बाबा की राजदुलारी हूँ,
अम्मा की बिटिया प्यारी हूँ,
ये छोटी सी दुनिया मेरी,
ये छोटा सा संसार|
पर ये अम्मा क्या बोले हरदम,
तुझे जाना किसी और के द्वार है,
घर, अंगना, गुडिया, खिलौने,
सब छोड़ मुझे ही क्यों जाना,
मैं तो हूँ तेरे आंगन का एक छोटा सा कोना|
बाबा बोले बिटिया प्यारी,
तू माली है उस क्यारी की,
उसे संभालना तेरी जिम्मेदारी,
मैं बोली बाबा,
ये आंगन भी मेरा,
वो आंगन भी मेरा,
सदा खुश रहे ये छोटा सा बसेरा ,
बाबा मेरी तरफ देख मुस्कुराए,
बोले बिटिया तुझे किसी की नज़र ना लग जाए|
-स्वाति सिंह देव
वाणिज्य प्रबंधन में स्नातकोतर पूरा करने के बाद वाराणसी में कुछ दिनों बैंक में कार्यरत रहीं|
विवाह के तत्पश्चात कुवैत आयीं| हिंदी लेखन, नृत्य और चित्रकारी में रूचि रखती हैं|
