हँसो मत, गंभीर रहो

मेरा एक दोस्त मौनीराम बड़ा संस्कारी है। बाकी मामले में हो तो बात समझ में आती है लेकिन हँसने और मुसकराने के मामले में भी उसका संस्कार आड़े आता है। उसे किसी ने भी हँसते हुए नहीं देखा आज तक। हँसना-मुसकराना असभ्यजनों का काम है। गंभीर रहना, सभ्यजनों का कर्म है। उसका नारा है, ”हँसो मत, गंभीर रहो।”
मेरा शरारती मित्र चुलबुल सिंह, मौनीराम के नारे का ‘कॉमा” उठा कर एक शब्द पहले रख देता और कहता है- ‘हँसो, मत गंभीर रहो।” यही कारण है कि चुलबुल सिंह और मौनीरम में कभी भी नहीं पटती।
”एक हँसे तो दूसरा मौन, किसको समझाए कौन।”
मौनीराम एक दिन, रोज की तरह चेहरा लटकाए मिल गए। मैंने प्रसन्न होकर मुसकान का गुलदस्ता भेंट करते हुए पूछा -
”कैसे हैं मौनीराम जी ?” मैंने समझा शायद कोई भूल हो गई हो, इसलिए अब तक नाराज हैं। इसलिए मैंने कहा – ”माफ कीजिएगा मौनीरामजी, मुझसे कोई गलती हो गई है क्या, जो इस तरह मुँह फुलाए हुए हैं। ठीक से जवाब तक नहीं दिया?”
”नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है।” वह बोले, ‘क्या करूं, सूरत ही ऐसी हो गई है मेरी। आपसे भला क्यों नाराज होने लगा? और सुनाइए, क्या हाल हैं आपके ?”
- ‘ठीक है, अपनी सुनाइए।” मैंने भी शिष्टाचार दिखाया।
‘क्या ठीक रहेगा साहेब, जीना दूभर हो गया है, आजकल!” उन्होंने आह भरते हुए कहा ।
‘हाँ भई, कमबख्त महंगाई के कारण सबकी हालत खराब है।” मैंने कहा।
‘अरे साहेब, महंगाई के कारण नहीं, अपने चार बच्चों के कारण परेशान हूं। उल्लू के पट्ठे हर समय उधम मचाते रहते हैं। खिलखिला कर हँसते रहते हैं। मुझे ये असभ्यता तनिक भी नहीं भाती। मेरा कहना ही नहीं मानते। चुप रहो कहता हूँ तो हल्ला करते हैं । ‘हँसो मत’ कहने पर बत्तीसी दिखाते रहते हैं। मैं तो तंग आ गया हूँ भई।”
मेरी खोपडिय़ा घूम गई। ये कैसा उजबक जीव है, अपने बच्चों की शरारतों से ही परेशान। उनके खेलने और हँसने से परेशान। इतने ही मनहूस थे भइया, तो पैदा ही क्यों कर लिए चार ठो ‘उल्लू के पट्ठे ?” अब पैदा कर लिए हो, तो झेलो भी। जब उत्पादन की कार्रवाई जारी थी, तब तो कुछ नहीं सोच सके। अब ‘परिणाम’ आया है, तो सिर पीट रहे हैं? सरकार रोज टीवी पर गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रही है। पहले भी चिल्लाती थी, कि ‘बच्चों में अंतर निरोध से आए, सबका जीवन खिलखिला जाए। मिलने में आसान…। फिर भी कोई असर नहीं पड़ा, तो दोष किसका है ? मौनीराम का और किसका?”
”ये सब तो आपको पहले सोचना था।” मैंने कहा, ‘अब पछताय होत क्या, जब चिडिय़ा चुग गई खेत। अब तो इन बच्चों को ऊपर वाले की परसादी समझ कर संतोष करो। नाराज होने से क्या फायदा ?”
”अरे वाह, नाराज क्यों न होऊं ?” मौनीराम बोले, ‘मेरे बच्चे हैं, और मेरा ही संस्कार ग्रहण न कर सकें ? जानते हो, जब मैं पैदा हुआ था, तब रोया था। बड़ा हुआ तो खेल-खिलौनों के लिए रोया और आजकल भी गंभीर रहता हूँ। अपने बाप की गंभीरता देखकर कुछ तो सीख लेना चाहिए कि नहीं।”
”कैसी सीख ? गंभीर रहने की ?” मैंने पूछा।
”गंभीर रहने की नहीं, मनुष्य रहने की। हँसने-मुसकराने की क्या जरूरत है?”
”अरे, जब बाप रोनी सूरत बना कर जिये, तो बच्चों का दायित्व है कि वे हँसें। सो हँस रहे हैं। यह तो अच्छी बात है। उन्हें हँसने दीजिए। खिलखिलाने दीजिए।” मैंने उपदेशक की मुद्रा में सलाह की नीम पिलाई।
उन्होंने मुँह को कडुवा बना लिया। बोले, ‘आप जैसे लोगों के कारण ही ये समाज रसातल में जा रहा है। जब देखो, बेशरमों की तरह हँसते रहते हैं। और तो और सब लोग एक साथ एकत्र होकर हँसते हैं। ‘लॉफटर क्लब’ में जाकर देको, सबेरे-सबेरे। हद है। अरे, कोई अच्छा मनुष्य हँसता है भला ? मनुष्य को गंभीर रहना चाहिए। उसी में जीवन का सार है।”
मैंने कहा, ‘आप तो उल्टी बात कर रहे हैं, मौनीराम जी । गंभीर रहने की बजाय हँसना मुसकराना चाहिए। फिफ्टी परसेंट हँसो, तीस परसेंट मुसकराओ और बीस परसेंट गंभीर रहो। लेकिन आप सौ परसेंट गंभीर रहते हैं।”
मौनीराम को अपुन का गणित बिल्कुल ही नहीं भाया। वे बोले
- ”मेरी अपनी स्टाइल है, जीवन जीने की। मुझे गंभीरता पसंद है। मैं अपने बच्चों की मुसकान छीन लूंगा।”
”आप धन्य हैं। मैंने कहा, आप जैसे पिताओं की इस समाज में संख्या बढ़ी तो हो गया कल्याण।”
मेरे इस कथन को उन्होंने अपनी तारीफ समझी। मैंने गौर से देखा, वह मुसकरा उठे थे लेकिन अचानक फिर गंभीर होने लगे। मतलब, मुसकराते तो हैं, पर मुसकान-शिशु की ‘भ्रूणहत्या’ भी कर देते हैं, गंभीरता के चाकू से।
‘आप मुसकराते-मुसकराते गंभीर कैसे हो गए ?” मैंने फौरन पूछ लिया
‘यह आपका भ्रम है।” वह बोले, ‘मैं और मुस्कराऊं ? इसके पहले मर न जाऊं।”
मौनीराम को गुदगुदाइए, वे हँस पड़ते हैं’। उनको गदगद करने वाली बात कर दीजिए, मुसकरा उठते हैं, लेकिन मुसकान को रोकने में वे सिद्धहस्त हो चुके हैं। दरअसल उनके चेहरे पर अक्सर एक मुखौटा लगा होता है। गंभीरता का मुखौटा। और उस मुखौटे के भीतर होती है, एक अदद हँसी और मुस्कान, जो किसी को नहीं दीखती। लेकिन मौनीराम जानते हैं कि वे हँस रहे हैं। पता नहीं, अपने आप पर, या उन पर, जो लोग उन्हें गंभीर जान कर उनकी इस खासियत के दीवाने हैं और उन्हें देख कर कन्नी काट लेते हैं।
मेरा मित्र चुलबुल सिंह, मौनीराम का खाँटी दुश्मन है। वह लोगों से ‘हँसो, हँसो, मत गंभीर रहो’ की अपील करता है और मौनीराम, बेचारे और अधिक गंभीर हो जाते हैं।
-गिरीश पंकज

प्रकाशन : दस व्यंग्य संग्रह- ट्यूशन शरणम गच्छामि, भ्रष्टचार विकास प्राधिकरण, ईमानदारों की तलाश, मंत्री को जुकाम, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं, नेताजी बाथरूम में, मूर्ति की एडवांस बुकिंग, हिट होने के फारमूले, चमचे सलामत रहें, एवं सम्मान फिक्सिंग। चार उपन्यास – मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया (दोनों पुरस्कृत), पॉलीवुड की अप्सरा एवं एक गाय की आत्मकथा। नवसाक्षरों के लिए तेरह पुस्तकें, बच्चों के लिए चार पुस्तकें। 2 गज़ल संग्रह आँखों का मधुमास,यादों में रहता है कोई . एवं एक हास्य चालीसा।

अनुवाद: कुछ रचनाओं का तमिल, तेलुगु,उडिय़ा, उर्दू, कन्नड, मलयालम, अँगरेजी, नेपाली, सिंधी, मराठी, पंजाबी, छत्तीसगढ़ी आदि में अनुवाद। सम्मान-पुरस्कार : त्रिनिडाड (वेस्ट इंडीज) में हिंदी सेवा श्री सम्मान, लखनऊ का व्यंग्य का बहुचर्चित अट्टïहास युवा सम्मान। तीस से ज्यादा संस्थाओं द्वारा सम्मान-पुरस्कार।

विदेश प्रवास: अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिडाड एंड टुबैगो, थाईलैंड, मारीशस, श्रीलंका, नेपाल, बहरीन, मस्कट, दुबई एवं दक्षिण अफीका। अमरीका के लोकप्रिय रेडियो चैनल सलाम नमस्ते से सीधा काव्य प्रसारण। श्रेष्ठ ब्लॉगर-विचारक के रूप में तीन सम्मान भी। विशेष : व्यंग्य रचनाओं पर अब तक दस छात्रों द्वारा लघु शोधकार्य। गिरीश पंकज के समग्र व्यंग्य साहित्य पर कर्नाटक के शिक्षक श्री नागराज एवं जबलपुर दुुर्गावती वि. वि. से हिंदी व्यंग्य के विकास में गिरीश पंकज का योगदान विषय पर रुचि अर्जुनवार नामक छात्रा द्वारा पी-एच. डी उपाधि के लिए शोधकार्य। गोंदिया के एक छात्र द्वारा गिरीश पंकज के व्यंग्य साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर शोधकार्य प्रस्तावित। डॉ. सुधीर शर्मा द्वारा संपादित सहित्यिक पत्रिका साहित्य वैभव, रायपुर द्वारा पचास के गिरीश नामक बृहद् विशेषांक प्रकाशित।

सम्प्रति: संपादक-प्रकाशक सद्भावना दर्पण। सदस्य, साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं सदस्य हिंदी परामर्श मंडल(2008-12)। प्रांतीय अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ राष्टभाषा प्रचार समिति, मंत्री प्रदेश सर्वोदय मंडल। अनेक सामाजिक संस्थाओं से संबद्ध।

संपर्क :रायपुर-492001(छत्तीसगढ़)। 

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