बनारस

समय का कुछ हिस्सा
मेरे शहर में रह जायेगा
इस तरफ
नदी के
जब मेरी रेलगाड़ी
लाँघती रहेगी गंगा को
और हम लाँघते रहेंगे
समय की चौखट को
अपनी जीवन यात्रा के दौरान
अपनी जेब में
धूप के टुकड़े को रख कर
शहर  – दर – शहर
बनारस
यह शहर ही मेरा खेमा है अगले कुछ दिनों के लिये
इस शहर को जिसे कोई  समेट नहीं सका
इस शहर के समानांतर
कोई कविता ही गुजर सकती है
बशर्ते उस कविता को  कोई  मल्लाह अपनी नाव पर
ढ़ोता रहे घाटों के किनारे
मनुष्य की तरह कविता भी यात्रा में होती है      ।।
- रोहित ठाकुर

शैक्षणिक योग्यता  -   परा-स्नातक राजनीति विज्ञान
विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित 
विभिन्न कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ
वृत्ति  -   सिविल सेवा परीक्षा हेतु शिक्षण 
रूचि -हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य अध्ययन
पत्राचार - संजय गांधी नगर, कंकड़बाग , पटना-800020, बिहार

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