आलिशान मकानों के बीच
मैली अंधेरी एक बस्ती
जहाँ एक ओर ऐशोआराम
वहीं दूसरी ओर तड़प भूख की
फटे सिले कपड़े धुलने के बाद
सूखाए जाते है लकड़ियों के ढेर पर
यहाँ ईटों का रंग उड़ा हुआ है
टपकती हैं बारिश में छत भी
गंदगी से भरा पानी का बहता नाला
मन को बेचैन करती गंध उसकी
दिनभर की थकान के बावजूद
बस्तीवालों पर अपना असर न छोड़ पाती
खूंटे से बंधे जानवर
आँगन में मिट्टी से खेलते बालक
कुत्ता भी जहाँ निश्चिंत सोता
और बंटता सब में निवाला बराबर
एक तरफ चेहरे की झुर्रियाँ
उनके हालातों को बयान करती
वहीं चैन और सुकून से भरी
नींद भी बड़े अच्छे से आती
रहते है यहाँ इन्सान ही मगर
क्या यह इन्सानों की बस्ती है कहलाती ॽ
कैसा विपर्यास, यह न्यायशीलता कैसी
एक जैसी क्यों नहीं हम सबकी बस्ती ॽ
- प्रतिभा ” प्रीति “
जन्म : – ३० जुलाई
शिक्षा : – एम. ए, बी. एड, (पी जी डी टी), (पी. एच डी)
व्यवसाय :– हिन्दी प्राध्यापिका , रामय्या इंस्टिट्यूट ऑफ बिजनेस स्टडीज़ , बेंगलूर
प्रकाशित :– कविता संग्रह “जिंदगी की दास्तान”
भाषा सहोदरी हिन्दी तथा आधुनिक हिन्दी साहित्य दिल्ली में कविताएं प्रकाशित
विविध कार्यक्रमों में कविता पाठ
कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विविध विषयों पर आधारित आलेख प्रकाशित
लेखन विधाएँ :– हिन्दी तथा मराठी भाषा में कविता और कथा लेखन
स्थायी पता :– सशांक अपार्टमेंट, एम एस पाल्या, बेंगलूर