वाह री लक्ष्मी

” लक्ष्मी , देख लेना , एक दिन मेरा पासा ज़रूर सीधा पड़ेगा। मैं लोटरी ज़रूर

जीतूँगा। तब मैं तुम्हें ऊपर से लेकर नीचे तक सोने – चाँदी के गहनों से लाद दूँगा।

तुम्हें सचमुच की लक्ष्मी बना दूँगा। तुम्हें देख कर लोग दाँतों तले अपनी ऊँगलियाँ

दबा लेंगे। अरी , दुर्योधन भी पहले युधिष्ठर से जुए में हारा था । सब दिन न होत एक

समान। भाग्य ने उसका साथ दिया और वह पांडवों का राजपाट जीत कर राजकुँवर

बन गया। ”

 
सुरेश के उत्साह भरे शब्द भी आग में घी का काम करते। सुनते ही लक्ष्मी

तिलमिला उठती। क्रोध भरे शब्द बोलने लगती – ” भाड़ में जाए तुम्हारी लोटरी।

मैं तो तंग आ गई हूँ तुम्हारी लोटरी से। सारी की सारी कमाई तुम घोड़ों , कुत्तों

और लोटरी पर लगा देते हो। तुम्हारी ये लत घर को बर्बाद कर के छोड़ेगी। तुम्हारा

बस चले तो धर्मराज युधिष्ठर की तरह तुम मुझे भी दाँव पर लगा दो। ”

 

सुरेश और लक्ष्मी में तू-तू , मैं-मैं का तूफ़ान रोज़ ही आता।

 

बुधवार था। रात के दस बजे थे। बीबीसी पर लोटरी मशीन से नंबर गिरने शुरू

हुए – 1 , 5 , 11 , 16 , 25 , 40 .

 

सुरेश की आँखें खुली की खुली रह रह गयीं। वह खुशी में गगनभेदी आवाज़

में चिल्ला उठा – ” आई एम ए मिलियनआर ! ”

 

जुआ को अभिशाप समझने वाली लक्ष्मी रसोईघर से भागी – भागी आयी। पति को

अपनी बाँहों में भर कर वह भी चिल्ला उठी – ” हुर्रे ! वी आर मिलियनअर !! ”

 

- प्राण शर्मा

ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक प्राण शर्मा की संक्षिप्त परिचय:

जन्म स्थान: वजीराबाद (पाकिस्तान)

जन्म: १३ जून

निवास स्थान: कवेंट्री, यू.के.

शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में हुई, पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए., बी.एड.

कार्यक्षेत्र : छोटी आयु से ही लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था. मुंबई में फिल्मी दुनिया का भी तजुर्बा कर चुके हैं. १९५५ से उच्चकोटि की ग़ज़ल और कवितायेँ लिखते रहे हैं.

प्राण शर्मा जी १९६५ से यू.के. में प्रवास कर रहे हैं। वे यू.के. के लोकप्रिय शायर और लेखक है। यू.के. से निकलने वाली हिन्दी की एकमात्र पत्रिका ‘पुरवाई’ में गज़ल के विषय में आपने महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। आप ‘पुरवाई’ के ‘खेल निराले हैं दुनिया में’ स्थाई-स्तम्भ के लेखक हैं. आपने देश-विदेश के पनपे नए शायरों को कलम मांजने की कला सिखाई है। आपकी रचनाएँ युवा अवस्था से ही पंजाब के दैनिक पत्र, ‘वीर अर्जुन’ एवं ‘हिन्दी मिलाप’, ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ जैसी अनेक उच्चकोटि की पत्रिकाओं और अंतरजाल के विभिन्न वेब्स में प्रकाशित होती रही हैं। वे देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं।
प्रकाशित रचनाएँ: ग़ज़ल कहता हूँ , सुराही (मुक्तक-संग्रह).
‘अभिव्यक्ति’ में प्रकाशित ‘उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल’ और साहित्य शिल्पी पर ‘ग़ज़ल: शिल्प और संरचना’ के १० लेख हिंदी और उर्दू ग़ज़ल लिखने वालों के लिए नायाब हीरे हैं.

सम्मान और पुरस्कार: १९६१ में भाषा विभाग, पटियाला द्वारा आयोजित टैगोर निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार. १९८२ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार. १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स, लेस्टर द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार.
२००६ में हिन्दी समिति, लन्दन द्वारा सम्मानित.

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