गागर छोटी
भरूं मैं तो सागर
हाइकु हो क्या?
बहती जाए
नयनों से नदियाँ
सागर हो क्या ?
महक उठा
मोरा माटी सा तन
फुहार हो क्या ?
डूब चली मैं
नेह ज्वार उमडा
चन्दा हो क्या ?
तिरती जाऊं
ज्यों लहरों पे नैया
खिवैया हो क्या ?
तुमने छुआ
क्या से क्या बन चली
पारस हो क्या ?
कुछ यूँ लगा
उमंगित है मन
त्यौहार हो क्या ?
कौन हो तुम ?
कितने रंग तेरे
चितेरे हो क्या ?
जो भी हो तुम
हो जन्मों के मीत
कह भी दो हाँ
मैं नहीं बोली
बोल पडी कविता
छंद ही हो ना ?
- कमला निखुर्पा
शिक्षा- एम. ए. बी.एड कुमायूँ विश्वविद्यालय (उत्तराखंड)
संप्रतिः प्राचार्य, केन्द्रीय विद्यालय कृभको, सूरत (गुजरात)
सृजन कार्य- विभन्न संग्रहों तथा पत्र पत्रिकाओं में कविता , हाइकु, लघुकथाएं, संस्मरण आदि प्रकाशित।