है आगे बढ़ना गर
लक्ष्य के साथ चल।
छोड़़ सारी मुशिकलें
बिना खौफ आगे निकल
कर्म जो तेरा सच्चा है
कोर्इ डगमगा नहीं सकता
कर्म के इस साँचे में
खुद को ढालता चल।
तू बन जा वो दीया
थपेड़ो से जो बुझता नहीं
हौसला रख इस कदर
बारिश भी निसार हो
हर जंग जीत कर
तू खुद को जलाता चल।
सुख दु:ख आने जाने है
अपने को तैयार रख
धूप छांव के जीवन में
साये को अलग न कर
खुद को तपा कर आग में
सोने सा चमकता चल।
-कीर्ति श्रीवास्तव
जन्म :- 06 जुलार्इ, भोपाल (म.प्र.)
शिक्षा :- एम.काम., डी.सी.पी.ए.
लेखन विधाएं :- कहानी कविता गजल आलेख बाल साहित्य
प्रकाशन :- राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय प्रतिषिठत पत्र- पत्रिकाओं में कविता, गजल,गीत, कहानी , आलेख एवं बाल साहित्य प्रकाशित।
प्रसारण :- अकाषवाणी , भोपाल
पुरस्कार और सम्मान:- अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेषिक सम्मान
संप्रति :- सम्पादक साहित्य समीर दस्तक (मासिक पत्रिका) संचालक विभोर ग्राफिक्स एवं प्रकाशन
सह संपादक राष्ट्र समर्पण (मासिक अखबार, नीमच)
अन्य :- भोपाल से प्रकाशित शिक्षा और साहित्य से जुड़े साप्ताहिक हिन्दी अखबार प्रेसमेन में 8 वर्ष तक प्रबंध संपादक। अनेक कार्यक्रमों में पत्र-वाचन
प्रकाषनाधीन :- बाल कविता संग्रह
मेहनत का फल होता मीठा
गीतिका संग्रह मन की बात
स्थायी पता:- कोलार रोड, भेपाल