संपादकीय : अक्टूबर -दिसम्बर २०१३

सर्वप्रथम हम आप सभी के स्नेहकांक्षी हैं । आपको स्मरण कराते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि अम्स्टेल गंगा को आप सूधी पाठकों का स्नेह, सहयोग और आशीर्वाद निरंतर मिलता रहा है। आपका स्नेह ही हमारा संबल है। आपका सहयोग हमारा मनोबल है। आपका आशीर्वाद ही हमारी जीजीविषा है। बस इसी से हमारी हौसला बुलंदी की पराकाष्ठा पूर है।
अम्स्टेल गंगा के एक वर्ष के सफरनामे का श्रेय आप सभी साहित्यिक प्रेमियों को ही जाता है जिसका शीर्षक परिवार ऋणी है।

हम अप सभी को दशहरा और दीपावली की हार्दिक बधाइयाँ। दशहरा का पर्व भगवन श्री राम के चौदह वर्ष के वानवासधि में पाशविक शक्तियों का नाश एवं शक्तिरूपा दुर्गा माँ की उपसनोपरांत रावण वध कर अयोध्या वापस आने का पर्व है। दीपावली अन्धकार पर प्रकाश और अज्ञान पर ज्ञान के विजय का पर्व है।

आज के इस अनियमित शैली और अर्थप्रधान युग में त्योहारों की सार्थकता हम सिद्ध नहीं कर पा रहे हैं। आधुनिक परिपेक्ष्य में पर्व मात्र घूमने-फिरने, सैर-सपाटे तथा खाने-पीने तक ही सिमित रह गया है। इसके महत्व को हम आज भी स्वीकार नहीं पा रहे है। हमारे अन्दर आज भी बुराइ रूपी रावण जीवित है। यह हमारी आत्मा को कलुषित किये हुए है। हमे इसे बहार निकलने की जरूरत है। तभी इस बुराई रुपी रावण का अंत होगा। समाज में व्याप्त पाशविक शक्तियों का शमन होगा, चारो तरफ से भय और आतंक का नाश होगा और एक स्वच्छ समाज का निर्माण होगा। अम्स्टेल गंगा परिवार अप सभी से अपनी आत्मिक शुद्धि की अपेक्षा करता है। ऐसा कर लेने से हर दिन दशहरा होगा और हर दिन दीपावली होगी।

अंत में अप सभी को एक बार फिर से आने वाले सभी पर्वो की शुभकामना और अम्स्टेल गंगा परिवार से जुड़े रहने के लिए धन्यवाद्।

- अमित कुमार सिंह एवं अखिलेश कुमार

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