” दादी माँ लीजिये यह मुझे बाँध दीजिये” — तेरह वर्षीय मोहित ने अपनी दादी से कहा ।
” पर ! बेटा यह तो राखी है , इसे बहने अपने भाई की कलाई पर बाँधती ताकि भाई आजीवन उनके आत्मसम्मान की रक्षा करे एवं विपरीत परिस्थितियों में भी उसकी सुरक्षा करे। जा सुमी से बंधवा ले ।” – कहा दादी ने।
हाँ आप सही कह रही हैं दादी पर सुमी की रक्षा के लिए तो मम्मी – पापा हैं ना ।
“तो तू मुझसे ही क्यों बंधवाना चाहता है “— प्यार से पूछा दादी ने ।
अचानक गम्भीर हो मोहित ने कहा — ” आपकी पुरानी टूटी चप्पल, आपके चश्मे की बढ़ी हुई पावर , आपके खाने के पहले खत्म हो जाते स्वादिष्ट भोजन , स्टोर में बिछा आपका बिस्तर,आपके चेहरे से गायब ख़ुशी सब मुझे बताते हैं कि इस घर में आपकी सुरक्षा और आपके आत्मसम्मान की रक्षा करने की कितनी जरुरत है ।”
दादी के वजूद के अंदर छुपी डरी हुई बच्ची अपने रक्षक के संवेदना को देख आत्मसंतुष्टि से भर उठी ….
- सत्या शर्मा ” कीर्ति “
शिक्षा — एम . ए , एल एल .बी
विधा — छंदमुक्त , लघुकथा ,कहानी , लेख ।
सम्प्रति — स्वतंत्र लेखन
राँची – 834001
झारखण्ड