सुबह हो रही है
मैंने हवा से कहा।
हवा बह रही है,
मैंने जहाँ से कहा॥
सुबह की बेला आयी,
फिर भी तू सो रहा है।
रे मनुष्य! उठ जा,
ये हवा ने मुझसे कहा॥
मैंने हवा से कहा,
दुनिया सो रही है।
फिर तू क्यों
बह रही है।
जवाब है हवा का,
नादान है तू,
नहीं हूँ मैं मनुष्य।
नि:स्वार्थ भाव से
बहते जाना
रुकना न ये काम
है हमारा॥
समुद्र के सीने को
चीर कर,
चट्टानों से टकराकर भी
बहते जाना,
बस बहते जाना
ही काम है मेरा।
समझ सको अगर तुम
ये संदेश मेरा
तो जहाँ में हो
जाये सबेरा।
तब हवा ये कहेगी
सुबह हो चुकी है,
हवा बह रही है
मनुष्य चल रहा है।
मनुष्य और हवा का
ये संगम होगा
कितना प्यारा,
खिल उठेगा जब
इससे संसार हमारा॥
हवा ने दिया संदेश
मानव को मिला ये उपदेश
कर्म-पथ पर बढ़ते जाना
सुबह हो या शाम।
बाधाओं से न तुम
घबराना,
हवा की तरह
बस तुम चलते जाना।
पूरे होंगे सपने तुम्हारे
जग में फैलेगा नाम तेरा,
रुकना न तुम,
बस बहते जाना,
हवा से तुम
बातें करते जाना।
रुक-रुक कर लेना तुम आराम
ये भी आएगा तुम्हारे काम,
हवा तो सिर्फ हवा है,
सिर्फ उड़ते मत जाना।
पैर हों तुम्हारे जमीन पर,
सोच हो तुम्हारी
आकाश पर,
मान लो ये संदेश हमारा,
फिर होगा संगम
हमारा और तुम्हारा।
मुझसे ये हवा ने कहा,
मैं चुपचाप सुनता रहा।
कहने का तो है बहुत
कुछ पर,
अब तू जा,
सुबह हो रही है,
मैंने हवा से कहा।
- अमित कुमार सिंह
बनारस की मिट्टी में जन्मे अमित जी की बचपन से कविता और चित्रकारी में रूचि रही है|
कालेज के दिनों में इन्होने विश्वविद्यालय की वार्षिक पत्रिका का सम्पादन भी किया|
अमित कुमार सिंह टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं|
इनकी कवितायेँ और लेख अनुभूति, हिंदी चेतना, दैनिक जागरण, सुमन सौरभ, कल्पना, हिंदी नेस्ट , वेब दुनिया, भोज पत्र, भोजपुरी संसार , रचनाकार एवं अनेकों पत्रिकाओं में छप चुकी है|
पिछले कई वर्षों से ये कनाडा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका हिंदी चेतना से जुड़े हुए हैं|
इनकी पेंटिंग्स टाटा कंपनी की मैगज़ीन में कई बार प्रकाशित हो चुकी है और देश विदेश की कई वर्चुअल आर्ट गैलरी में प्रकाशित हैं |
दो बार ये अपने तैल्य चित्रों की प्रदर्शनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के ऑफिस प्रांगड में लगा चुके हैं |
वर्तमान में ये हॉलैंड में कार्यरत है और हॉलैंड से प्रकाशित होने वाली हिंदी की प्रथम पत्रिका अम्स्टेल गंगा के प्रधान सम्पादक और संरक्षक हैं |