माँ की ममता

ओम बनारस के पास एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ था। उसके जन्म के कुछ ही महीनों पश्चात उसके पिता जी का निधन हो गया। उसकी माँ चन्द्रावती बहुत ही हिम्मती महिला थी। चन्द्रावती एक अनपढ़ महिला थी किन्तु वो चाहती थी कि उसका बेटा अच्छे से पढ़े लिखे और एक अच्छी नौकरी करे। चन्द्रावती की इस चाहत के रास्ते में बहुत सारी रुकावटें थीं। वो गाँव में एक बड़े परिवार का हिस्सा थी। घर में प्रतिदिन बहुत सारे कार्य होते थे। चन्द्रावती, ओम के लिए थोड़ा चिंतित थी।

 

धीरे -धीरे ओम बड़ा हुआ और उसका दाखिला पाठशाला में हुआ। ओम पाठशाला जाने लगा किन्तु थोड़ा बड़ा होने पर उसकी पाठशाला अनियमित थी। अक्सर उसके ताऊ जी उसको खेतों में मदद के लिए ले जाया करते थे। ओम की पढाई ठीक नहीं चल रही थी। वो आठवीं पाठशाला में आ चुका था पर चन्द्रावती बहुत परेशान थी। उसे पता था कि ओम की पढाई अच्छी नहीं चल रही है।

एक दिन ओम के नाना जी अपनी बेटी और नाती से मिलने पहुँचे।  उन्होंने ओम को खेतों में काम करते देखा और उनकी आँखों में  आंसू भर आया। उन्होंने ओम के ताऊ जी से कहा, ‘मैं ओम को अपने गाँव ले जाना चाहता हूँ, वहाँ उसकी अच्छी पढ़ाई हो जाएगी’। ताऊ जी ने पहले तो मना कर दिया, पर फिर कुछ सोच कर वो मान गए। ओम के अपने पिता जी के साथ जाने का समाचार सुन कर चन्द्रावती बहुत प्रसन्न हुई। उसने मन ही मन दुर्गा माँ को धन्यवाद कहा और एक प्रण ले लिया। उसने दुर्गा माँ के नौ दिन के नवरात्र व्रत को तब तक करने की ठानी जब तक ओम अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता।

 

वहाँ ओम नाना जी के घर में राजकुमार की तरह रहने लगा और यहाँ चन्द्रावती ढ़ेर सारी मुश्किलों के बीच दुर्गा माँ के व्रत की कसम निभाते हुए दिन गिनने लगी। ओम दिल का बहुत ही अच्छा था, हमेशा सबकी मदद लिए उपस्थित रहता था। ओम पढ़ने में ठीक ठाक था पर नाना जी के गाँव में उसकी दोस्ती कुछ उद्दंड बच्चों के साथ हो गयी। उनकी संगती में वो सुर्ती और गुठका खाने लगा। चन्द्रावती को जब ओम की इन आदतों के बारे  में पता चला तो बहुत दुखी हुई। पर वो क्या करती, बस माँ दुर्गा की आराधना में  लगी। कुछ साल बीते और ओम ने इण्टर की परीक्षा दुसरे दर्जे से पास कर ली। उसके उम्मीद से कम अंक आने पर उसके नाना जी और तीनों मामा लोग काफी दुःखी हुए। उसके एक मामा देहरादून में वैज्ञानिक के पद पर थे। उन्होंने ओम को अपने साथ देहरादून ले जाने का मन बनाया। चन्द्रावती से आज्ञा ले कर मामा जी ओम को अपने परिवार साथ देहरादून ले गए। मामा के ध्यान देने की वजह से ओम की आदतों में सुधार आया। उसने वहाँ रह कर स्नातक की पढ़ाई पूरी की।

 

 

उसकी पढ़ाई तो अच्छी हो गयी पर वो अपने गाँव और शहर बनारस की याद में खोया रहता था। उसे माँ की भी बहुत याद आ रही थी। अब उसने स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए बनारस वापस जाने का मन बनाया। उसके मामा जी ने उसे बहुत समझाया, “तुम यहीं रहो और अपनी पढ़ाई  पूरी करो, यहाँ तुमको अच्छी नौकरी मिल जाएगी”। ओम ने अपने मामा जी की एक न सुनी, और बनारस लौट गया।

 

बनारस आ कर ओम ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ना शुरू किया। पढ़ाई पूरी होने पर उसने नौकरी तलाशना शुरू किया। नौकरी ना मिलने पर ओम वापस अपने गाँव चला गया और वहीं एक पाठशाला में अध्यापक का पद ग्रहण कर लिया। साथ ही साथ वो ताऊ जी के साथ खेती-बाड़ी का काम भी देखने लगा। चन्द्रावती बेटे के घर  बैठने से बहुत चिंतित रहती थी। हर दिन दुर्गा माँ के सामने घंटो बैठे रहती थी। फिर एक दिन ओम के छोटे मामा उससे मिलने पहुँचे। वो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में शोध कर रहे थे। उन्होंने ओम को समझाया, ‘तुम गाँव में कब तक बैठे रहोगे ? यहाँ बैठने से नौकरी खुद चल कर आएगी क्या ? बनारस में रह कर कोशिश करोगे तो शायद कुछ बात बने। मामा की राय मानकर ओम गावं से फिर शहर रवाना हो गया। कुछ महीनों तक पता करते रहने पर उसे केन्द्रीय विद्यालय में रिक्त पदों की जानकारी मिली। फिर क्या था, ओम ने अपनी अर्जी डाल दी। कुछ ही दिनों बाद उसको साक्षात्कार के लिए गुवाहाटी बुलाया गया। घर पर ताऊ जी और बाकी लोग उसे इतनी दूर जाने की उनुमति नहीं दी। उनका कहना था, यहीं गाँव की पाठशाला में पढ़ाओ।

चन्द्रावती ने बड़े ही जतन से बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करते हुए ओम को एक काबिल इंसान बनाया। वह चाहती थी कि ओम साक्षात्कार के लिए जरूर जाये। माँ के हौसला देने पर उसने किसी और की बात नहीं सुनी और गुवाहाटी पहुंच गया। कुछ ही दिनों के बाद उसकी नौकरी लग गयी।

चन्द्रावती की तपस्या सफल हुई और ओम अपने पैरों पर खड़ा हो गया। इस तरह एक माँ की ममता और कठिन परिश्रम ने बेटे को गलत राह पर जाने से रोक , एक अच्छे भविष्य की ओर अग्रसित किया।

- अमित सिंह 

फ्रांस की कंपनी बेईसिप-फ्रंलेब के कुवैत ऑफिस में में सीनियर पेट्रोलियम जियोलॉजिस्ट के पद पे कार्यरत हैं ।

हिंदी लेखन में रूचि रहने वाले अमित कुवैत में रहते हुए अपनी भाषा से जुड़े रहने और भारत के बाहर उसके प्रसार में तत्पर हैं ।

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