विश्वबंधुत्व की भावना से रचे-पगे गोयनका जी ने प्रभूत साहित्य रचा है। प्रेमचंद ने लिखा है- “मनुष्य स्वभाव से देवतुल्य है दुनियाँ के मायाजाल और परिस्थितियों से वशीभूत होकर वह अपना देवत्व खो बैठता है। साहित्य इसी देवत्व को अपने स्थान पर पूर्णप्रतिष्ठित करने का प्रयत्न करता है” प्रेमचंद ने अपने इसी रचे साहित्य से समाज को शिक्षित करने का पुनीत कार्य किया है जिस विरासत को विश्व के सुधीजनों तक पहुंचाने का श्रमसाध्य कार्य डॉ. कमल किशोर गोयनका जी ने किया।
अपने लेखन, संपादन, विवेचन, विश्लेषण एवं संस्थाओं के संगठन तथा मित्रों के व्यक्तित्त्व के गठन में गोयनका जी ने वैश्विक भारतीयता के अन्तरपरतो की सजग साधना की है उनकी रचनात्मकता के उन्मेष का आधार भारतीय संस्कृति और उसकी उपासना में संलग्न भारतीय मनीषा हैं वे हर उस व्यक्ति की भाषायी और साहित्यिक साधना के साथ है जो मानवतोन्मुखी भारतीयता के उपासक है।
देश विदेश के विद्वानों ने समय समय पर उनके इस कार्य की प्रशंसा की है। जैनेन्द्र, धर्मवीर भारती, प्रभाकर माचवे, चन्द्रकान्त वांदिवडेकर, विष्णु कान्त शास्त्री, कल्याणमल लोढ़ा, अमृतराय, अमृत लाल नागर, इंद्रनाथ मदान, रमेशकुंतल मेघ, गोपाल राय, देवेश ठाकुर, पुष्प पाल सिंह, विनय, मृणाल पाण्डे ने उनके कार्य को सराहा है। विदेश में इंडिया आफिस लाइब्रेरी ने अपनी ‘प्रेमचंद’ पुस्तिका (१९८०) में, प्रो.गोविन्द नारायण ने अपनी अंग्रेजी पुस्तक ‘मुंशी प्रेमचंद ‘(१९७८) में जो अमेरिका बोस्टन स्थित प्रकाशन जी. के. हॉल एंड कंपनी ने प्रकाशित की थी, प्रेमचंद के विशेषज्ञ के रूप में उनका सम्मानपूर्वक उल्लेख किया है | जर्मनी के प्रो. लोथार लुत्से के आग्रह पर उनकी एक पुस्तक ‘ प्रेमचंद: शतरंज के खिलाड़ी’ के वे सह लेखक बने जो प्रेमचंद शताब्दी वर्ष १९८० में पूर्वोदय प्रकाशन नई दिल्ली से छपी थी | जर्मनी में हिंदी प्रोफेसर तातियाना ओरन स्केइया ने सन २००४ में उन पर लिखा है । इटली के प्रोफेसर अमबर्टो नरदेला (नेपल्स, इटली) ने ‘कफन’ कहानी के अंग्रेज़ी अनुवादों पर एक पुस्तक इटेलियन भाषा में लिखी है जिसका इटेलियन में शीर्षक है–‘IL RACCONTO PIU FAMOSO DELLE LETTERATURE URDU E HINDI KAFAN’ | इसका प्रकाशन नेपल्स से १९९८ में हुआ और २८७ पृष्ट की यह शोध-पुस्तक डॉ गोयनका द्वारा प्रदत्त सामग्री के पृष्ठ आधार पर लिखी गई | मॉरिशस में अभिमन्यु अनत ने वहाँ के अंग्रेज़ी- हिंदी अख़बारों एवं पत्रिकाओं में उनके साहित्यिक कार्यों पर कई लेख लिखे हैं | यह उनके देश विदेश व्यापी व्यक्तित्व की संक्षिप्त बानगी भर है।
इनकी चर्चित पुस्तकों में ‘प्रेमचन्द के उपन्यासों का शिल्प विधान’, ‘प्रेमचन्द : (विश्वकोश’ दो खंड), ‘प्रेमचन्द : अध्ययन की नई दिशाएं, ‘प्रेमचन्द : चित्रात्मक जीवनी, ‘प्रेमचन्द का अप्राप्य साहित्य’ (दो खंड), प्रेमचन्द : वाद, प्रतिवाद और संवाद’, ‘प्रेमचन्द : कहानी रचनावली’ (6 खंड), ‘प्रेमचन्द की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ (के.के. बिड़ला फाउंडेशन के ‘व्यास सम्मान-2014’ से सम्मानित), ‘गाँधी : पत्रकारिता के प्रतिमान, ‘हिंदी का प्रवासी साहित्य’, ‘प्रवासी साहित्य :जोहान्सबर्ग के आगे’, ‘बालशौरि रेड्डी कथा रचनावली’ (4 खण्ड),’रवीन्द्रनाथ त्यागी रचनावली (6 खंड) प्रमुख हैं इसके आलावा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित प्रेमचन्द ग्रंथावली के संकलन एवं सम्पादन में उनका विशेष योगदान है|
डॉ गोयनका 40 साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यापक रहे हैं। संप्रति वे , केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा (मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार) के उपाध्यक्ष हैं । डॉ॰ कमल किशोर गोयनका को अब तक उत्तर प्रदेश एवं अन्य प्रदेशों संस्थानों के अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं तथा वर्ष 2014 में उन्हें बिड़ला फाउंडेशन द्वारा व्यास सम्मान के लिए 2012 में प्रकाशित उनकी शोध पुस्तक ‘प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ के लिए चुना गया| इस तरह प्रेमचन्द पर २५ पुस्तकें, अन्य विषयों पर २४ पुस्तकें, प्रेमचंद विश्वकोश के दो खंड, प्रेमचंद कहानी रचनावली ६ खंड, प्रेमचंद पर १४०० पृष्टों के अज्ञात एवं अप्राप्य साहित्य की खोज तथा प्रकाशन करने वाले तथा लगभग ३००० मूल दस्तावेज़ों, पत्रों, पांडुलिपियों, फोटोग्राफों का संग्रह करने वाले तथा हिन्दी के प्रवासी साहित्य के मूल्यांकन के लिए तीन दशकों से कार्यरत प्रोफेसर गोयनका जी 11 अक्टूबर 2018 को 80 वर्ष के हुए हैं| उनकी इस साहित्यिक साधना को नमन करते हुए नीदरलैंड की अम्स्टेल गंगा पत्रिका-परिवार अक्षत-अक्षत शुभकामनाओ सहित उनके साधक व्यक्तित्त्व के दीर्घजीवी होने की कामना करती है|
- प्रो.(डॉ.) पुष्पिता अवस्थी
देश और विदेश में हिंदी की कुछ चुनिंदा शख्सियतों में शुमार और विशिष्टता के साथ जानी-पहचानी जाने वाली लेखिका पुष्पिता अवस्थी की प्रतिष्ठा एक कवि, लेखक, अध्यापक, संपादक, संस्कृतिकर्मी व भाषाविद के रूप में है। वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वसंत महाविद्यालय में 20 वर्षों तक हिंदी विभागाध्यक्ष रही हैं व भारतीय संस्कृति की अदभुत व्याख्याता हैं।
14 जनवरी, 1960 में कानपुर, उत्तरप्रदेश, भारत में जन्मी पुष्पिता अवस्थी गत 2001 से विदेश में हिंदी साहित्य, भाषा, संस्कृति के प्रचार-प्रसार में संलग्न है तथा कविता, कहानी, निबंध, आलोचना, मोनोग्राफ इत्यादि की हिंदी, डच, अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में चालीस से ज्यादा पुस्तकें अब तक प्रकाशित हैं सूरीनाम व नीदरलैंड के वैशिष्ट्य एवं साहित्य पर उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। आधुनिक हिंदी आलोचना के सौ वर्ष एवं प्रवासी भारतीय संस्कृति पर उनका काम मानक कोटि का है। वे शमशेर सम्मान एवं पदमभूषण डॉ. मोटरि सत्यनारायण पुरस्कार सहित देश विदेश के अनेक सम्मानों से विभूषित हैं।
डॉ.पुष्पिता अवस्थी को किसी एक सीमा में रख पाना कठिन है—यायावर, कवि, लेखक, अध्यापक, संपादक, प्रोफेसर और डिप्लोमेंट के रूप में प्रो. पुष्पिता ने अपने कठिन संघर्ष से विश्व में स्मरणीय प्रतिष्ठा प्राप्त की है। पुष्पिता की कविताऍं भारत की अनेक भाषाओं सहित कई विदेशी भाषाओं डच, अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, स्पानी,पुर्तगाली एवं रूसी भाषाओं में अनूदित की गयी हैं। इनके कविता संग्रह ‘हृदय की हथेली’ का बांग्ला भाषा में ‘हृदयेर कोरतोल’ नाम से हुआ है।
संपादकीय कार्य
पुष्पिता अवस्थी ने विश्व दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति के दर्शन पर आधारित परिसंवाद पत्रिका का जाने-माने लेखक एवं बौद्ध विचारक प्रो. कृष्णनाथ के साथ संपादन किया है। उन्होंने जे. कृष्णमूर्ति की पुस्तकों, आलेखों का अनुवाद एवं संपादन भी किया है। सूरीनाम में रहते हुए उन्होंने वहां की शब्द शक्ति व हिंदीनामा नाम की पत्रिकाओं का संपादन किया और हिंदी के प्रचार-प्रसार की व्यापक रूपरेखा तैयार की। सूरीनाम राजदूतावास में कार्य करते हुए उन्होंने सूरीनाम के कवियों कथाकारों की पुस्तकों कथा सूरीनाम, कविता सूरीनाम का संपादन किया तथा वहां के कवि जीत नराइन की कविताओं के संग्रह दोस्ती की चाह का संकलन चयन व संपादन किया है जो राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है। इसके अलावा उन्होंने नागरी लिपि के प्रचार हेतु द नागरी स्क्रिप्ट फार बिगिनर्स का सह संपादन भी किया है। हिंदी भाषा में यह सभी कार्य पहली बार संपन्न हुए हैं।
अनुवादक
साहित्यिक अनुवादक के तौर पर उन्होंने डच भाषी कवियों के साथ साथ कवि डेरेक वाल्काट की कविताओं का तो अनुवाद किया ही है, विश्वदार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति की पुस्तक द मैग्नीटयूड ऑव माइंड का अनुवाद भी किया है जो भारत में राजपाल एंड संस दिल्ली से प्रकाशित हुई है। सूरीनाम राजदूतावास में रहते हुए उन्होंने अंग्रेजी, सरनामी व अन्य भाषाओं में उपलब्ध सूरीनाम देश से संबंधित दस्तावेजों का अनुवाद किया है जिसके आधार पर सूरीनाम पर क्रमश: राधाकृष्ण प्रकाशन दिल्ली व नेशनल बुक ट्रस्ट दिल्ली से दो मोनोग्राफ प्रकाशित हुए हैं। हिंदी में सूरीनाम पर यह पहली पुस्तक है जिसमें सूरीनाम देश के भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक स्वरूप के बारे मे इतनी सघन जानकारी दी गयी है।
वृत्त चित्र एवं टेलीफिल्मों का निर्माण एवं पटकथा लेखन
फिल्म मीडिया व टेलीविजन धारावाहिकों से जुडी रहने वाली पुष्पिता अवस्थी ने वाराणसी में रहते हुए उपन्यासकार प्रो. शिवप्रसाद सिंह, उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल, और ललित निबंधकार पं विद्यानिवास मिश्र के जीवन व कृतित्व पर लघु फिल्में बनाई हैं जिसका प्रसारण लखनऊ दूरदर्शन ने किया। उन्होंने सूरीनाम की संस्कृति और प्रकृति पर भी दो घंटे की डाक्यूमेंट्री बनाई जो विश्व हिंदी सम्मेलन 2003 के अवसर पर प्रदर्शित की गयी।
सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन
पुष्पिता अवस्थी ने राजदूतावास सूरीनाम में अपने कार्यकाल के दौरान भारत सरकार के सहयोग से पारामारिबो सूरीनाम में सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन में अथक सहयोग दिया और विभिन्न सत्रों के समायोजन, विचार विमर्श एवं आलेखों के प्रस्तुतीकरण के बारे में आयोजकों के साथ सहचिंतन की भूमिका निभाई। वे इसके साथ ही विश्व में अनेक भागों में होने वाले विश्व हिंदी सम्मेलनों एवं फ्रैंकफर्त पुस्तक मेले में भी सहभागिता करती रही हैं तथा हिंदी के प्रचार प्रसार में अनेक संस्थाओं का हाथ बंटाती हैं।
वैश्विक भाषा संस्कृति की विवेचक
पुष्पिता अवस्थी ने गत दो दशकों से विदेश में रहते हुए वैश्विक संस्कृतियों व रहन सहन को समझने के लिए काफी गहन अनुभव अर्जित किया है। इसी का परिणाम है ‘किताबघर’ दिल्ली से प्रकाशित उनकी पुस्तक भारतवंशी : भाषा एवं संस्कृति. विशेषकर कैरेबियाई देशों के भारतवंशियों की भाषा एवं संस्कृति का यह अनूठा दस्तावेज है। सूरीनाम का सृजनात्मक साहित्य विषयक पुस्तक साहित्य अकादेमी से 2012 में प्रकाशित हुई है जिसमें पुष्पिता का एक दशक का अन्वेषण, लेखन, संपादन और विवेचन समाहित है जो सूरीनाम के साहित्य सम्पादन की पहली कृति है ।
सूरीनाम के भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव
वे 2001 से दक्षिण अमेरिका के उत्तर पूर्व स्थित सूरीनाम देश के भारतीय दूतावास और भारतीय सांस्कृतिक केंद्र में बतौर हिंदी प्रोफेसर और प्रथम सचिव 2005 तक कार्यरत रही हैं। इसी काल खंड में वे भारतवंशियों की तीन पीढ़ियों की हिंदुस्तानी संस्कृति और भाषाई संघर्ष के साथ हो गयीं। उन्होंने इसके लिए सूरीनाम साहित्य मित्र व सूरीनाम विद्यानिवास साहित्य संस्था का गठन किया।
विदेशों में हिंदी पठन पाठन के वातावरण का निर्माण
प्रो. पुष्पिता ने अपने विदेश प्रवास के दौरान वहां हिंदी पढ़ रहे छात्रों के लिए अन्य भाषाविद विद्वानों के साथ छह भाषाओं सहित देवनागरी लिपि को शामिल करते हुए शुरुआत के लिए देवनागरी नाम से विशेष पुस्तक तैयार की, जिसका भारतवंशी देशों में उपयोग हो रहा है। यही कारण है कि मारीशस के संस्कृति मंत्रालय ने उन्हें 2010 के अंतर्राष्ट्रीय आप्रवासी सम्मेलन में मुख्य अतिथि तथा विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया व अंतर्राष्ट्रीय भारतवंशी सांस्कृतिक परिषद का महासचिव घोषित किया ।
पुरस्कार/सम्मान आदि का विवरण
1. केंद्रीय शिक्षण मंडल के केंद्रीय हिंदी सस्थान, आगरा, द्वारा हिंदी की सुदीर्घ सेवा के लिए पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार जिसके अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति महामहिम प्रणब मुखर्जी ने रु. 5 लाख की राशि एवं प्रशस्तिफलक प्रदान किया।
2. अंतर्राष्ट्रीय अज्ञेय साहित्य सम्मान, 2002, रूपांबरा, भारत
3. कैरेबियाई राष्ट्रीय हिंदी सेवा पुरस्कार, 2004, हिंदी प्रचार संस्था,गुयाना
4. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अंतर्राष्ट्रीय कविता पुरस्कार, 2004, यू. के. हिंदी समिति, लंदन
5. राष्ट्रीय हिंदी सेवा पुरस्कार, 2005, आर्य प्रांतिक सभा, सूरीनाम
6. सूरीनाम हिंदी सेवा सम्मान, 2005, सूरीनाम हिंदी परिषद
7. राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार, 2007, रूपाम्बरा, भारत
8. शमशेर सम्मान, 2008, अनवरत संस्था, खंडवा, मध्यप्रदेश, भारत
9. किरण वूमन अचीवमेंट अवार्ड, 2013
10.वातायन सम्मान, 2013, लंदन
11.आधारशिला सम्मान, नीदरलैंड, 2014
12. प्रवासी शिखर सम्मान, 2014
संक्षेप में विदेश में हिंदी प्रचार व प्रसार के लिए किए गए कार्य एवं अन्य साहित्यिक उपलब्धियॉं निम्नांकित हैं-
हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन की स्थापना
2006 में प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने नीदरलैंड में विश्व में हिंदी व हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए हिंदी युनिवर्स फाउंडेशन की स्थापना की, जिसकी वे निदेशक हैं।
वैश्विक स्तर पर सर्जनात्मक गतिविधियाँ
यूरोप सहित भारतवंशी बहुत देशों मे हिंदी भाषा व साहित्य सहित भारतीस संस्कृति के प्रचार प्रसार में संलग्न पुष्पिता कई वर्षों से अनेकानेक देश-द्वीपों की भाषा-साहित्य संस्थाओं की मानद सदस्य हैं तथा इन देशों के बुद्धिजीवियों, संस्कृति एवं साहित्यकर्मियों के साथ साहित्य सृजन में सक्रिय हैं। इस क्रम में जापान मारीशस, कनाडा, यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कैरीबियाई देशों सहित अनेकानेक देशों की आतिथ्यपूर्ण राजनयिक यात्राएँ की तथा काव्यपाठ किया। सृजनात्मक लेखन पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कतिपय कार्यशालाएँ चलाईं जिससे भारतीय संस्कृति व साहित्य का वैश्विक स्तर पर प्रचार प्रसार हो सके।
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, नीदरलैंड का आयोजन:
भारत की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘आधारशिला’ के साथ नीदरलैंड में हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन की ओर से अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन-संचालन।
हिंदी शिक्षण संबंधी कार्य
6 विभिन्न भाषा भाषियों के हिंदी सीखने के लिए द नागरी स्क्रिप्ट फार बिगनर्स का प्रकाशन।
हिंदी का बुनियादी परिचय देने के लिए हिंदी नामा एवं शब्दशक्ति नाम दो पत्रिकाओं का प्रकाशन।
सूरीनाम में रहते हुए 2001 से 2005 तक हर शनिवार सर्जनात्मक लेखन के कक्षाएँ चलाईं
सूरीनाम हिंदी परिषद की 5 वर्षों की हिंदी परीक्षाओं का संचालन
हिंदी कोविद परीक्षा की फिर से शुरुआत
सूरीनाम एवं आसपास के देशों व यूरोप के रेडियो स्टेशनों से हिंदी संबंधी वार्ताएँ।
सूरीनाम में देवनागरी लिपि को व्यवहार में लाने की पहल की।
सरनामी हिंदी में लिखी कविताओं को देवनागरी में रूपांतरित किया एवं सूरीनाम के कवियों व कहानीकारों की रचनाओं का संपादन प्रकाशन किया।
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन
प्रो.पुष्पिता भारत के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में गत बीस वर्षों से प्रकाशित होती आ रही हैं। कादंबिनी, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, आजकल, पहल, वसुधा, गंभीर समाचार, कथादेश, अक्षरम, गर्भनाल, आज, वागर्थ, बहुवचन, पूर्वग्रह, नया ज्ञानोदय आदि में उनकी रचनाएं समय समय पर प्रकाशित होती रहती हैं।
व्याख्यान
यूरोप, अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सहित कई कैरेबियाई देशों में काव्यपाठ तथा विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में मानवीय संस्कृति तथा भारतवंशी संस्कृति पर विशेष व्याख्यान।
विशेष औपन्यासिक उपलब्धि : छिन्नमूल
छिन्नमूल अपनी भारतीय जड़ों से उखड़ने और विदेशी धरती पर ठीक से अनुकूलित न होने का वृत्तांत है। एक हिंदुस्तानी समाज भारत वंशियों के देशों में भी दिखता है जिसे पुष्पिता ने अपनी सघन अंतद्रृष्टि से सहेजा व व्याख्यायित किया है। सूरीनाम पर इससे पहले डच भाषा में उपन्यास लिखे गए हैं पर वे प्राय: नीग्रो समाज के संघर्ष को उजागर करते हैं। सरनामी भाषा में भी कुछ उपन्यास लिखे गए हैं पर वे सर्वथा डच सांस्कृतिक आंखों से देखे गए वृत्तांत हैं। किसी प्रवासी भारतीय लेखक द्वारा कैरेबियाई व सूरीनामी भारतवंशियों के संघर्ष पर हिंदी में लिखा यह पहला उपन्यास है जो एक तरफ हिंदुस्तानी संस्कृति के मुखौटेदार चेहरों की असलियत अनावृत करता है, दूसरी तरफ एक सौ साठ बरस के अंतराल में यहां पनपी सूरीनाम हिंदुस्तानी संस्कृति की अन्तः पर्तों को भी उद्घाटित करता है। इस पुस्तक के साथ ही नीदरलैंड व सूरीनाम पर दो पुस्तकें लिख कर उन्होंने वहां की जीवन संस्कृतियों का व्यापक वृत्तांत लिखा है।
विभिन्न विधाओं में उनकी प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं :-
काव्य
शब्द बन कर रहती हैं ऋतुऍं, कथ्यरूप प्रकाशन,इलाहाबाद, 1997
अक्षत, राधाकृष्ण प्रकाशन,दिल्ली, 2002
ईश्वराशीष, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2005
हृदय की हथेली,राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2007
रस गगन गुफा में अझर झरै, ग्रंथ अकादमी,दिल्ली, 2007
अंतर्ध्वनि, मेधा बुक्स, दिल्ली, 2009
देववृक्ष, रेमाधव आर्ट प्रा.लि., गाजियाबाद, 2009
शैल प्रतिमाओं से(हिंदी, अंग्रेजी व डच),अमृत कन्सल्टैंसी, 2010
तुम हो मुझमें,राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2013
शब्दों में रहती है वह, किताबघर प्रकाशन,दिल्ली, 2014
भोजपत्र, अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद, 2015
गर्भ की उतरन, अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद
The Poetic Bond– V– U.K.2015
The Poetic Bond– VI– U.K.2016
Echoes in the Earth- Poetry Collection, U.K.2016
आलोचना
आधुनिक हिंदी काव्यालोचनाके सौ वर्ष, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली,2006
कहानी
गोखरू, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2002
जन्म, मेधा बुक्स, दिल्ली, 2011
उपन्यास
छिन्नमूल, अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद, 2016 (सूरीनाम और नीदरलैंड के भारतवंशियों के जीवन-संघर्ष पर आधारित हिंदी भाषा का प्रथम उपन्यास)
साक्षात्कार
सांस्कृतिक आलोक से संवाद, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 2006 (प्रो. विद्यानिवास मिश्र से संवाद की एकमात्र पुस्तक)
विनिबंध
सूरीनाम,राधाकृष्ण प्रकाशन दिल्ली 2003
सूरीनाम, नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली, 2009
नीदरलैंड, आधारशिला प्रकाशन,नई दिल्ली, 2014
नीदरलैंड, किताबघर, नई दिल्ली 2017
संपादन
कविता सूरीनाम, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2003
कथा सूरीनाम, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2003
दोस्ती की चाह, जीत नराइन की कविताऍं, राजकमल प्रकाशन, 2004
दि नागरी स्क्रिप्ट फार बिगनर्स (सह संपादन) 2003
अनूदित कविताऍं
IN WOORDENBESTAAT ZE, Amsterdam, India Institute,2008
Devvriksh (Poems in Hindi and English), Remadhav Art Pvt. Ltd, Ghaziabad,2009
Hetbeeld in de rots (Poems translated in Dutch), Amrit Consultancy.
The Statue in the rock (Poems translated in English), Amrit Consultancy.
अनुवाद
मन क्या है?- -जे कृष्णमूर्ति की पुस्तक दि मैग्नीट्यूड आफ माइंड का हिंदी रूपांतर, राजपाल एंड संस, दिल्ली, 2015
डायरी
नीदरलैंड डायरी, किताबघर प्रकाशन, दिल्ली, 2017
विविध
कैरेबियाई देशों में हिंदी शिक्षण,राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2004
सूरीनाम का सृजनात्मक साहित्य, साहित्य अकादेमी, 2012
भारतवंशी : भाषा एवं संस्कृति, किताबघर प्रकाशन, 2015
संपर्क :
Dr. Pushpita Awasthi
Director, Hindi Universe Foundation
Mount Everest Bhawan
Winterkoning 28
1722 CB Zuid Scharwoude
Netherlands
0031 72 540 2005
0031 6 30 41 0778
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