रवि

 

दिन भर जलना तपना, ढलना

होते नहीं निराश

कितना कठिन समय हो

रवि तुम! कब लेते अवकाश!

 

कुहर, तुहिन कण, बरखा, बादल

मिलकर करें प्रहार

अम्बर के एकाकी योद्धा

कभी न मानो हार!

अवनि से आकाश तलक दो

सबको तेज, प्रकाश!

 

धुन के पक्के, जान गए सब

अकड़ू हो थोड़े

भेजा करते हो सतरंगी

किरणों के घोड़े

जग उजियारा करें, मिटा दें

तम को रहे तलाश!

 

उलझन ले हम आए दिनकर

पास तुम्हारे हैं

मानव-मन में दानवता ने

पाँव पसारे हैं

जुगत बताओ हमको इसका

कैसे करें विनाश!

 

- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

जन्म स्थान : बिजनौर (उ0प्र0)

शिक्षा : संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि एवं पी-एच 0 डी0

शोध विषय : श्री मूलशंकरमाणिक्यलालयाज्ञनिक की संस्कृत नाट्यकृतियों का नाट्यशास्त्रीय अध्ययन।

प्रकाशन : ‘यादों के पाखी’(हाइकु-संग्रह ), ‘अलसाई चाँदनी’ (सेदोका –संग्रह ) एवं ‘उजास साथ रखना ‘(चोका-संग्रह) में स्थान पाया। 
विविध राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय (अंतर्जाल पर भी )पत्र-पत्रिकाओं ,ब्लॉग पर यथा – हिंदी चेतना,गर्भनाल ,अनुभूति ,अविराम साहित्यिकी ,रचनाकार ,सादर इंडिया ,उदंती ,लेखनी , , यादें ,अभिनव इमरोज़ ,सहज साहित्य ,त्रिवेणी ,हिंदी हाइकु ,विधान केसरी ,प्रभात केसरी ,नूतन भाषा-सेतु आदि में हाइकु,सेदोका,ताँका ,गीत ,कुंडलियाँ ,बाल कविताएँ ,समीक्षा ,लेख आदि विविध विधाओं में अनवरत प्रकाशन।

सम्प्रति निवास : वलसाड , गुजरात (भारत )

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