‘ क्या हुआ आज उदास – उदास सी लग रही हो !’
‘ नहीं तो !’
‘ यह मत भूलो कि तुम्हारा कुछ भी मुझसे छुप नहीं पाता १ न ख़ुशी और न ही उदासी .’
‘ मेरे पास तुमसे छुपाने के लिए कुछ है ही नहीं . सब कुछ तो तुम्हारा है तन भी , मन भी और आत्मा भी.’ .
‘ तो बताओ आज उदास क्यों हो ?’
‘ नहीं न .तुम साथ हो तो मैं कभी उदास हो ही नहीं सकती .’
‘ मैंने कहा न कि तुम्हारा कुछ भी मुझसे छुपा नहीं रह पाता.’
जब सुधीर ने जिद पकड़ ली तो शालिनी संजीदा हो आई . उसके चेहरे को गंभीरता ने ढक लिया . वह बेड से उठी और सामने रखे बड़े से शीशे के बगल में रखे स्टूल पर टिक गयी . कुछ देर तक स्वयं को दर्पण में देखती रही . फिर पति को अपने पीछे खड़ा करके बोली , ” क्या आप को इस बात का रंज नहीं है कि आपको भी जेठ जी की पत्नी सुधा भाभी जैसी हर तरह से गठीले शरीर वाली सुंदर पत्नी मिलती ? ”
अपने पांच वर्षों के वैवाहिक जीवन में सुधीर ने शालिनी से पहली बार यह प्रश्न सुना था . सुधीर के मस्तिष्क में यह प्रश्न कभी आया भी था तो उसने सिरे से उसे झटक दिया था. वह सोचता था कि जीवन में सब को सब कुछ मिल जाए , यह सम्भव नहीं है . शालिनी रूप – रंग में जैसी भी है , वही उसकी नियति है पर वह इस बात से बेखौफ था कि शालिनी के अंदर कहीं इस बात का रंज है कि वह सुधा भाभी जितने सुंदर शरीर की स्वामिनी नहीं है ! आज शालिनी के इस तरह किये गए प्रश्न ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया .शीशे में मलिन हुआ शालिनी का उदास चेहरा उसकी भावनाओं में चुभन उतपन्न करने लगा. वह संजीदा हो गया . वह तय नहीं कर पा रहा था की शालिनी के प्रश्न का क्या उत्तर दे . उसे लगा शालिनी निढाल हो रही है . वह बोला , ‘ क्या हमारी शालिनी इतनी सी बात भी नहीं जानती कि स्त्री हो या हो कोई पुरुष , उसका सौंदर्य उसके शरीर की बनावट में नहीं , उसके दिमाग में पल रहे विचारों से बनता है . तुम जिस शिद्द्त और अपनेपन से मेरी हर छोटी – बड़ी जरूरत को अपनी जरूरत मानती हो वही मेरे लिए तुम्हारा सौंदर्य है . तुम ऐसी न होती तो में हर पल अपने भाग्य को कोसता . रही बात सुधा भाभी की तो उसका उत्तर भैया जाने .’
शालिनी ने शीशे को धीरे से कहा , ‘ धन्यवाद दर्पण जी ! मैं ही संसार की सबसे सुंदर स्त्री हूँ . अब आप आराम कीजिये और मुझे अपने सुधीर जी के लिए आज कुछ नया करने दीजिये . ‘ .
- सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
जन्म - स्थान : जगाधरी ( यमुना नगर – हरियाणा )
शिक्षा : स्नातकोत्तर ( प्राणी – विज्ञान ) कानपुर , बी . एड . ( हिसार – हरियाणा )
लेखन विधा : लघुकथा , कहानी , बाल – कथा , कविता , बाल – कविता , पत्र – लेखन , डायरी – लेखन , सामयिक विषय आदि .
प्रथम प्रकाशित रचना : कहानी : ” लाखों रूपये ” – क्राईस चर्च कालेज , पत्रिका – कानपुर ( वर्ष – 1971 )
अन्य प्रकाशन : 1 . देश की बहुत सी साहित्यिक पत्रिकाओं मे सभी विधाओं में निरन्तर प्रकाशन ( पत्रिका कोई भी हो – वह महत्व पूर्ण होती है , छोटी – बड़ी का कोई प्रश्न नहीं है। )
2 . आज़ादी ( लघुकथा – संगृह ) ,
3. विष – कन्या ( लघुकथा – संगृह ) ,
4. ” तीसरा पैग “ ( लघुकथा – संगृह ) ,
5 . बन्धन – मुक्त तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
6 . मेरे देश कि बात ( कविता – संगृह ) .
7 . ” बर्थ - डे , नन्हें चाचा का ( बाल - कथा – संगृह ) ,
सम्पादन : 1 . तैरते – पत्थर डूबते कागज़ “ एवम
2. ” दरकते किनारे ” ,( दोनों लघुकथा – संगृह )
3 . बिटीया तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
पुरस्कार : 1 . हिंदी – अकादमी ( दिल्ली ) , दैनिक हिंदुस्तान ( दिल्ली ) से पुरुस्कृत
2 . भगवती – प्रसाद न्यास , गाज़ियाबाद से कहानी बिटिया पुरुस्कृत
3 . ” अनुराग सेवा संस्थान ” लाल – सोट ( दौसा – राजस्थान ) द्वारा लघुकथा – संगृह ”विष – कन्या“ को वर्ष – 2009 में स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति - साहित्य सम्मान
आजीविका : शिक्षा निदेशालय , दिल्ली के अंतर्गत 3 2 वर्ष तक जीव – विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर कार्य करने के पश्चात नवम्बर 2013 में अवकाश – प्राप्ति : (अब या तब लेखन से सन्तोष )
सम्पर्क : साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश