तुमने मुझे
आदर का पात्र माना
देवी की तरह पूजा -अर्चना की
मेरी तस्वीर को फ्रेम में जड़ कर
दीवारों पर लटकाया
ताकि मैं
चुप रहूँ
मुँह न खोलूं
आशीर्वाद के लिए उठे हाथों को
अन्याय के विरोध में
न उठाऊँ
या फिर
ताड़ना का अधिकारी समझ
शोषण की पीड़ा भोगने को मजबूर किया
कर्तव्यों की दुहाई देकर अधिकारों से
वंचित किया
अस्वीकार कर
इन दोनों स्थितियों को
मैं चाहती हूँ
सामंजस्य के धरातल पर
सहयोग की भावना से
चलती रहूं साथ-साथ
अनादि काल तक।
- आनन्द बाला शर्मा
शिक्षा - बी.एस.सी,एम.ए, बी.एड
विधाएं - कहानी, कविता, लेख,संस्मरण आदि
प्रकाशन - नारी चेतना के स्वर,एकता की मिसाल, राष्ट्रीय संकलन व देश विदेश की पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
संप्रति - साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ाव,शिक्षण क्षेत्र में सेवानिवृत्ति के पश्चात अध्ययन एवं साहित्य साधना में संलग्न
संपर्क सूत्र – ’जमशेदपुर, झारखण्ड