वे समझते हैं
उनके खतरनाक
तेवर देख
मैं डर जाऊंगा
तेज मिजाज और
सख्त सजा
के खौफ से मर जाऊंगा
या,वो खरीद लेंगे
मेरी खुद्दारी
मेरा जमीर मेरा ईमान
और मैं चन्द सिक्कों
की खातिर यूं
फिसल जाऊंगा
गोया वो हों
जलती हुई आग
और मैं मोम सा
पिघल जाऊंगा।
जनाब मैं
अपनी कलम नहीं
उनका गलतफहमी
तोड़ना चाहता हूं
खुद को
आम आदमी से
जोड़ना चाहता हूं
बेषक हूं मैं आखरी
छोर पर खड़ा
लाचार आदमी
पर भीड़ का
हिस्सा भर नहीं हूं
हूं हकीकत आज की
कोई झूठा किस्सा नहीं हूं।
मैं जानता हूं
वो मुझे कुछ नहीं
सिर्फ सिफर समझते हैं।
हां मैं षून्य हूं
जिसमें कुछ जोड़ा
या घटाया नहीं जा सकता
पर अपनी पर आ जाऊं
तो ना कोई कसर रखता हूं
सही जगह पर लग जाऊं
तो दस गुना असर रखता हूं।
मैं जानता हूं
वे मेरा कत्ल कर सकते हैं
मुझे गहरे दफन कर सकते हैं।
पर मुझे कतई खत्म नहीं कर सकते
कि मरने के बाद भी
मेरी आवाज गूंजती रहेगी
बेषक हो जाऊंगा मैं
खामोष
पर मेरी कविता
बोलती रहेगी।
- नीरज नैथानी
जन्म : १५ जून
लेखन: कविता,लघू कथा,नाटक,यात्रा सन्स्मरण,व्य्न्ग्य,आलेख आदि।
पुस्तकें: डोन्गी(लघू कथा संग्र्ह)हिमालय पथ पर(पथारोहण सन्स्मरण)विविधा(व्य्न्ग्यसन्ग्र्ह),लंदन से लीस्तर(यात्रा सन्स्मरण),हिम प्रभा(काव्य संग्रह),
पुरस्कार: राष्ट्रपति पुरस्कार,राहुल सांस्कृत्यायन पुरस्कार, शलेश मटियानी सम्मान, हिंदी भूषन, विद्या वचस्पति, राष्ट्रीय गौरव आदि
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनो में: लंदन,मोरिशस,दुबई ,नेपाल आदि प्रतिभाग
पता : श्रीनगर गड़वाल, भारत