इस बार दीपावली प्रदूषण पर सबका ध्यान केंद्रित था। किसी को दीपावली के पटाखों में प्रदूषण दिखा तो किसी को दीपावली के दीपक में। प्रदुषण देखने वाले अधिकतर महानुभावों में ऐसे लोग थे जो घंटों अपनी कार चला कर अपने कार्यालय जाते आते हैं। शायद उनकी कार से खूबसूरत ध्वनि और शुद्ध ऑक्सीजन प्रवाहित होती है। उनकी शादियों और नए वर्ष के जलसे में जो पटाखे चलते हैं उनसे सिर्फ प्रकाश होता है प्रदूषण नहीं। अम्स्टेल-गंगा परिवार केवल यही कहना चाहता है कि इस वाद-विवाद में पड़ने से अच्छा है की हम अपनी जिम्मेदारियों को समझे और प्रदुषण फ़ैलाने वाली सभी सभी वस्तुओं से सिर्फ एक दिन नहीं पुरे साल दूर रहें। पर्यावरण प्रदूषण का कारण, कारखाने, गाड़ियां, प्लास्टिक बैग और विभिन्न प्रकार के रसायन हैं। आज के युग में इनकी आवशयकता भी है। अब सवाल ये है कि हम आवश्यकता देखें अथवा पर्यावरण। हम आपको बताना चाहेंगे की हमारे पर्यावरण में अपनी स्वतः सफाई करने की क्षमता है। हमारे जंगल, पेड़ नदियाँ, सागर सब प्रदुषण दूर करेने में सक्षम हैं। किन्तु ये क्षमता सीमित है। आज के विश्व में प्रदुषण स्तर साँस लेने वाली हवा तक को विषैला बना चूका है। जीडीपी की होड़ में सभी देश अपना कारखाना उत्पाद बढ़ाते जा रहे हैं और उसी से प्रदुषण भी बढ़ता जा रहा है। हमरे खेत रासायनिक खादों से उत्पाद तो अधिक दे रहे हैं किन्तु अब के उत्पाद में पौष्टिकता नहीं रह गई है। इससे तो अच्छा था कि हम पाषाण काल में ही रहते और शुद्ध जलवायु का आनन्द लेते। पाषाण काल से अब में ऐसा क्या बदलाव हुआ है कि आज पर्यावरण विषैला हो चला है। वो बदलाव है जनसँख्या विस्फोट। जी हाँ इन सभी समस्याओं का सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है, अत्यधिक जनसँख्या। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आइये हम सब मिलकर जनसँख्या बढ़ोतरी की दर को कम करने में सहयोग दें , लोगों में जागरूकता फैलाएं और अधिक से अधिक प्रदुषण ना फैलाने वाली वस्तुओं का उपयोद कीजिये।
हम आशा करते हैं कि इस अंक में चयनित लेख, कविता, कहानियाँ, और चित्रकारी आप सभी को सृजन के आनंद से पूर्ण कर आत्मीय सुख प्रदान करेगी। आपसे अनुरोध है कि, हमें अपनी प्रतिक्रिया से अवगत अवश्य कराएं।
धन्यवाद।
- अमित कुमार सिंह , अखिलेश कुमार एवं डॉ पुष्पिता अवस्थी