रंग है संग जीवन में चारों और
बिखरे है यूं नई अदाओं में,
रंगों के बगैर अधूरा है सब,
खुशियों के रंग कहीं छलके-छलके
दु:ख में कहीं नमीं के रंग,
घिरते बादल के सुनहरे रंग,
बचपन में खिलते मासुमियत के रंग,
जैसे संगीत में सूरों के सात रंग,
जवानी में जोश के रंग,
कहीं हंसी के रंग,
कहीं दूसरों की मुस्कुराहट के बाद मिले रंग,
मैंने देखे हजारों रंग जीवन के,
खेतों में हरियाले रंग,
चिडिया के चहचहाते रंग,
पानी के खिलखिलाते रंग,
रंगों का उपवन है ये जीवन,
कुछ कहते हैं ये रंग
कभी- कुछ कहते, कभी कुछ सुनते ये रंग,
अजीब है ये कुदरत जिसने हर किसी को रंग में रंग दिया,
जब शब्द मिमियाने लगते हैं तो महकते हैं रंग,
प्यार का रंग,
और नफरत का रंग एक -सा है लाल पर, उस रंग की खुश्बू जुदा है,
जब तक जीवन है, रिश्ता है सब का रंगों से,
इन रंगों में है कुछ खास,
जो बिखरे-बिखरे से है सब के जीवन में
सोचती हूं ये रंगों के बगैर हम कैसे जीते?
बिना रंग की कैसी होती हमारी दुनिया.
होली का गेरुआ रंग,दिपावली में रोशनी के रंग
रंगों से भरी है ये दुनिया
लेकिन हर रंग की अपनी ही दुनिया है, और अपना मतलब है,
जो मिला है रंग उसी रंग में डूब जाइये दोस्तों
क्या पता ये रंग भी कब करवट बदल ले.
- डा.कल्पना गवली
एसोसियेट प्रोफेसर,
हिंदी विभाग,
कला संकाय, महाराजा सयाजी राव विश्वविधालय, बडौदा.