सब ठीक है

शादी … शादी …, शादी कर के भी आज तक कोई खुश रहा है … जो मैं रहूँगा …

ऐसा क्यों कह रहा है यार, सभी तो शादी करते हैं … और खुश भी रहते हैं।

झुठ बोलते हैं सभी … और तू भी …

दिल पर हाथ रख और बता, क्या तू आज भी उतना ही खुशी महसूस करता है … जितना हम अपने कॉलेज के दिनों में महसूस किया करते थे।

सच सच बताना यार।

मैं क्या कहता उससे …,

 

 

थोडा चुप सा रह कर सोच में पड़ गया … क्या रोहित सही कह रहा है?

काफी दिनों से देख रहा था उसे, काफी परेशान सा रहता है …,

कई बार तो चिडचिड़ा सा जाता है, आज रहा नहीं गया तो पुछ ही लिया, पर उसके जबाब से मैं सन्न सा रह गया।

आखिर हो क्या गया? … क्या चल रहा है उसके घर मे … जीवन में … मैं तो अंदाज भी न लगा सका, अब उसकी बातें सुन के सन्नाटे में आ गया …

क्यों क्या हो गया तुझे मयंक … मेरी बात का जबाब नही हैं न तेरे पास, होगा भी नहीं, हर कोई झुठ का आवरण ओढ़े है … और बोलता है कि वह शादी कर के खुश है …

नहीं दोस्त ऐसा नहीं है …

ये सच है भाई … सच है … हर कोई एक झुठ पहने हुए है … सिर्फ यह कहने से क्या होता है … मैं ठीक हूँ …

क्या हम हमेशा अगले के अंदर झांक पाते है … कि वास्तव में सब ठीक ही है …

मेरे भाई बता आखिर बात क्या हुई … कुछ तो बता … शायद कोई हल निकला जा सके … समझाने के उद्देश्य से मैंने बात आगे कि …

दोस्त, ईमानदारी से बोलू, तो बात कोई भी नहीं, पर अगर सोचता हूँ तो लगता है बात काफी बड़ी है।

यार् पहेलियाँ मत बुझा … साफ साफ बोल न बात क्या है …

तू जानना चाहता है तो सुन … विचारों का मतभेद … जब मनभेद में बदलता है … तो स्थिति मेरे जैसी हो जाती है …

भाई मेरे, सामजस्य नाम की भी कोई चीज होती है …

शायद मैं कुछ और कहना चाह रहा था … पर बात अधूरी छोड़ दी फिर मैंने …

सामजस्य … एक फीकी सी हसीं जितनी तेजी से उसके चेहरे पर आयी उतनी ही तेजी से गायब भी हो गयी … और फिर …

सामजस्य … मनभेद में … क्या मजाक कर रहा है भाई तू …

हम शादी से पहले चाहे जितनी भी कुंडली मिला लें … चाहे जितनी भी देखभाल कर शादी करें … अगर मन न मिलाया तो सारा व्यर्थ है …

क्या कहना चाह रहे हो रोहित …, मैं अब भी नहीं समझ पा रहा हूँ …

अभी तेरी शादी को दिन ही कितने हुए …

तेरे शादी को तो वर्षों बीत गए न … प्रतिउत्तर में रोहित ने पुन: प्रश्न कर दिया …

मैं इस प्रश्न का कुछ जबाब देता उससे पहले रोहित पुन: बोला …

तेरे शादी को तो वर्षों बीत गए न … फिर भी तुने मुझे मेरे प्रश्न का जबाब नहीं दिया, फिर मुझसे क्या उम्मीद करता है भाई।

शायद मेरे पास उसके प्रश्न का कोई जबाब था भी नहीं …

होता भी कैसे … सबसे बड़ा झुठ जो हम रोज न जाने कितनी बार बोलते है …

कि हम ठीक है … सामने वाला और हम दोनों जानते है … कि अंदर कोई भी नहीं झांकेगा …

सच पूछ गया था वो …

 

 

- डॉ ज्ञान प्रकाश    

 

शिक्षा: मास्टर ऑफ़ साइंस एवं डॉक्टर ऑफ़ फिलास्फी (सांख्यकीय)

कार्य क्षेत्र: सहायक आचार्य (सांख्यकीय), मोतीलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश ।
खाली समय में गाने सुनना और कविताएँ एवं शेरो शायरी पढ़ना ।

 

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