रभाव दक्षिण भारत की भाषाओं पर भी भरपूर पड़ा जिसके कारण आज भारत में धार्मिक व सांस्कृतिक एकता स्थापित हो सकी .
आज कम्प्यूटर के युग में भारतीय भाषाओं को कम इस्तेमाल किया जा रहा है .यह उचित नहीं है . भारतीय शब्दों का प्रयोग करके ही हम हिंदी की समृद्धी को समझ पायेंगे . इस भाषा के शब्दों का आकलन करके हम पूरे विश्व का इतिहास लिख सकते है . जो इतिहास लिखा गया है वह सापेक्षिक है . हमने यह काम लुटेरे आगंतुकों पर छोड़ दिया . पहले मुग़ल फिर अंग्रेज . दोनों ही जातियां हमारे देश की सांस्कृतिक संपदा से अनभिज्ञ व हेठी थीं . भारत पर राज करने वाले ना स्वयं सुशिक्षित थे और न ही वह चाहते थे कि शिक्षा बनी रहे . उन्होंने अपनी उच्चता को पोषित करने के लिए भारत के इतिहास को गलीचे के नीचे बुहार दिया . इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है लॉर्ड मकॉले का भाषण जो उन्होंने ब्रिटिश पार्लियामेंट को दिया . ई० तारीख थी २ फरवरी १८३५ .
” I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar , who is a thief . Such wealth I have seen in this country ,such high moral values , people of such calibre , that I do not think we would ever conquer this country , unless we break the very backbone of this nation , which is her spiritual and cultural heritage , and , therefore, I propose that we replace the old and ancient education system , her culture , for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own ,they will lose their self esteem their native culture and they will become what we want them ; a truly dominated nation . ”
हिंदी में अनुवाद :—-
”मैंने भारत की पूरी लम्बाई और चौडाई की यात्रा की है मगर मैंने ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं देखा जो भिखारी या चोर हो . ऐसी दौलत मैंने इस देश में देखी , ऐसे उच्चादर्श ,ऐसी योग्यता कि जैसी कहीं भी नहीं देखी . मै नहीं सोचता कि हम कभी इन लोगों को जीत पायेंगे जब तक कि हम उनकी रीढ़ ही ना तोड़ दें जो कि उनकी वर्षों पुरानी संस्कृति और आध्यात्मिकता है . इसलिए मै चाहता हूँ कि इनकी शिक्षा पद्धति ही ख़तम कर दी जाय क्योंकि अगर भारतीय यह मान लें कि विदेशी वस्तुएं और सभ्यता उनसे अच्छी है तो उनका स्वाभिमान टूट जाएगा और वह वही बन जायेंगे जो हम चाहते हैं —हमारे गुलाम . ” शिक्षा संस्थाओं के उन्मूलन के साथ साथ अंग्रेजी भाषा को राजकाज की भाषा बना कर हिन्दी के वर्चस्व को कम कर दिया गया .पढने वालों को अंग्रेजी लिखना पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया जिससे उन्हें नौकरी मिल सकती थी .
इतिहास साक्षी है कि इसके बाद ही से विलियम बेंटिंक ने भारतीय रीति रिवाजों में दखल देना शुरू किया जिसके परिणाम स्वरूप जो आक्रोश जनता में फैला वह सन १८५७ तक आते आते अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया . अनेकों अन्य गवर्नर जनरलों ने इस रोष की परवाह न करते हुए जो परिवर्तन राज काज में किये उन्ही का सीधा फल निकला —- १८५७ ई० की क्रांति या भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम . स्वतंत्रता संग्राम के बाद जो एक संस्था देशी लोगों की बनाई गयी राज काज में मदद करने के लिए वह उन लोगों की थी जो अंग्रेजों के पिछलग्गू थे , अंगरेजी ढंग से रहते थे , पहनते ओढ़ते थे और अपने को अंग्रेज समझते भी थे , यह अंगरेजी बोलते थे और अपने बच्चों को अंगरेजी स्कूलों में भेजते थे , अफ़सोस भारत आज इन्ही के कटखनो पर चल रहा है . किसी देश की अस्मिता को ख़तम करना है तो उसकी भाषा को ख़तम कर दो .
पिछले तीस सालों में अंगरेजी शिक्षा का वर्चस्व बढ़ा है . इसके लिए जिम्मेदार , कुछ हद तक , शिक्षा में आरक्षण की नीति है . कोई भी नीति जनता की सेवा के लिए बनाई जाती है परन्तु भारत में नीतियां बना कर सब निश्चिन्त हो जाते हैं . उसका सही प्रयोग हो रहा है या नहीं यह देखना धरम नहीं . अतः आरक्षण की नीति केवल एक राजनैतिक हथियार बन कर रह गयी जिसके तहत वोट हासिल किये जाते हैं . शिक्षा के क्षेत्र में अनेकों पिछड़ी जातियों के विद्यार्थी केवल अपनी जाति के विशेषाधिकारों की बिना पर योग्य विद्यार्थियों के समकक्ष भरती कर दिए गए जिससे शिक्षा का स्तर गिरता गया . जो छात्र ऊंची योग्यता रखते थे उनके अभिभावक उन्हें अंगरेजी स्कूलों में ले गए जहां निजी विशेषाधिकारों के चलते संस्थाएं आरक्षण के क़ानून से बाध्य नहीं थीं . यह संस्थाएं चर्च और क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा चलाई जाती रही हैं और इनमे हिंदी भाषा गौण रहती आई है . अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव से और व्यापार के क्षेत्र में विदेशी निवेश के कारण भारत की आर्थिक उन्नति के साथ साथ , उपभोगवाद कुछ इस हद तक बढ़ा है कि भाषा संस्कृति आदि सब ताक पर फेंक दी गयी है . हिंदी संस्कृत और तमिल बोलने वाले पिछड़े हुए समझे जाते हैं . कबीर हों या रहीम , नानक हों या तुलसी ,सबकी छुट्टी कर दी गयी है . जिस फिल्म उद्योग ने भारत के कोने कोने में हिंदी को पहुंचाया था अब अंग्रेजी में बोलने लगा है . एक भी फिल्म किसी हिंदी या तमिल लेखक की कहानियों पर नहीं बनती . सभी अंग्रेजी की किसी पुरानी फिल्म की नक़ल होतीं हैं जो भारत से बाहर बसे भारतीयों को रोने पर मजबूर कर देतीं हैं क्योंकि नक़ल बेहद खराब होती है . एक एक शब्द करके अंग्रेजी भाषा हमारे फिल्मवाले भारत को सिखा रहे हैं ,
हमसे ही सीखकर अंग्रेजों ने बहुत तरक्की की . मगर इसे भारत के बहुत कम लोग जानते हैं .क्योंकि यह इतिहास वह नहीं पढ़ पाते . यह सब हिंदी में लिखा ही नहीं गया कभी . हमें इतिहास पढ़ाया जाता है हमारी हार का . मुग़लों का या अंग्रेजों का . नाकाम राजाओं का या भटके हुए धर्मान्धों का . . भारत ने विश्व को क्या दिया यह बहुत कम लोग जान पाते हैं क्योंकि यह सब अंग्रेजों ने अपनी भाषा में अपने नाम से लिखा . और भारत को इसकी खबर तक नहीं . कोण में cone में रखकर आइसक्रीम खाना हर हिन्दुस्तानी को आ गया .मगर किसी ने नहीं जाना कि यह कोण शब्द हमारे गणितज्ञों ने विश्व को सिखाया . त्रिकोणीय ज्यामिति trigonometry भारत में सिन्धु घाटी सभ्यता के काल से प्रचलित थी भवन निर्माण कला में ,यह कितने लोग जानते हैं .
त्रिकोण, जो triangle बन गया अंग्रेजी में, भारत की ईजाद है . इसी तरह दशमलव , इसी तरह शून्य जिसके कारण दशांश गणित का place value का आविष्कार हुआ जिसे abacas कहा जाता है . भारत के गणितज्ञों ने ही ईसा मसीह के जन्म की भविष्य वाणी की थी .
अभी हाल में बीबीसी की ओर से एक फिल्म बनाई गयी गणित के इतिहास पर . ग्रीक इतालवी . चीनी अंग्रेज आदि सबका जिक्र किया गया . आर्य भट्ट या लीलावती या रामानुजम या शकुन्तलादेवी आदि किसी का नाम नहीं लिया गया . ना बीजगणित ना रेखागणित ना त्रिकोणीय ज्यामिति .ना नाविक माप जो भारत के आविष्कार थे और सिकंदर के आगमन के बाद ग्रीस और रोम पहुंचे .
क्या है इस उपेक्षा का कारण ? क्या अंग्रेजों को ग्रीक ज्यादा प्यारे थे ? हरगिज़ नहीं . पर आधुनिक काल में धर्म एक है इसलिए मिशनरी भाईचारा जहां तक जाता है वहाँ तक मान्यता देते हैं . हम इसपर प्रतिवाद नहीं करते . उठकर कहते नहीं कि यह गलत है ,इसलिए वह अपनी पेलकर बड़े बन जाते हैं . हम खुद ही नहीं बता रहे अपने लोगों को तो उन्हें क्या पड़ी है .
क्या आपको पता है कि वेटिकन शब्द वाटिका से बना है ? कि वेटिकन में शिवलिंग स्थापित था ? कि वेटिकन में मनीषियों को बुलाया जाता था धर्म, गणित , ज्योतिष , भूगोल राजनीति आदि विषयों पर विवाद करने के लिए ? तब इस्लाम नहीं था . भारतीय धर्म व भाषा कश्यप सागर तक फैला हुआ था . आज का रूमानिया देश भारतियों का बसाया देश है . आज भी रूमानिया के लोग चर्च में ईसामसीह और माता मेरी की मूर्ती की परिक्रमा करते हैं . हाथ जोड़कर घुटनों के बल बैठकर प्रार्थना करते हैं . धर्म बदल गया मगर युगों से पैठे संस्कार जीवित रहे . वही हिन्दू धर्म के रिवाज . उसी के पास वारसा नामक शहर , जो पोलैंड में है , वर्षा शब्द से बना .
बी बी सी की एक और पेशकश है घड़ियों का इतिहास .कहीं भी जलघडी का उल्लेख नहीं किया . सूर्य किरण की दिशा से समय बताया जाता था . परन्तु जब वह बादलों से ढकी होती थीं तब समय बताना कठिन होता था . इसलिए हमारे देश में जल घड़ी का अविष्कार हुआ . हम लीलावती की कहानी पढ़ते हैं . लीलावती के भाग्य में विवाह सुख नहीं लिखा था . उनके पिता ने अपने समूचे ज्योतिष ज्ञान को खंगोल डाला . अंत में उन्हें एक ऐसा मूहूर्त नज़र आया जिसमे विवाह करने से अनिष्ट टल सकता था . उन्होंने एक सुयोग्य वर देखकर विवाह सुनियोजित किया . मूहूर्त तय करने के लिए उन्होंने एक कटोरे में पानी लिया और उसके पेंदे में एक बारीक सा छेद कर दिया . पानी एक निश्चित वेग से धीमे – धीमे टपकने लगा तो दुल्हन से कहा कि जब सारा पानी निकल जाय तब वरमाला पहनाना . जब मंत्र आदि पढ़े जा रहे थे तभी एक साँप मंडप में निकला और उसने वर को डस लिया . वर वहीँ मर गया . इस पर लीलावती के पिता ने देखा कि यह कैसे हुआ . उन्होंने पाया कि लीलावती की माला का एक मोती उस कटोरे में गिर गया था और वह छेंक बंद हो गया था . किसी ने ध्यान नहीं दिया . लीलावती बिना ब्याही रह गयी मगर उसने अपने पिता को वचन दिया कि वह ऐसा नाम कमाएगी कि कभी नहीं मिटेगा . कालांतर में लीलावती ने अपने पिता से गणित सीखा और वह बीजगणित की पहली विद्वान बनी . उसकी माला से जो नन्हा सा बीज कटोरे में गिरा था उसी के कारण उसके द्वारा चलाए गणित को बीजगणित कहा गया .
जलघडी का साक्ष्य आज भी हमारे मंदिरों में जीवित है . हम शिव मंदिर में शिवजी के ऊपर एक घरौन्ची के ऊपर रखे घड़े में से बूँद बूँद टपकता पानी देखते हैं . बारह बजे यह घडा खाली हो जाता है और देव शयन का समय हो जाता है . यह घडा समय बताने के लिए यन्त्र था तभी आजतक मंदिरों में इसका स्थायित्व बना हुआ है . यदि इसकी यह उपयोगिता ना होती तो यह कबका निर्वासित कर दिया गया होता . अनेकों रीति रिवाज़ समय के अंक में समा गए क्योंकि वह वैज्ञानिक नहीं थे परन्तु यह जलप्लावन केवल पत्थर के शिव का प्रक्षालन ना होकर एक जलघडी है . आज के युग में इसे कोई नहीं जानता . और हम मंदिरों की एक प्रथा के रूप में इसे बिना सवाल किये स्वीकार कर लेते हैं . बहुत संभव है की शुरू शुरू में यह पूरे समय चलता रहता हो . मंदिर का पुजारी जल ख़तम हो जाने पर दूसरा रख देता होगा . बराबर मंदिर से समय का उदघोष करता होगा . जनता के भले के लिए यह एक अनिवार्य सेवा थी जिसका उत्तरदायित्व पुजारी ही अच्छी तरह निभा सकता था .अब इन शब्दों में इस यन्त्र का प्रमाण देखिये
घट = घड़ा
घटना = कम होना
घटाना = कम करना
घटी = जो हो चुकी
घटना = जो घटी
घटित = जो वास्तव में हुआ .
यह सभी शब्द ‘ घट ‘ से प्रसूत हैं और भूतकाल के द्योतक हैं . जब घड़ा खाली हो जाता है तब उसमे से नन्न का स्वर निकलता है . अन्यथा नहीं . यदि घट में नन्न जोड़ दिया जाय तो शब्द बनता है ‘घंट ‘ यानी घंटा .
घट शब्द आम आदमी की बोली में घड़ा बनगया तो उसकी बनी घड़ी भी घड़ी कहलाई . यह एक यन्त्र था इसका दूसरा शाब्दिक साक्ष्य है गुजराती भाषा का शब्द ‘ कला ‘ . कल यानि नलका जिससे पानी निकलता है . पानी की आवाज़ को ‘ ‘ कल कल ‘ कहा जाता है . गुजराती में ‘ कला ‘ का मतलब है घंटा .
यह शब्द चूंकि संस्कृत भाषा में सदियों से उपलब्ध हैं यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि पहली घड़ी जलघडी थी जो भारत में जन्मी . कदाचित रेत घड़ी भी भारत के पश्चिमी भाग में ईजाद हुई जहां पानी की किल्लत थी . रेत के निरंतर प्रवाह को उपयोग में लाकर रेतघड़ी का अविष्कार हुआ . कदाचित हमारे वंजारे इसे अरब और दूसरे देशों में ले गए .
कोई भी भाषा अगर खोली फरोली जाय तो इतिहास छन कर सामने आता है . इतिहास हमारे गौरव की गाथा है . इससे हमारा स्वाभिमान वर्धित होता है . आज के युग की पुकार है कि हम अपनी सच्ची अस्मिता को पहचानें और उसे दुनिया के सामने लायें . अगले भाग में मै अन्य कई ऐसे ही शब्दों से आपका परिचय कराऊंगी जो भारत की श्रेष्ठता को सिद्ध करते हैं .
-कादंबरी मेहरा
प्रकाशित कृतियाँ: कुछ जग की …. (कहानी संग्रह ) स्टार पब्लिकेशन दिल्ली
पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) सामयिक पब्लिकेशन दिल्ली
रंगों के उस पार (कहानी संग्रह ) मनसा प्रकाशन लखनऊ
सम्मान: भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान २००९ हिंदी संस्थान लखनऊ
पद्मानंद साहित्य सम्मान २०१० कथा यूं के
एक्सेल्नेट सम्मान कानपूर २००५
अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच २०११ लखनऊ
” पथ के फूल ” म० सायाजी युनिवेर्सिटी वड़ोदरा गुजरात द्वारा एम् ० ए० हिंदी के पाठ्यक्रम में निर्धारित
संपर्क: यु के