वागीश सारस्वत की समीक्षा कृति ‘व्यंग्यर्षि शरद जोशी’ का विमोचन

मानवीय सरोकारों के रचनाकार थे शरद जोशी

वागीश सारस्वत की समीक्षा कृतिव्यंग्यर्षि शरद जोशीका विमोचन

 

मुंबई। मुंबई विश्वविद्यालय बीoसीoयूoडीo के निदेशक डॉ राजपाल हांडे ने ‘व्यंग्यर्षि शरद जोशी’ पुस्तक का लोकार्पण करते हुए कहा कि डॉ वागीश सारस्वत ने यह पुस्तक लिखकर ये साबित कर दिया है कि व्यंग्यकार शरद जोशी मानवीय सरोकारों के रचनाकार थे। डॉ हांडे ने इस पुस्तक को विद्यार्थियों के लिए उपयोगी बताते हुए कहा कि मुंबई विश्वविद्यालय और उसका हिंदी विभाग हमेशा से ऐसे कार्यो को प्रोत्सहित करता रहा है।

गुरुवार, १४ मार्च को मुंबई विश्वविद्यालय (कालीना) के फिरोजशाह मेहता सभागार में मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग व लोकमंगल के संयुक्त तत्वावधान में डॉ वागीश सारस्वत की समीक्षा कृति व्यंग्यर्षि शरद जोशी शरद जोशी का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। इसके मुख्य अतिथि के रूप में पधारे डॉ राजपाल हांडे ने शरद जोशी को जीवन की कड़वी अनुभूतियों का सच्चा रचनाकार बताया। पुस्तक के लेखक डॉ वागीश सारस्वत ने अपने वक्तव्य में स्थापित किया कि शरद जोशी हिंदी साहित्य में व्यंग के शिखर पुरष हैं। कार्यक्रम का संयोजन डॉo करुणाशंकर उपाध्याय व समाजसेवी कन्हैयालाल सराफ ने संयुक्त रूप में किया।

अभिनेता व कवि शैलेश लोढ़ा ने शरद जोशी के विषय चयन, विस्तार और गहराई को अपने रचनाकर्म में उभारने की दक्षता को रेखांकित करते हुए कहा कि वे आम के सजग रचनाकार थे। सामान्य बात से शुरू होकर बड़ी बात तक अपने व्यंगो को ले जाना शरद जोशी का कौशल था। लोढ़ा के मुताबिक डॉ वागीश सारस्वत ने शरद जोशी के व्यक्तित्व व कृतित्व का खूबसूरत चित्रण किया है और यह पुस्तक लिखकर उन्होंने सिद्ध किया है कि व्यंग लिखना आसान नहीं है। दिल्ली से इस कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से पधारे ‘व्यंग यात्रा’ के संपादक प्रेम जनमेजय ने इस समारोह को व्यंग यात्रा के शरद जोशी विशेषांक का लौन्चिंग पैड बताते हुए वागीश सारस्वत की कृति की प्रशंसा की।

नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने शरद जोशी के छोटे वाक्यों की संरचना का जिक्र करते हुए वागीश के समीक्षा कर्म की सराहना की। व्यंग्यकार डॉ सूर्यबाला ने इस पुस्तक को व्यंग्य पर एक गंभीर पुस्तक माना और कहा कि अस पुस्तक के बाद संभव है कि लोग व्यंग्य विधा को गंभीरता से लेने लगें। डॉ रामजी तिवारी ने पुस्तक पर विस्तार से चर्चा करते हुए व्यंग्यर्षि शरद जोशी नाम की सार्थकता को परिभाषित किया और कहा कि वागीश ने पुस्तक को यह शीर्षक देकर ही शरद जोशी के व्यंग्य लेखन का अकादमिक महत्व स्थापित होने का संकेत कर दिया है।

- सुमन सारस्वत

 

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