हमारे पड़ोस में रहने वाली कमला जी बड़ी ही धार्मिक विचारों वाली सुसंस्कृत महिला हैं। अकेले ही रहती हैं, क्योंकि उनके पति का कुछ वर्षों पहले देहान्त हो चुका है और दोनों बेटे अपनी–अपनी नौकरियों के कारण अपने–अपने परिवारों के साथ दूसरे–दूसरे शहरों में जा बसे हैं। बड़ा बेटा हैदराबाद में है तो छोटा बेटा चेन्नई में रहता है। वह कभी–कभी कुछ दिनों के लिए बेटों के पास भी जाती रहतीं हैं, लेकिन उन्हें वहां रहना ज्यादा भाता नहीं है। दोनों बहुएं नौकरी वाली हैं। पोते पोतियां अब इतने छोटे नहीं रहे कि दादी की गोदी में बैठ कर परियों की कहानियां सुनने की ज़िद्द करें, बच्चे बड़े हो गए हैं। उनकी अपनी व्यस्तताएं हैं। स्कूल, कॉलेज़ कोचिंग क्लासें, डांस क्लासें, स्विमिंग़, जिम, वगैरह वगैरह के बाद यदि समय बचता भी है तो उन्हें टी.वी. इंटरनेट, मोबाईल से फुर्सत नहीं मिलती। वहां किसी के पास किसी के लिए समय ही नहीं है। वह वहां दिनभर अकेली घर में बंद हो जाती हैं। बाहर निकलें तो भाषा की समस्या के कारण उन्हें वहां सब कुछ अजनबी लगता है। यहां सबसे वर्षों पुरानी पहचान है। वह मंदिर समिती की एक्टिव कार्यकर्ता हैं। सबसे अच्छा मेल मिलाप है, इस सब में उनका समय अच्छा कट जाता है।
अचानक एक शाम ख़बर मिली की वह स्वर्ग सिधार गई हैं। सुनकर हैरानी हुई अभी सुबह ही तो मंदिर जाती हुई दिखाई दी थी फिर अचानक क्या हो गया ? पड़ोसी धर्म निभाने फौरन उनके घर पंहुचे। तुरंत उनके बेटों को यह दुखद समाचार दिया। तय हुआ कि सब अपनों के इंतज़ार में अन्तयेष्टी अगली सुबह ही होगी। रात साढ़े ग्यारहं बजे के करीब बढ़ा बेटा रोते हुए मां के पास पहुंचा और लिपट कर रोने लगा “मां तुम मुझे छोड़कर कहां चली गई, मां उठो मुझसे बात करो।” बेटे का विलाप सुनकर हम सबके भी आंसू बह निकले।
रात दो बजे छोटा बेटा पंहुचा आते ही बड़े भाई से लिपट कर रोने लगा “भईया मां हमें छोड़कर चली गई। काश हमें पहले पता होता आकर मां से मिल तो लेते। “कमला जी को याद कर और उनके बेटों का रोना सुनकर हम सब पड़ौसी भी फूर्टफूट कर रोने लगे। तभी कमला जी की आवाज़ सुनाई दी “सब रो क्यों रहे हो. बेटों मैं तो यहीं हूं तुम्हारे पास” इतना सुनना था कि उनके बेटे भूत–भूत कह कर बाहर भागने लगे। तभी हम सबने उन्हे समझाया कि नादानों यह भूत नहीं तुम्हारी अपनी मां है जो तुम्हारी पुकार सुनकर भगवान के घर से लौट आई है। मां अपने दोनों बेटों को सामने पाकर झटसे उठ बैठी। उन्हें गले लगाकर उनके खुशी के आंसू बह निकले। मां को जीवित पाकर बेटे भी उससे लिपट गए। लेकिन बेटों को तुरन्त ही अपनी–अपनी परेशानियां याद आ गई। दोनों लगभग एक ही स्वर में मां पर बरस पड़े कि क्या मां को पता है दोनों कितनी मुश्किल से यहां आ पाएं हैं ? घर और दफत्तर की उन पर सैंकडो ज़िम्मेदारियां हैं उस पर एकाएक एयर टिकट भी तो नहीं मिलती। पिछले कुछ घण्टे कितनी टेंशन में गुज़ारे हैं इसका अंदाज़ा भी है मां को?
इस सब के बीच मां के पुनः जीवित होने की खुशी उनके चेहरों पर कहीं नज़र ही नहीं आ रही थी। इतना कहते ही बेटे फोन पर अपनी वापसी की टिकट बुक करवाने और अपने–अपने घर इस सब की ख़बर करने में व्यस्त हो गए। एक बार किसी के मन में नहीं आया कि प्यार से मां के पास बैठकर उसका हाल ही पूछ लें। उसके पुनः जीवित होने पर खुशी ही व्यक्त कर दें। दूर के आए कुछ रिश्तेदारों से मिल ही लें लेकिन ऐसा कुछ भी उनके ख्याल में नहीं आया। इतना ही नहीं कुछ लोगों ने जब कमला जी से उनके इस अदभुत अनुभव के बारे में जानने की जिज्ञासा व्यक्त की तो उनका बड़ा बेटा बोला “रात बहुत हो गई है मां तो यहीं आपके ही पास रहने वाली है सुबह पूछ लीजिएगा”। आप लोग भी घर जाकर आराम कीजिए और हम भी थोड़ी देर कमर सीधी करलें। हमें सुबह की ही फ्लाइट से वापस जाना है। ” कमला जी को अपने पुनः जीवित होने से कहीं ज़्यादा खुशी थी कि आंख खुलते ही उनके दोनों बेटे उनके सामने खड़े थे, जिन्हे मिले एक अर्सा हो गया था।
“सुबह ही जा रहे हो बेटा, अब आए ही होतो एक–दो दिन रूक जाते”? ममता की मारी वह अपने को रोक ना सकी।
“आपको क्या पता कितनी मुश्किल से आए हैं ? आप भी बस अब क्या कहें इस उम्र में यह सब ड्रामा करना क्या अपको शोभा देता है”? बड़ा बेटा थोड़ा झुंझला उठा। कमला जी जानती है, बचपन से उसकी ऐसी ही आदत है. बात–बात पर बहुत जल्दी गुस्सा खा जाता है। इसलिए उसकी बात पर ध्यान न देते हुए उन्होंने मासूम सा प्रश्न किया, “बेटा अगर मैं सच में मर गई होती तब तो तुम दोनों रूकते ही ना? कम से कम मेरे फूल चुनने, अस्थियां विसर्जन तक तो रूकते ही”?
“क्या बच्चों की सी बातें करती हो मां, अब ऑफिस में बोल दें कि मां मर गई है और चार दिन यहीं पड़े रहें, कल को जब सचमुच मर जाओगी तब क्या कह कर छुट्टी लेकर आएंगे?” कमला जी यह सब सुनकर अवाक् सी रह गई। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये दोनों उनके अपने बेटे हैं, अपनी ही कोख के जने।
“तब मत आना बेटा, मरने के बाद मुझे क्या पता कौन आया कौन नहीं। जहां तक इन बूढ़ी हड्डियों को ठिकाने लगाने की बात है इन्हें अग्नि तो कोई पड़ौसी भी दे ही देगा। आज मैं जिंदा हूं आज मेरे पास चार दिन रह जाते”। बरसों से तरसी मां ने विनती के स्वर में कहा।
“मां, तुम्हें भले ही हमारी इज्ज़त की परवाह नहीं लेकिन हमें तो बिरादरी में अपनी नाक नहीं कटवानी। क्या कहेंगे सब लोग दो-दो बेटों के होते हुए भी मां को अग्नि देने एक भी नहीं पहुंचा”। बड़ा बेटा तुनक कर बोला। तभी छोटा बेटा हम सब पड़ोसियों पर बिगड़ते हुए बोला, “अगली बार फोन करें तो पहले डॉक्टर को बुलाकर पक्का कर लेना। इस बार की तरह यूं ही हमें झूठी ख़बर देकर परेशान न करना”। यह सब सुनकर हम अवाक् रह गए लेकिन कमला जी तो जैसे मौत से जीत कर भी जिंदगी से हार गई थी। अब वहां और ठहरना उचित नहीं था, हम सब लौट आए और सुबह होते ही कमला जी के बेटे भी अपने-अपने घर लौट गए।
उस दिन से कमला जी बहुत बदल गई हैं। वह गुर्मसुम, खोर्ई-खोई, बुझी-बुझी सी रहने लगी हैं। जो भी मिलता है उसे विनती भरे स्वर में एक ही बात कहती हैं “अब की बार बेटों को मेरे मरने की ख़बर न करना। बेचारों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। मेरा क्या है मुझे तो मौत भी अपनाना नहीं चाहती”।
मैंने नियर डेथ एक्सपीरियंस के बारे में बहुत कुछ सुना और पढ़ा है। ऐसे अनुभव से गुज़री कमला जी से बहुत कुछ जानने की उत्सुकता मुझे बार-बार उनसे प्रश्न करने पर मजबूर करती है, लेकिन हर बार मेरे प्रश्नों के उत्तर में वह एक ही बात कहती हैं “मौत ने मेरे साथ यह अच्छा नहीं किया। उसने मेरे सारे भरम तोड़ दिये हैं”।
जिसे मौत छोड़ दे उसे ज़िंदगी भी मार देती है मुझे पता नहीं था।
-रीता कश्यप
लक्ष्य : कलम के माध्यम से समाज को नई दिशा तथा नई सोच देना
जन्म : नई दिल्ली,भारत
शिक्षा :संस्कृत स्नातकोत्तर दिल्ली विश्वविद्यालय
अनुभव : आकाशवाणी में 30 वर्षों तक कार्यरत
सम्प्रति : स्वेच्छिक सेवानिवृत्त.कार्यक्रम निष्पादक
सृजन : – विवश कहानी संग्रह
– मेरी तौबा हास्य व्यंग्य संग्रह
– जड़ों की तलाश में कहानी संग्रह
– नियति उपन्यास
लगभग 200कहानियां, लघुकथाएं, व्यंग्य, लेख आदि प्रतिष्ठित पत्र्-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं पुरस्कृत
उपलब्धियॉ : – प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री. कल्पना चावला को सर्मपित पुस्तक “नव सदी नारी चेतना के स्वर” में देश की 300 चुनिंदा महिला रचनाकारों में स्थान
– “बीसवीं सदी की महिला कथाकारों की कहानियां” शीर्षक से 10 खंडों में प्रकाशित पूरी एक सदी की प्रमुख 260 महिला कथाकारों में स्थान
– सीमाएं देश बांटती हैं दिलों कों नहीं इस विषय पर लिखी कहानी “जड़ों की तलाश में” का उर्दू अनुवाद उर्दू की मशहूर पत्रिका “बीसवीं सदी”में प्रकाशित
– रूचिकर विषयमनोविज्ञान, सामाजिक समस्याएं, कुरीतियॉ, महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा, पारिवारिक रिश्तों के ताने बाने आदि
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