संपादकीय : जुलाई – सितंबर २०१६

सर्वप्रथम अम्स्टेल गंगा परिवार की ओर से हम आप सभी को “श्रावण माह” और आने वाले “रक्षा बंधन” पर्व की बधाई देते हैं। श्रावण माह, आसमान में काले काले गरजते और बरसते बादल। श्रावण, हिंदू कैलेंडर के अनुसार सबसे सुखद महीनों में से एक माना जाता है क्योंकि यह हमें बारिश की बूंदों के साथ चिलचिलाती गर्मी से दिव्य राहत देता है। पूरे श्रावण महीने के दौरान, श्रावण नक्षत्र आकाश में उपस्थित रहते हैं , इसलिए इसे श्रावण माह के रूप में जानते हैं। श्रावण माह भगवान शिव की श्रद्धा को समर्पित है। इस श्रावण महीने की कथा है कि, समुद्र मंथन इसी माह में किया गया था। मंथन के दौरान जो विष बाहर आया था, उसे भगवान शिव जी ने ग्रहण किया और अपने गले में रोक लिया था। इसी कारण से भगवान का कंठ नीला पड़ गया है। आज के परिवेश में देखें तो भगवान शिव ने जो कार्य समुद्र मंथन के वक़्त किया था वही कार्य हम सबको आज करना है। दुनिया में नफरत, निराशा, लोभ, हवस , हिंसा और ना जाने कितने प्रकार के विष मौजूद हैं। हमें इन सभी विष से दूर रह कर अपने देश और इस दुनिया को सुन्दर बनाए रखना है। हम आपस में जितना हो सके प्रेम से रहें और अभावग्रस्त लोगों की जितनी हो सके मदद करें।

आज जिस तरह से फ्रांस , जर्मनी और समस्त यूरोप हिंसा और आतंकवाद की मार झेलता हुआ भी विचलित नहीं है और बेसहारे शरणार्थियों की मदद के लिए बिना किसी बैर या धार्मिक भेद भाव के तत्पर है , उससे लगता है की मानवता आज भी जीवित है। इस प्रकार हम आपसी परस्पर सहयोग से हिंसा , आतंकवाद और भेदभाव की इस बिष बेल को जड़ से मिटा सकते हैं ।

हम अपने सभी पाठकों को बीती हुई “ईद” एवं “रथ यात्रा” की ढेरों शुभकामनाएं देते हैं। हम आशा करते हैं कि ये पर्व की आप सभी के जीवन में सुख और शांति ले कर आए होंगे। “रथ यात्रा”, विश्व के सबसे प्राचीन त्योहारों में से एक है। ब्रह्मा पुराण, आदि ग्रंथों के अनुसार “रथ यात्रा” सर्वप्रथम १०- ११ वीं सदी में, ओडिशा राज्य के “पुरी” जिले में आयोजित किया किया गया था। इस वार्षिक उत्सव को आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन को मनाया जाता है। “रथ यात्रा” के त्यौहार में, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा जी की मूर्ति को रथ पर रख कर, गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है और फिर भगवान वहां नौ दिन तक रहते हैं। तत्पश्चात भगवान का रथ पुनः मुख्य मंदिर में लौट आता है। पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा की वापसी यात्रा ‘बहुदा जात्रा” के रूप में जाना जाता है।

हम आशा करते हैं कि इस अंक में चयनित लेख, कविता, कहानियाँ, और चित्रकारी आप सभी को सृजन के आनंद से पूर्ण कर आत्मीय सुख प्रदान करेगी। आपसे अनुरोध है कि, हमें अपनी प्रतिक्रिया से अवगत अवश्य कराएं।

धन्यवाद।
- अमित कुमार सिंह , अखिलेश कुमार एवं डॉ पुष्पिता अवस्थी

 

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