हमारी सोसाइटी से कुछ दूर पर गरीबों का एक मंदिर है। उस मंदिर के बाहर ज़्यादा चप्पलें नहीं होती हैं। इसकी वजह यह है कि वहां आने वाले कई लोगों के पांवों में ही चप्पलें नहीं होती हैं। वहां प्रसाद भी कोई कोई ही चढ़ाता है। जो प्रसाद चढ़ाता है उसका प्रसाद बाकी सब मांग मांग कर खा जाते हैं। ये ज़रूर है कि कोई प्रसाद चढ़ाए या नहीं पर भगवान से मांगने को सब तैयार रहते हैं। चूँकि वह गरीबों का मंदिर है , इसलिए हमारी सोसाइटी के अमीर उसके सामने से निकल जाते हैं पर उसके भगवान को प्रणाम नहीं करते हैं। उस मंदिर के भगवान भी अपने भक्तों जैसे ही दिखते हैं , गरीब से। अमीरों के स्टेटस से मेल नहीं खाते। मंदिर काफी पुराना है. जबकि ये अमीर नए नए हैं। मंदिर साधारण सा है , और ये नए अमीर असाधारण हैं। इसलिए ये साधारण सी पुताई वाले ईंटों के साधारण से ढाँचे के अंदर रखे साधारण वेशभूषा वाले साधारण से भगवान के आगे सर नहीं झुकाते हैं। खुद को असाधारण समझने वाले भक्तों को भगवान भी असाधारण चाहिएँ । ऐसे भगवान साधारण मंदिरों में नहीं रहते हैं।
साधारण मंदिरों के भगवान देख कर यह कॉन्फिडेंस ही नहीं आता है कि वे किसी अमीर की कोई इच्छा पूरी करने में समर्थ होंगे। ऐसा कॉन्फिडेंस तो सिर्फ वही भगवान जगा सकता है जो बेहतरीन नक्काशी वाले पत्थरों से बने संगमरमर जड़ित फर्श पर बने मंडप में सोने से लदा हो , जिसकी आँखों में हीरे चमकते हों और जिसे ताज़ा फलों , दूध, शुद्ध घी की मिठाई तथा मेवे का भोग लगता हो। इसलिए हमारे अमीर लोग गरीब मंदिर के सामने रुक कर या झुक कर अपनी अमूल्य श्रद्धा का अपव्यय नहीं करते हैं। वे पैदल चल कर अपनी सोसाइटी के पास के इस मंदिर में नहीं जाते हैं बल्कि अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों में बैठ कर अपने स्टेटस के अनुकूल मंदिरों में जाकर लाइनों में लगते हैं।
वैसे देश में हमारी सोसाइटी के अमीरों से भी कहीं अधिक अमीर सुपर बिजी अमीर भी हैं। इस श्रेणी के अमीर उस भगवान को ज़्यादा पसंद काने लगे हैं जो इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे दर्शन देने में समर्थ हों और नेट के माध्यम से ही दक्षिणा स्वीकार करके भक्त की इच्छाओं को तथास्तु कह सकते हों। इसके अलावा जब कभी ये अपने दर्शनों से भगवान को कृतार्थ करना चाहते हैं तो इनकी पसंद के मंदिरों में इनके लिए भगवान के समीप जाने की ख़ास व्यवस्था भी होती है। ये भगवान का आर्थिक संकट दूर करने के लिए अक्सर गुप्तदान के रूप में महादान करते रहते हैं बदले में इन्हें खुद ये कॉन्फिडेंस होता है कि अब भगवान इनकी बात को टाल नहीं सकते हैं।
अमीर गरीब के बीच , अमीर होने को तरसता और गरीब होने से बचता एक मध्यम वर्ग भी है। भगवान की पूजा के मामले में भी ये अपनी आर्थिक हालत की तरह से कन्फ्यूज्ड रहता है। गरीबों का मंदिर सामने पड़ता है तो इसका डरपोक दिल हल्का सा सिर झुका देता है लेकिन बस इतना सा ही कि केवल भगवान को ही दिखाई दे। वह जल्दी से यह क्रिया करके तेज़ी से आगे खिसक जाता है. इससे भगवान के नाराज़ होने का खतरा भी नहीं रहता है और किसी अमीर की नज़र पड़ने का डर भी नहीं रहता है। जब वह आलिशान मंदिरों में जाता है तो चेहरे पर शान का भाव लिए दान पेटी में दस बीस का नोट ऐसे हथेली में दबा कर डालता है जिससे आसपास खड़े लोग इस भ्रम में रह जाएँ कि इसने पांच सौ का नोट डाला है। भगवान से कुछ मांगते समय भी अपनी मध्यम वर्गीय मानसिकता के मुताबिक़ ये कन्फ्यूज़न की हालत में ही होते हैं। लेकिन मुझे तो लगता है कि इनसे ज़्यादा कंफ्यूज तो खुद भगवान होगा अपने भक्तों के ये विविध रूप देख कर।
- संजीव निगम
जन्मतिथि - १६ अक्तूबर
हर परिस्थिति या घटना को एक अलग नज़र से देखने वाले हिंदी के चर्चित रचनाकार.संजीव निगम कविता, कहानी,व्यंग्य लेख , नाटक आदि विधाओं में सक्रिय रूप से लेखन कर रहे हैं. अनेक पत्रिकाओं-पत्रों में रचनाओं का लगातार प्रकाशन हो रहा है. मंचों , आकाशवाणी और दूरदर्शन से रचनाओं का नियमित प्रसारण. रचनाएं कई संकलनों में प्रकाशित हैं जैसे कि : ‘नहीं अब और नहीं’, ‘काव्यांचल’,’ अंधेरों के खिलाफ’,'मुंबई के चर्चित कवि’ आदि . कई सम्मान प्राप्त जिनमे कथाबिम्ब कहानी पुरस्कार, व्यंग्य लेखन पर रायटर्स एंड जर्नलिस्ट्स असोसिअशन सम्मान, प्रभात पुंज पत्रिका सम्मान,अभियान संस्था सम्मान आदि शामिल हैं.
एक अत्यंत प्रभावी वक्ता और कुशल मंच संचालक भी.
कुछ टीवी धारावाहिकों का लेखन भी किया है. इसके अतिरिक्त 18 कॉर्पोरेट फिल्मों का लेखन भी.स्वाधीनता संग्राम और कांग्रेस के इतिहास पर ‘ एक लक्ष्य एक अभियान ‘ नाम से अभिनय-गीत- नाटक मय स्टेज शो का लेखन जिसका मुंबई में कई बार मंचन हुआ.
गीतों का एक एल्बम प्रेम रस नाम से जारी हुआ है.
आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से 16 नाटकों का प्रसारण.
पता : फिल्म सिटी रोड, मलाड [पूर्व], मुंबई