यादों का हैंगओवर

कल  सुबह तुम्हारी यादों के साथ उठा..

कमरे में नज़र  घुमाई तो देखा,

टेबल की हर चीज़ बिखरी पड़ी थी..

तुमने  जो डायरी दिया था, वो भी आधी खुली हुई सी,

टेबल से लटक रही थी..

एक  पल सोचा टेबल फिर से समेट दूँ..

धूल जो पड़ी है टेबल पे, उसे साफ़ कर दूँ..

पर समेटने का दिल नहीं कर रहा था..

तुम्हारी यादों का हैंगओवर उतरा नहीं था.

वहीँ नीचे फर्श पे ,

वो खूबसूरत लाल-गुलाबी डिजाईन वाला लेटर गिरा हुआ था,

वो लेटर उसी लेटर-पैड का पहला लेटर था

जिसे तुमने आर्चीस से ख़रीदा था..

और देते वक्त मुझसे कहा था,

इस लेटर को हिफाज़त से रखना..

इसमें लिखी हुई बातों को हमेशा याद रखना..

उस लेटर को एक प्लास्टिक में लपेट रख लिया था मैंने..

दस साल हो गए, लेकिन प्लास्टिक अभी भी वही है..

किनारे से थोड़ी फट गयी है, ऊपर से कुछ पुरानी भी हो गयी है..

लेकिन लेटर के ऊपर कभी धूल नहीं जमने दिया उस प्लास्टिक ने..

वो लेटर आज भी उतना ही नया है जैसे दस साल पहले..

जब भी वो लेटर पढ़ता हूँ, तुम्हारी बातों की महक महसूस करता हूँ,

कल भी दिन में पांच दफे उस लेटर को पढ़ा था..

पता नहीं क्यों, हर बार पढ़ने के बाद सर भारी सा लगा..

ऑफिस में, ४ कप चाय भी पिया, सोचा कुछ तो हैंगओवर उतरेगा,

पर ये तुम्हारी यादों का हैंगओवर है..कैसे उतरता इतनी जल्दी…

 

- अभिषेक कुमार

और इस पल में, बस एक मैं हूँ…

इस असाधारण और बेहद ही कॉम्प्लेक्स सी दुनिया का एक बेहद ही साधारण सा व्यक्ति हूँ मैं, जिसके सपने बहुत से हैं, और उन्हीं सपनों के पीछे भागते जा रहा हूँ…देखता हूँ वे सपने कब पूरे होते हैं, पूरे होते हैं भी या नहीं. इस कॉल्ड प्रैक्टिकल लोगों से भरी दुनिया के बीच फंसा दिल से सोचने और समझने वाला एक व्यक्ति हूँ. फ्रेंकली स्पीकिंग, एक इमोशनल फुल. दुनिया यही तो समझती है ऐसे इंसानों को. मूलतः पटना का रहने वाला हूँ, काम काम और दुनिया के झमेले में कभी बसव्कल्याण, हैदराबाद और बैंगलोर में भटकता रहा और अभी दिल्ली के चक्कर काट रहा हूँ. पुराने ज़माने का सोच रखने वाला एक मॉडर्न इन्सान हूँ मैं. पुराने दिनों में जीना, बचपन के गलियों में घूमना बहुत पसंद है. एक टाईममशीन ईजाद करने की(या पाने की) एक अजीब सी खवाहिश है जिससे जब भी चाहूँ, बचपन की गलियों में चला जाऊं, और यदि हो सके तो वापस ना आऊं.

लिखने-पढ़ने का शौक जाने कब से लग गया. याद करता हूँ तो पिछले सात साल से ब्लॉग्गिंग कर रहा हूँ. इन सात सालों में बहुत कुछ लिखा भी है. कुछ अच्छे अख़बार भी हैं जो मेरी पोस्ट्स लगातार छापते आ रहे हैं और मुझे खुश करते आ रहे हैं(अख़बार में छपने पर किसे ख़ुशी नहीं मिलती?). तीन ब्लॉग हैं मेरे, “मेरी बातें”, “एहसास प्यार का” और “कार की बात”. बचपन के किस्से, कॉलेज के दिनों की बातें, प्यार मोहब्बत के किस्से से लेकर कारों के बारे में हर तरह की जानकारियां ब्लॉग पर लिखते आ रहा हूँ. बहुत ज्यादा फ़िल्में देखता हूँ…हर तरह के फिल्मों को देखने का शौक रखता हूँ….हर देश हर भाषा की फ़िल्में देखता हूँ. ग़ालिब, गुलज़ार, अहमद फराज और निर्मल वर्मा का एक डाई-हार्ड फैन. कवितायें और शायरी का बहुत शौक है, लेकिन सिर्फ पढ़ने तक, ये अलग बात है कभी कभी कुछ इधर उधर की अच्छी बुरी कवितायेँ लिख भी लेता हूँ. पुराने हिंदी फिल्म के गाने, ग़ज़ल बहुत प्रिय हैं. एस.डी.बर्मन, आर.डी.बर्मन, शंकर जयकिशन और ओ.पी.नय्यर को किसी भी वक़्त किसी भी मूड में सुन सकता हूँ मुकेश मेरे ऑल टाईम फेवरिट सिंगर. जतिन ललित का एक डाई-हार्ड फैन.

 फ़िलहाल खुद के बारे में इतना ही  पता है, बाकी जैसे पता चलते जाएगा, आप जानते जायेंगे. ! 

 

 

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