संपादकीय: अप्रैल – जून २०१६

नीदरलैंड यूरोप का बहसंस्कृतिशाली उदारवादी देश है। सूरीनाम देश के भारतवंशियों की हिन्दुस्तानी रंगीनियाँ इस देश के वैभव को सदैव जीवंत बनाए रखती है। सरनामी भाषा (हिंदुस्तानी भाषा) नीदरलैंड देश के सुरिनामी हिन्दुस्तानियों के जीवन – धर्म की प्राणवान भाषा है जिसका आधार स्त्रोत मूलतः हिंदी – भाषा – परिवार ही है। नीदरलैंड देश – भीतर हिंदुस्तानी समुदाय द्वारा आपसी एका और सद् – राग तथा भाषा – शक्ति को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए समय-समय पर अभिव्यक्ति के पहरुओं द्वारा सरनामी और हिंदी भाषा को जीवन देने के लिए पत्रिकाएं प्रकाशित की गयी जो वस्तुतः भाषा संवर्धन की दिशा में ही महत्वपूर्ण प्रयास रहा है। लेकिन कुछ वर्षों से भारतवंशियों – भारतीयों तथा नीदरलैंड – भारत के बीच परस्पर सांस्कृतिक एका हेतु हिंदी की साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता अनुभव की गयी जिसके तहत ‘ अम्स्टेल गंगा पत्रिका ‘ के रूप में हिंदी की पहली साहित्यिक पत्रिका ने अपनी सार्थक गतिविधियाँ प्रारम्भ की है इस तरह यह दो देशों और बहु संस्कृतियों के बीच एकात्मकता के प्रयास की पहली सांस्कृतिक और साहित्यिक पत्रिका है।

”अम्स्टेल गंगा ” में ‘गंगा’ हमारी गांगेय भारतीय संस्कृति की प्रतीक है तो ‘ अम्स्टेल ‘ पाश्चात्य संस्कृति की प्रतिनिधि है दोनों ही संस्कृतियां समकालीन विश्व के जीवन की संचालिका हैं। आप सबके सहयोग से दोनों ही संस्कृतियां आपस में विलय हो सकती है। अगर विलय हो जाये तो विश्व की लय भी एक हो सकता है। ‘ अम्स्टेल गंगा ‘ उसी लय की तरल तान छेड़ने का सरल उपक्रम है।

साथ ही आशा है, ‘अम्स्टेल गंगा ‘ की ज्ञान जल धार से आपकी मानस – अंजुली सम्पूर्ण होगी और विश्व में अनेक विरोधी स्तिथियों के बावजूद आपसी आत्मीयता का विश्वसनीय अंतःकरण हम सबके बीच निर्मित हो सकेगा।
‘अम्स्टेल गंगा’ आपके विदेश में होते हुए भी हिंदी साहित्य के समीप लाने के कार्य में प्रयत्नशील रहेगी । इस पत्रिका के माध्यम से, हम, आप सभी को हिंदी साहित्य के अनेक रंगों का अनुभव कराना चाहते हैं। हमारा निरन्तर प्रयास है कि हम अम्स्टेल गंगा में नए विषयों को सम्मिलित करते रहें। इस अंक से हम समय की दस्तकानुसार पत्रिका में कुछ नए अनुभागों ‘प्रस्तावित पुस्तकें’ , ‘बहस’ , ‘फुटबॉल एरिना’ , और ‘अम्स्टेल गंगा समाचार’ की शुरुआत कर रहे हैं। आशा है जिससे हमारी आपसी नैकट्यता का विस्तार होगा।

 

अम्स्टेल गंगा पत्रिका का प्रथम अंक अक्टूबर २०१२ में आया था, अप्रैल २०१६ में इस पत्रिका का १५ वां अंक है। हम उन सभी भागीदारों को धन्यवाद देते हैं, जिनकी कृतियों ने अम्स्टेल गंगा की वैश्विक अस्मिता निर्मित की है।

अम्स्टेल गंगा परिवार की तरफ से हम आप सभी को बीती हुई होली की ढेरों शुभकामनाएं देते हैं। होली के यह रंग प्रकृति के रूप में अंगड़ाई ले रहे हैं। प्रकृति ने अनेकों रंगों से अपना श्रृंगार किया है और हम अपने चक्षुओं से इन सभी रंगों का भरपूर आनंद लेते हैं। प्रकृति का हर रंग समान प्रशंसा का हकदार है। हमें यही प्रयास करना है कि, हम अपने सुकर्मों से अपने देश और दुनिया के सभी प्राणियों के जीवन को अधिक से अधिक रंगीन बनाएं।
हमें ये सूचित करते हुए अत्यन्त हर्ष हो रहा है की अम्स्टेल गंगा परिवार में गांगेय संस्कृति से निर्मित सदस्य शामिल हो रहा है , प्रो पुष्पिता अवस्थी जी , कभी वे गंगा – तट से सूरीनाम और अम्स्टेल नदी तट के स्वप्न देखती थी अब अम्स्टेल नदी के तट से विश्व की नदी और समुद्रतटों पर बसे देश और नगरों की संस्कृति का अवलोकन कर रही हैं।
आपने जे. कृष्णमूर्ति फाउंडेशन, राजघाट, वाराणसी में शिक्षा ग्रहण की। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य और आलोचना में डाक्टरेट की डिग्री हासिल की। संस्कृत, अंग्रेज़ी और बाँग्ला भाषा की अतिरिक्त योग्यता है। आयुर्वेद और योग का विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त किया है। आप वंसत महिला महाविद्यालय, जे. कृष्णमूर्ति फाउंडेशन (काशी हिंदु विश्वविद्यालय से संबद्ध) राजघाट, वाराणसी, उत्तरप्रदेश में १९८४ से २००१ तक हिंदी भाषा एवं साहित्य विभाग की अध्यक्ष रहीं। वर्ष २००१ से २००५ तक भारतीय सांस्कृतिक केंद्र और भारतीय दूतावास, पारामारिबो, सूरीनाम में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय की ओर से हिंदी प्रोफेसर और प्रथम सचिव रहीं। वर्ष २००६ से नीदरलैंड स्थित हिंदी युनिवर्स फाउंडेशन की निदेशक हैं। आपकी अनगिनत पुस्तकें प्रकशित हुई हैं और अनेकों देशी विदेशी सम्मानों से आपको सम्मानित किया गया है। आप संस्थापक अध्यक्ष – कैरीबियाई हिंदी संस्थान, पारामारिबो
संस्थापक अध्यक्ष – साहित्य मित्र संस्थान, सूरीनाम ,संस्थापक निदेशक – राष्ट्रीय हिंदी एकेडेमी , नीदरलैंड, यूरोप के लिए विशेष सलाहकार – हिंदी प्रचार संस्था (एचपीएसएन) नीदरलैंड्स, यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, मॉरीशस , भारत और कैरीबियाइ देशों की पत्रिकाओं और संस्थाओं की मानद सदस्य हैं।

विशेष पुस्तक परिचय कृतियाँ, व्यक्ति के चित्त और चेतन की वास्तविक प्रतिकृति होती हैं। सातवें हिंदी विश्व सम्मलेन के संयोजकत्व के दौरान सूरीनाम के हिन्दुस्तानियों का सृजनात्मक हिंदी साहित्य – कथा सूरीनाम कविता सूरीनाम, सूरीनाम पुस्तक के रूप में हिंदी भाषा में पहली बार २००३ में पहली बार उजागर हुआ। जिसका सघन स्वरुप २०१२ में साहित्य अकादमी से ‘ सूरीनाम का सृजनात्मक साहित्य ‘ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। सूरीनाम के सांस्कृतिक इतिहास की दस्तावेनी पुस्तक का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट से २००९ में ‘ सूरीनाम ‘ शीर्षक से प्रकाशित हुआ तो नीदरलैंड देश पर केंद्रित पुस्तक २०१४ में आधारशिला से प्रकाशित हुई।

‘गोखरू’ शीर्षक से कथा संग्रह में भारतीय जीवन के संघर्ष की गाथाएं है तो ‘जन्म ‘ कहानी संग्रह में विदेशी जीवन के संघर्ष के अंर्तसूत्र हैं। ‘ छिन्नमूल ‘ उपन्न्यास में सूरीनाम और नीदरलैंड के अपनी संस्कृति से उच्छिन्न होने की पीड़ा अनुक्यूत है। ‘ प्रेम ‘ मानव जीवन का प्राण तत्व है फिर वह किसी भी मूल का हो। अक्षत , हृदय की हथेली, तुम हो मुझमें , रस गगन गुफा में अझर झरे, भोजपत्र , देववृक्ष काव्य संग्रह इसके उदाहरण है। मानव अधिकारों के प्रति सचेत पर्यावरण और प्रकृति की पहरुझा पुष्पिता की कविताओं के ईश्वराशीष, शब्दों में रहती है वह, अंर्तध्वनी, गर्भ की उतरन जैसे मार्मिक और संवेदनशील काव्य संग्रह हैं।
भारतवंशी भाषा एवं संस्कृति ‘ विश्व के भारतवंशियों की ‘किताबघर’ से प्रकाशित (२०१५) दस्तावेजी एतिहासिक हिंदी भाषा में प्रथम पुस्तक है तो हिंदी साहित्य में काव्यालोचना के सौ वर्ष का शिखर शोध २००५ से राधा कृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित है जिसके कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।

 

आशा है की पुष्पिता जी के साथ अम्स्टेल – गंगा के माध्यम से हम सब एक साथ हो सकेंगे और मिलकर सिद्ध करेंगे – वसुधैव – कुटुंबकम की गुणवत्ता और चरित्र।

हम आशा करते हैं कि इस अंक में चयनित लेख, कविता, कहानियाँ, और चित्रकारी आप सभी को सृजन के आनंद से पूर्ण कर आत्मीय सुख प्रदान करेगी। आपसे अनुरोध है कि, हमें अपनी प्रतिक्रिया से अवगत अवश्य कराएं।

धन्यवाद।

- अमित कुमार सिंह एवं अखिलेश कुमार

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