वक़्त वक़्त की बात

मेरे एक मित्र है – नीलकमल। कई साल बेकार रहने के बाद उसने  अपने
कमरे में नरसरी स्कूल खोल लिया। कमरा बड़ा था। देखते ही देखते उसके
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या तीस हो गयी। उसका  ख़ूब रोटी – पानी
चलने लगा। उसको  पूरी आशा थी कि उउसका  भविष्य उज्जवल होगा और
एकाध साल में ही बच्चों की संख्या पचास – साठ हो जाएगी। वह उसी मुहल्ले
में कोई बड़ी जगह देखने लगा था
नीलकमल को मेरे सहयोग की आवश्यकता पड़ गयी। उन दिनों मैं भी बेकार
था। दोस्त का  सहारा मिल गया। मैं उससे  मिलने के लिए गया। कमरे में
प्रवेश किया ही था कि मैंने नीलकमल को किसी महिला से तल्खी में  बोलते हुए
पाया। वह बोले जा रहा था – ” मैं जानता हूँ कि आपके पति बीमार हैं , कई
महीनों से वह अपनी दूकान खोल नहीं सके हैं। आपके घर का खर्चा नहीं चल
रहा है लेकिन आप अपनी बच्ची की फीस नहीं देंगी तो हमारा स्कूल कैसे
चलेगा ? हम खाएँगे कहाँ से ? दो महीनों से आपकी बच्ची की फीस नहीं आयी
है अब  और इंतज़ार मैं नहीं कर सकता। पहली तारीख को तीन महीनों की फीस आ   जानी चाहिए , नहीं तो ———— ”
मैं सोचने लगा कि नीलकमल वही व्यक्ति है जो बेकारी में कमरे का किराया पूरे
दस महीने नहीं दे पाया था। उसकी मजबूरी देख कर मकान मालिक ने उससे
कह दिया था – ` चिंता नहीं करो , नौकरी लगने पर दे देना। ”

 

 

- प्राण शर्मा

ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक प्राण शर्मा की संक्षिप्त परिचय:

जन्म स्थान: वजीराबाद (पाकिस्तान)

जन्म: १३ जून

निवास स्थान: कवेंट्री, यू.के.

शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में हुई, पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए., बी.एड.

कार्यक्षेत्र : छोटी आयु से ही लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था. मुंबई में फिल्मी दुनिया का भी तजुर्बा कर चुके हैं. १९५५ से उच्चकोटि की ग़ज़ल और कवितायेँ लिखते रहे हैं.

प्राण शर्मा जी १९६५ से यू.के. में प्रवास कर रहे हैं। वे यू.के. के लोकप्रिय शायर और लेखक है। यू.के. से निकलने वाली हिन्दी की एकमात्र पत्रिका ‘पुरवाई’ में गज़ल के विषय में आपने महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। आप ‘पुरवाई’ के ‘खेल निराले हैं दुनिया में’ स्थाई-स्तम्भ के लेखक हैं. आपने देश-विदेश के पनपे नए शायरों को कलम मांजने की कला सिखाई है। आपकी रचनाएँ युवा अवस्था से ही पंजाब के दैनिक पत्र, ‘वीर अर्जुन’ एवं ‘हिन्दी मिलाप’, ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ जैसी अनेक उच्चकोटि की पत्रिकाओं और अंतरजाल के विभिन्न वेब्स में प्रकाशित होती रही हैं। वे देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं।
प्रकाशित रचनाएँ: ग़ज़ल कहता हूँ , सुराही (मुक्तक-संग्रह).
‘अभिव्यक्ति’ में प्रकाशित ‘उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल’ और साहित्य शिल्पी पर ‘ग़ज़ल: शिल्प और संरचना’ के १० लेख हिंदी और उर्दू ग़ज़ल लिखने वालों के लिए नायाब हीरे हैं.

सम्मान और पुरस्कार: १९६१ में भाषा विभाग, पटियाला द्वारा आयोजित टैगोर निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार. १९८२ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार. १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स, लेस्टर द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार.
२००६ में हिन्दी समिति, लन्दन द्वारा सम्मानित.

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