लम्हों के परिंदें

 

लम्हें के पंछी को

पकड़ने की कोशिश में

जब हो जाती हूँ

असफल और निढाल

तब थक हार कर

पहुँच जाती हूँ

समय के गुलमोहर तले

और तानकर

सो जाती हूँ

सपनों की चादर

तब

उतर आता है चाँद

बंद पलकों में

लहराने लगता है

उजली चाँदनी में

आँचल मेरा

विभावरी बढ़ कर

टाँक देती है

मेरे केशों में

तारों की लड़ियाँ

तभी कोमल स्पर्श से

खुल जाती है मेरी आँखें

देखती हूँ

चारों और बिखरे है

स्मृतियों के पारिजात पुष्प

सुन्दर, रेशमी, नाजुक

अपनी सिन्दूरी रंगत में डूबे

जीवन की अरूणिमा से भरे

झरते हुए

और तब

जी लेती हूँ मैं

असंख्य मीठे क्षण

और सहेज लेती हूँ

इन लम्हों के परिंदों को

अपनी हथेलियों में

हमेशा-हमेशा के लिए…।

 

 - स्वर्णलता ठन्ना

जन्म - 12 मार्च ।

शिक्षा - परास्नातक (हिन्दी एवं संस्कृत)  ,यूजीसी-नेट – हिन्दी
वैद्य-विशारद, आयुर्वेद रत्न (हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद)
सितार वादन, मध्यमा (इंदिरा संगीत वि.वि. खैरागढ़, छ.ग.)
पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि.वि. भोपाल)

पुरस्कार - आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा “युवा प्रतिभा सम्मान २०१४” से
सम्मानित

संप्रति - ‘समकालीन प्रवासी साहित्य और स्नेह ठाकुर’ विषय पर शोध अध्येता,
हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन।
प्रकाशन – प्रथम काव्य संकलन ‘स्वर्ण-सीपियाँ’ प्रकाशित, वेब पत्रिका अनुभूति, स्वर्गविभा, साहित्य कुंज,
साहित्य रागिनी, अपनी माटी , पुरवाई ,हिन्दीकुंज ,स्त्रीकाल ,अक्षरवार्ता सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में
रचनाएँ एवं लेख प्रकाशित।

संपर्क -  रतलाम म.प्र. 457001 ।

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