नवगीत: रह गए अनुवाद केवल

 

अब नहीं हम
ग्रन्थ मौलिक
हो गए अनुवाद केवल।।

छीनकर सुख
प्रश्न कितने
आज अभ्यागत नवागत,
बस उलाहन
दे रहे अब
उत्तरों के घोर अभिमत।

व्याकरण से
व्यर्थ में ही
कर रहे प्रतिवाद केवल।।

शिष्ट तो हर
पृष्ठ लेकिन
कथ्य के प्रति क्लिष्टता,
अनुकरण की
लीक पर ही
चल रही अब शिष्टता।

सुन रही फिर
से समय की
शंख का अनुनाद केवल।।

साम्यता को
भूल बैठी
चेतना अवचेतना,
आनुवंशिक
भाव सारे
झेलते अवहेलना।

बोलते ही
रह गए हम
मंच पर संवाद केवल।।

 

 

- अवनीश त्रिपाठी

शिक्षा- एम.ए.,बी.एड.

सम्प्रति-  इंटर कालेज साहिनवां सुलतानपुर में अध्यापन।

स्थाई पता- ग्राम/पत्रालय-गरएं,जनपद-सुलतानपुर,उ•प्र•,पिन-227304

ब्लॉग- kavyashilpi.blogspot.com

साहित्यिक परिचय- नवगीत संग्रह “यादों का चन्दनवन” का सम्पादन।
“कवितालोक-प्रथम उद्भास” एवं “गुलदस्त ए ग़ज़ल” में रचनाएँ संकलित।कविता,ग़ज़ल/गीतिका, गीत का निरंतर लेखन एवं प्रकाशन।

 

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