सर्वप्रथम अम्स्टेल गंगा परिवार की ओर से हम आप सभी को “दशहरा” और “दीपावली” पर्व की बधाई देते हैं। दीपावली के दिन अयोध्या के राजा भगवान श्री रामचंद्र जी अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। श्री राम जी के स्वागत में अयोध्या वासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
आज एक इंसान ने दुसरे इंसान से शत्रुता कर रखी है, एक राज्य ने दुसरे राज्य से, और एक देश ने दुसरे देश से। पिछली कई सदियों और हाल के दशकों के अनुभव से सीख लें तो, आपसी शत्रुता को मिटाने के युद्ध में शत्रुता में और वृद्धि होती है। दीपावली से २० दिन पूर्व भगवान राम ने राक्षस रावण का वध किया था। इस उपलक्ष में विश्व भर में मौजूद हिन्दू, दशहरे का त्योहार मनाते हैं। इस दिन को बुराई पर अच्छाई के विजय में मनाया जाता है। हम सभी में कुछ ना कुछ अवगुण हैं, लोभ, ईर्ष्या, क्रोध, इत्यादि। आज के परिपेक्ष में देखें तो हमारी शत्रुता इन अवगुणों से होनी चाहिए और युद्ध भी इन्ही से। यदि हमने इस युद्ध में विजय प्राप्त कर ली तो हर दिन दीपावली और हर दशहरा होगा।
सरहद पर युद्ध के बादल होना और भारतीय कुटुंब में सभी का आपस में ही वैचारिक युद्ध करना, यह देश हित में नहीं है। इस घड़ी में आवश्यकता है आपसी तालमेल की, आपसी सदभाव की और एकजुट हो करके भारत राष्ट्र को श्रेष्ठ राष्ट्र बनाने की।
हम आशा करते हैं कि इस अंक में चयनित लेख, कविता, कहानियाँ, और चित्रकारी आप सभी को सृजन के आनंद से पूर्ण कर आत्मीय सुख प्रदान करेगी। आपसे अनुरोध है कि, हमें अपनी प्रतिक्रिया से अवगत अवश्य कराएं।
धन्यवाद।
- अमित कुमार सिंह , अखिलेश कुमार एवं डॉ पुष्पिता अवस्थी