भूख…

देखा कभी तुमने
पेट के लिए
भूख के कारण
गिड़गिड़ाते हुये
एक इंसान को
दूसरे इंसान के आगे…
भूखे गऱीब की कातर ऩज़र
जब देखती है
रोटी खाते इंसान को
तो लजा जाती होगी
समस्त काय़नात
संसार की
विधाता का विधान
हो जाता होगा हत्प्रद
किसान की मेहनत का
छूट जाता होगा पसीना
और इंसानियत इंसान की
निरुत्तर हो जाती होगी…
दुनियां का सबसे बड़ा
्दुख होती है भूख
जो नहीं देखती
ऊँच-नीच,जाति-धर्म
मान-अपमान, शर्म-बेशर्म
जो बना देती है
इंसान को इंसान
और एक दिन ले लेती
जब उसे आग़ोस में
तब विकास की कहानी
रह जाती सिर्फ़ जुवानी….

- विश्वम्भर पाण्डेय ’व्यग्र’

जन्म तिथि - १ जनवरी

पता- कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी , स.मा.(राज.)322201 (भारत)

विधा - कविता, गजल , दोहे, लघुकथा,

व्यंग्य- लेख आदि

सम्प्रति - शिक्षक (शिक्षा-विभाग)

प्रकाशन - कश्मीर-व्यथा(खण्ड-काव्य) एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित

प्रसारण - आकाशवाणी-केन्द्र स. मा. से कविता, कहानियों का प्रसारण ।

सम्मान - विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मान प्राप्त |

Leave a Reply