बूढ़ी होती माँ
अपने ही घर के कोने में बैठी है
अकेली
एक ख़त्म होती रात की तरह
माँ
एक छोटे से टुकड़े की चाहत में
अपने बच्चों को देती है
पूरा आकाश
और बच्चे
उसके अशक्त क्षणों में
उसे झाड़ देते हैं
घर की गर्द की तरह
माँ
अपने डैने पर बिठा कर
सपनों के पंख दे कर
उड़ना सिखाती है
विस्तार में
पर वह खुद
आँचल में ढेरों अपमान भर कर
बैठी रह जाती है
पिंजरे में कैद चिड़िया की तरह
सच, हर युग में जली है
उपेक्षित माँ
चूल्हे की आग की तरह
पर बुझने के क्षणों में भी
दे गई आँच (सुख)
बुझी हुई राख की तरह…।
- प्रेम गुप्ता ‘मानी’
शिक्षा- एम.ए (समाजशास्त्र), (अर्थशास्त्र)
जन्म- इलाहाबाद
लेखन- १९८० से लेखन, लगभग सभी विधाओं में रचनाएं प्रकाशित
मुख्य विधा कहानी और कविता, छोटी- बड़ी सभी पत्र-पत्रिकाओं में
ढेरों कहानियाँ प्रकाशित ।
प्रकाशित कॄतियाँ- अनुभूत, दस्तावेज़, मुझे आकाश दो, काथम (संपादित कथा संग्रह)
लाल सूरज ( १७ कहानियों का एकल कथा संग्रह)
शब्द भर नहीं है ज़िन्दगी (कविता संग्रह)
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो (कविता संग्रह)
सवाल-दर-सवाल (लघुकथा संग्रह)
यह सच डराता है (संस्मरणात्मक संग्रह)
शीघ्र प्रकाश्य- चिड़िया होती माँ( कहानी संग्रह)
कुत्ते से सावधान (हास्य-व्यंग्य संग्रह)
हाशिए पर औरत, (लेख-संग्रह)
आधी दुनिया पर वार (लेख संग्रह)
विशेष- १९८४ में कथा-संस्था “यथार्थ” का गठन व १४ वर्षों तक लगातार
हर माह कहानी-गोष्ठी का सफ़ल आयोजन।
इस संस्था से देश के उभरते व प्रतिष्ठित लेखक पूरी शिद्दत से जुडे रहे।
सम्पर्क- “प्रेमांगन”
कल्याणपुर, कानपुर-२०८०१७(उ.प्र)