मोहमाया

बाबा जी का प्रवचन शुरु था,
” यह संसार मोहजाल है,सब मोहमाया है.सब कुछ नश्वर है.मरने के बाद मनुष्य का न यह शरीर रहता है,न और कुछ.मनुष्य आजीवन पद,पैसा,प्रतिष्ठा के पिछे भागता है.लेकिन अंत में उसे सबकुछ यहीं छोडकर जाना पडता है.इसलिए मोह का त्याग करो….,……” सब लोग तालियां बजा रहे थे.मैं बहुत ध्यानपूर्वक बाबाजी का प्रवचन  सुन रहा था.लेकिन इसके साथ साथ बाबा जी की ‘आलिशान गाडी, उनके कीमती वस्त्र ,उनका करोडों रूपयें खर्च करके बनाया गया मकान,बाबा जी के ईर्दगिर्द उनकी देखभाल के लिए घूमती महिलाएं’ यह चित्र भी मेरे मानसपटल पर स्पष्टता से उभर रहा था.मेरे सामने बाबाजी और बाबाजी के हजारों साधक-समर्थक थे. मुझे बाबा जी का होश और जोश के साथ प्रवचन देता हुआ उल्लासित चेहरा भी स्पष्टता से दिखाई दे रहा था.लेकिन उसके साथ साथ दिमाग में और एक चेहरा उभर रहा था जो इस असली चेहरे के पिछे छिपा हुआ था . जो मेरी ओर दयनीयता से देखकर कुत्सित भाव से हँस रहा था…..!

 

 

- प्रा.एस.के.आतार

हिंदी विभाग, आर्टस अँन्ड काँमर्स काँलेज,नागठाणे
जिला-सातारा.415519
( महाराष्ट्र)

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