हे प्रभु तू मन को हर ले !
अपने विवेक से मैंने जैसा जीवन चाहा,
अपने कर्मो से उस जीवन को ख़ाक बनाया।
वो कर्म ही क्या को जीवन का उद्धार ना कर ले,
इसलिए हे प्रभु तो मन को हर ले ।
मानव बनने का मतलब क्या जब पशुता मन पर व्यापित हो,
मेरे हर कर्म से मेरा निहित स्वार्थ सत्यापित हो।
इस से पहले पशुता मन पर अपना घर कर ले,
हे प्रभु तू मन को हर ले।
हर बोझ से भारी है ये मन का भार,
हर जीत के बाद सताती इसको हार।
मन की ये गति जीवन का कहीं वेग न हर ले,
इसलिए हे प्रभु तो मन को हर ले ।।
- रोहित सिन्हा
ये यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेब्रास्का,लिंकन, अमेरिका में एक रिसर्च एसोसिएट हैं । इनकी रिसर्च बैक्टीरिया और ह्यूमन जीनोम के पारस्परिक सम्बन्ध के बारे में जानकारी से सम्बंधित है ।
तकनिकी से जुड़े होने के बावजूद इन्हें हिंदी साहित्य से प्रेम है और अपने इस प्रेम को ये अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं ।